शरद पवार के हाथ से एनसीपी जा चुकी है। चुनाव आयोग के एक फैसले के बाद अब उन्हें नई पार्टी बनानी पड़ेगी। उस नई पार्टी का एक नाम भी तय हो गया है। चुनाव आयोग ने पवार गुट की पार्टी का नाम ‘NCP शरद चंद्र पवार’ रखा है। ये नाम शरद गुट द्वारा भी चुनाव आयोग को सुझाया गया था, अब ईसी की तरफ से भी इसे मान्यता दे दी गई है।

शरद पवार की पार्टी को दिए गए नए नाम में सबसे खास बात है खुद शरद पवार। जिस नाम को फाइनल किया गया है, उसमें शरद पवार का जिक्र जरूर किया गया है। ये अपने आप में बताने के लिए काफी है कि पवार पार्टी छिनने के बाद अब चेहरे की लड़ाई लड़ने जा रहे हैं।

देश में राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दों से ज्यादा कई बार चेहरों की लड़ाई देखने को मिल ही जाती है जहां हर बार सवाल बनता है कि मोदी बनाम कौन? अब उसी तरह का फॉर्मूला महाराष्ट्र में अप्लाई करने की कोशिश दिख रही है जहां पर नेरेटिव सेट करने का प्रयास है कि शरद पवार बनाम कौन? ये भी दिखाने का प्रयास है कि महाराष्ट्र की जनता पवार को ही अपना नेता मानती है, अजित के चले जाने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।

अभी तक तो क्योंकि एनसीपी ही शरद पवार के साथ थी, ऐसे में दोनों नाम एक दूसरे के पूरक चल रहे थे। एनसीपी का जिक्र आता तो पवार का चेहरा आना लाजिमी रहता, पवार की बात करते तो एनसीपी की सियासत पर भी चर्चा हो ही जाती। लेकिन अब क्योंकि एनसीपी ही अजित पवार के पास चली गई है, ऐसे में उस ‘पूरक वाली राजनीति’ का एक बड़ा हिस्सा अलग हो चुका है। इसी वजह से अब ज्यादा फोकस सिर्फ चेहरे पर दिया जा रहा है, पार्टी और मुद्दों को नजरअंदाज कर सिर्फ शरद पवार को आगे करने पर सारा जोर है।

शरद गुट को एक फायदा ये भी हो गया है कि उसने अपने नए नाम में भी एनसीपी को साथ रख लिया है। यानी नेरेटिव में ही सही, लोगों के बीच में ये लड़ाई जिंदा रहने वाली है- असली एनसीपी कौन? अजित तो कानूनी तौर पर एनसीपी के मालिक हैं, लेकिन क्योंकि ये शब्द तो पवार गुट के साथ भी रहने वाला है, ऐसे में ये दुविधा पवार को फायदा दे सकती है।

वैसे इस पूरे विवाद की बात करें तो शरद पवार को पिछले साल ही बड़ा झटका लग गया था जब उनके भतीजे अजित पवार ने कई विधायकों के साथ शिंदे सरकार में शामिल होने का फैसला किया था। टूट ज्यादा बड़ी थी, इसी वजह से एनसीपी के अस्तित्व पर भी खतरा आया। अजित ने दावा कर दिया था कि उनके पास पर्याप्त संख्या है, ऐसे में असल एनसीपी उनके साथ ही रहने वाली है। अब मंगलवार को चुनाव आयोग ने भी संख्या बल को ध्यान में रखते हुए ही अजित गुट के पक्ष में फैसला सुना दिया।