टीपू सुलतान की जयंती को लेकर जारी विवाद में कूदते हुए शिवसेना ने गुरुवार को पूर्व मैसूर साम्राज्य के 19वीं सदी के शासक को ‘निर्दयी’ बताते हुए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर ‘विभाजनकारी नीति’ अपनाने का आरोप लगाया। शिवसेना के सांसद अरविंद सावंत ने साथ ही टीपू सुल्तान और मराठा नरेश छत्रपति शिवाजी के बीच तुलना पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, ‘टीपू सुल्तान एक निर्दयी शासक था जिसने हिंदुओं का जनसंहार किया और जिसका इस्लाम के अलावा किसी भी दूसरे धर्म के अस्तित्व में विश्वास नहीं था। उसने मंदिर और गिरिजाघर ध्वस्त कराए। और वे कहते हैं कि वह एक अच्छा शासक था’?
सावंत ने इस बात पर हैरानी जताई कि आजादी के इतने सालों बाद अचानक टीपू सुल्तान को याद किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने भारत की आजादी के 67 सालों बाद अब हैरान करते हुए अचानक टीपू सुल्तान को याद किया। आज उन्हें उसकी याद आई? क्यों? यह कर्नाटक सरकार की विभाजनकारी नीति है’।
उन्होंने कहा, ‘कर्नाटक की सरकारें चाहे वे पूर्ववर्ती हों या वर्तमान, सुल्तानी शासन के लिए जानी जाती हैं। पिछले 60 सालों से (सीमा मुद्दे को लेकर) लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष कर रहे मराठी लोगों से उनका जो व्यवहार है, उसपर ध्यान दें। इसलिए स्वभाविक है कि वे सुल्तान की वंदना करेंगे’।
सावंत ने टीपू सुल्तान और शिवाजी के बीच तुलना करने वाले लोगों को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘उनकी छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ कैसे तुलना की जा सकती है जिन्होंने कभी कुछ गलत नहीं किया, कभी महिलाओं का अपमान नहीं किया और धार्मिक स्थलों की पवित्रता भंग नहीं की। शिवाजी एक न्यायसंगत नेता थे जबकि टीपू सुल्तान ऐसे नहीं थे’। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति जो राष्ट्र की शांति और विकास के लिए अपना जीवन बलिदान करेगा उसे उसके धर्म को नजरअंदाज करते हुए ‘हमारा अपना व्यक्ति’ समझा जाएगा।
शिवसेना नेता ने कहा, ‘यह मुसलमानों या हिंदुओं का नहीं बल्कि देशभक्ति का सवाल है। कोई भी व्यक्ति जो इस देश में आस्था रखता है और देश की शांति और विकास के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए तैयार है, वह अपने धर्म से परे हमारा अपना व्यक्ति है लेकिन टीपू सुल्तान का इन सबमें विश्वास नहीं था। मुझे एक भी उदाहरण दें जिससे साबित हो कि वे ऐसा करते थे’।