MVA की सरकार जाने के बाद उद्धव ठाकरे ओऔर कभी उनके विश्वस्त रहे एकनाथ शिंदे के बीच शिवसेना पर कब्जे को लेकर लड़ाई चल रही है। बीजेपी-शिंदे गुट हर हाल में शिवसेना को उद्धव के हाथों से छीनने पर आमादा हैं। ऐसे में दशहरा पर मुंबई के शिवाजी पार्क में होने वाली रैली प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गई है। उद्धव दशहरा पर अपनी ताकत दिखाने को आमादा हैं तो सीएम शिंदे नहीं चाहेंगे कि उद्धव कैंप रैली के बहाने फिर खड़ा हो।

शिवाजी पार्क शिवसेना के लिए बहुत अहम है तो दशहरा रैली उससे भी ज्यादा। 30 अक्टूबर 1966 को पहली बार बाला साहेब ठाकरे ने इसी मैदान से हुंकार भरी थी। उसके बाद से यह पर्व शिवसैनिकों के लिए सालाना मौका बन गया। ऐसा मौका जिसमें उन्हें अपने सरपरस्त से आदेश मिला करता था। 1966 के बाद कुछ ही मौके रहे जब शिवसेना ने शिवाजी पार्क में रैली नहीं की।

2006 में भारी बारिश की वजह से जलसा नहीं हो सका तो 2009 में चुनाव की वजह से दशहरा रैली रद्द करनी पड़ गई। कोरोना के चलते 2020 में वर्चुअल रैली से ही काम चलाना पड़ा। 2021 में भी सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से एक हाल में जलसा किया गया। शिवसेना के लिए यह रैली कितनी अहम है कि 1991 में बाल ठाकरे की शिवाजी मैदान से उठी आवाज के बाद शिवसैनिकों ने वानखेड़े स्टेडियम की पिच खोद डाली। बाला साहेब ने अपने लोगों से कहा था कि भारत-पाक मैच किसी सूरत में ठीक नहीं।

2010 में बाला साहेब ने इसी मैदान से आदित्य की ताजपोशी की थी। उनके जाने के बाद उद्धव 2013 से इस मैदान पर रैली करते आ रहे हैं। 2015 की रैली में उन्होंने बीजेपी पर सीधा हमला बोला था, जिसके बाद दोनों के रिश्तों में खटास पैदा होनी शुरू हो गई।

फिलहाल उद्धव सरकार से बाहर हैं। बीएमसी में भी उनकी सत्ता नहीं है। आदित्य ठाकरे रैली के आयोजन की अनुमति को लेकर कारपोरेशन गए तो उन्हें बैरंग लौटा दिया गया। उसके बाद उद्धव ने ऐलान किया कि परमिशन मिले या नहीं रैली तो होकर रहेगी। उसके बाद से सबकी निगाहें इस बात पर लगी हैं कि उद्धव कैसे रैली करते हैं और शिंदे उनको रोकने के लिए क्या करते हैं?