India Pakistan Border Shelling: पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने सीमा पर कई दिनों तक गोलीबारी की। पाकिस्तान की गोलीबारी में लाइन ऑफ़ कंट्रोल (Line of Control) के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों को जबरदस्त नुकसान हुआ।

सीजफायर के बाद हालात जब थोड़ा सामान्य हुए तो लोग घरों से बाहर निकले और जिनके घरों में मौत हुई थी, उनका दुख बांटने की कोशिश की।

The Indian Express ने जम्मू-कश्मीर में LoC के आसपास के इलाकों का दौरा किया और लोगों से जानने की कोशिश की कि सीमा पर तनाव के दौरान यहां के लोगों को किन मुश्किलों से गुजरना पड़ा और लोगों को कितना नुकसान हुआ है।

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पल्लनवाला, अखनूर (जीरो लाइन पर)

अखनूर में जीरो लाइन पर स्थित पल्लनवाला गांव में रहने वालीं कमलेश कुमारी अपनी छत पर खड़े होकर एक पेड़ की ओर इशारा करती हैं। 10 मई को भारत-पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई के बीच यहां पेड़ गिर गया था। कमलेश कुमारी कहती हैं पेड़ के पीछे से ही गोले आए थे।

LoC के गांव में नहीं करूंगी बेटी की शादी

45 साल की कमलेश कुमारी 26 साल पहले इस गांव में आई थीं। कमलेश कुमारी पति, तीन बच्चों और ससुर के साथ गांव में रहती हैं। वह बताती हैं कि शादी के बाद जब वह आई थीं तो पल्लनवाला में उनका पहला दिन ही काफी डराने वाला था क्योंकि तक पूरी रात गोलीबारी हुई थी। 1999 में कारगिल युद्ध के बाद यह गांव लगभग वीरान हो गया था। वह कहती हैं कि वह अपनी बेटी की शादी LoC के आसपास किसी भी गांव में नहीं करेंगी।

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कमलेश कुमारी बताती हैं कि पिछले कुछ हफ्तों से वे लोग यहां रात को नहीं रुकते और 10 किलोमीटर दूर एक रिश्तेदार के घर जाते हैं। कमलेश कहती हैं, हमारी किस्मत अच्छी है कि 10 मई को जब हमारे घर पर गोला गिरा तो हम लोग घर पर नहीं थे। यह गोला उनके घर की छत पर गिरा जिससे मकान को नुकसान पहुंचा।

राजौरी (LoC से 12 किमी)

10 मई को राजौरी शहर में भी गोले गिरे थे। 51 साल के हुसान अख्तर और उनका 11 साल का बेटा गोले गिरने के बाद घर से भाग गए थे। यहां गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हुई थी। अख्तर राजौरी के एक गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं। जब वह अपने स्कूल में थे तभी जोरदार धमाका हुआ। अब उनका परिवार पास के ही एक छोटे से घर में रहता है।

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पुंछ (LoC पर चक्कन दा बाग क्रॉसिंग से 8 किमी)

19 साल की आफरीन फिरदौस पुंछ शहर के पुलिस लाइंस इलाके के पास रहती हैं। 7 मई को आफरीन ने तेज धमाकों की आवाज सुनी। इन धमाकों में 40 साल के उनके पिता मोहम्मद अकरम घायल हो गए थे। एक छर्रा उनके सीने में घुसकर बाहर निकल गया था। मोहम्मद अकरम की अस्पताल में मौत हो गई थी। आफरीन के भी हाथ, सिर और चेहरे के पास छर्रे लगे हैं।

बेटी को कॉलेज में देखने का था सपना

आफरीन की मां फरीदा पति की मौत के बाद 6 बच्चों को लेकर पास में ही अपने गांव चली गई थीं। अब वह वापस लौट आई हैं। फरीदा कहती हैं कि अपनी बेटी को कॉलेज में देखना हमारा सबसे बड़ा सपना था। आफरीन कहती हैं कि पिता की मौत के बाद उसकी ज़िंदगी खत्म हो गई है।

मदरसे के शिक्षक को चैनलों ने बताया आतंकवादी

गोलीबारी की वजह से एक हफ्ते बाद भी मदरसे की कक्षाएं और छात्रावास बंद हैं। इस दौरान जामिया जिया उल-उलूम मदरसे के 55 साल के शिक्षक कारी मोहम्मद इकबाल की भी मौत हो गई थी। इकबाल की मौत के बाद परिवार वालों को ज्यादा सदमा इस बात से लगा जब कुछ न्यूज़ चैनलों के वीडियो में उन्हें लश्कर का आतंकवादी बताया गया और कहा गया कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में उनकी मौत हुई है।

पुंछ पुलिस ने इस मामले में तुरंत स्पष्टीकरण जारी किया और मीडिया चैनल और सोशल मीडिया हैंडल्स को चेतावनी दी कि वे गलत सूचना न दें।

मदरसे के उप-प्रधानाचार्य मौलाना सईद अहमद हबीब कहते हैं, “वह जीवन भर काम करता रहा, सज्जन व्यक्ति की तरह रहा और मौत के बाद उसे आतंकवादी करार दिया गया। इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है।”

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बंदी गांव, उरी (LoC से 15 किमी दूर)

LoC से 15 किलोमीटर दूर उरी में बांदी गांव है। यहां रहने वाले मोहम्मद अनवर शेख बताते हैं कि 11 मई की सुबह 3 मिनट के अंदर उनका घर तबाह हो गया था। गोलीबारी में शेख के परिवार ने जो कबूतर और मुर्गियां पाली थीं वे भी मर गईं। शेख की 5 साल की बेटी मायरा जान कहती है कि वह श्रीनगर वापस जाना चाहती है, वह अपने पिता से सवाल पूछती है कि क्या मैं मर जाऊंगी?

बांदी गांव हाजी पीर सेक्टर में पाकिस्तानी सेना की चौकियों के सामने ही है। यहां हुई गोलीबारी में कई मकानों को अच्छा-खासा नुकसान पहुंचा और गोलीबारी में शेख का पूरा घर खंडहर हो गया।

बाटापोरा गांव, कुपवाड़ा (LoC से 7 किमी दूर)

इसी तरह LoC से 7 किलोमीटर दूर कुपवाड़ा के बाटापोरा गांव में रहने वाले तस्वीर अहमद अवाद का घर भी गोलाबारी में तबाह हो गया। उनके घर में पाकिस्तान से एक गोला गिरा और इससे लगी आग की वजह से कुछ दुकानें और घर आग की चपेट में आ गईं। तस्वीर ने बताया कि उन्होंने 6 मई की रात अपने भाई के बंकर में बिताई थी, क्योंकि गांव में गोले गिर रहे थे।

पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ नहीं बचा

तस्वीर की पत्नी नरगिस बेगम दुखी मन से कहती हैं, ”हम पहने हुए कपड़ों के अलावा कुछ भी नहीं बचा सके।” तस्वीर कहते हैं कि अगर सरकार मदद करेगी तो वे इस जगह से चले जाना चाहेंगे। कक्षा 3 में पढ़ने वाला 10 साल का अमन सफीर कहता है, “मैं यह जगह छोड़कर नहीं जाना चाहता। मेरे दोस्त यहीं हैं, मेरा घर भी यहीं है।”

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