सहारा इंडिया को आयकर निपटान आयोग (ITSC) से मिली राहत पर द इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर पर आयोग ने खुद मुहर लगाते हुए कहा है कि पिछले पांच सालों में सहारा के अलावा किसी भी केस में इतनी जल्दी सुनवाई नहीं हुई। इसके साथ ही आयोग ने यह भी टिप्पणी की है कि सहारा इंडिया के इस केस में आय कर विभाग ने जरूरी छानबीन भी नहीं की, हालांकि इसके लिए 90 दिनों का वक्त तय होता है। आयोग ने द इंडियन एक्सप्रेस के आरटीआई के सवाल के जवाब में माना है कि 5 जवनरी को छपी खबर सही थी। अखबार ने छापा था कि आयोग ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मात्र तीन सुनवाई में ही सहारा डायरी केस में फैसला सुना दिया था।

11 जनवरी को अपने जवाब में आयोग ने स्वीकार किया है कि सहारा इंडिया का केस पिछले पांच सालों में सबसे कम समय में निपटाए गए केसों में सबसे पहले नंबर पर है। इस फैसले के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने भी सहारा डायरी को सबूत मानने से इनकार कर दिया और जांच की मांग करने वाली जनहित याचिका ठुकरा दी। आय कर विभाग ने नवंबर 2014 में सहारा इंडिया के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान एक डायरी बरामद की थी जिसमें कुछ नेताओं के नाम थे और उन्हें पैसे देने के बारे में लिखा हुआ था। आयोग ने इस डायरी को सबूत मानने से भी इनकार कर दिया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इन्हें सबूत मानने से इनकार करते हुए जांच की मांग वाली पीआईएल याचिका खारिज कर दिया। हालांकि, अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट को बताया कि आयोग के फैसले को चुनौती देना है या नहीं यह आयकर विभाग तय करेगा।

दरअसल, इंडियन एक्सप्रेस ने आयोग के 50 पन्नों के फैसले को पढ़ने के बाद पाया कि आयोग ने सहारा इंडिया द्वारा दाखिल केस को पहले खारिज कर दिया था लेकिन 5 सितंबर, 2016 को उसे फिर से सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। आयोग ने तीव्र कार्रवाई करते हुए मात्र तीन सुनवाई में ही अपना फैसला सुनाते हुए सहारा इंडिया को राहत दे दी। आयोग ने राहत का आदेश 10 नवंबर 2016 को सुनाया है जो आखिरी सुनवाई की तारीख 7 नवंबर 2016 से तीन दिन बाद है। वैसे सामान्यत: आयोग 18 महीनों में किसी मुद्दे पर अंतिम फैसला सुनाता है। आयोग के सूत्र बताते हैं कि कभी-कभार ही 10 से 12 महीनों के अंदर कोई फैसला सुनाया जाता है।

फैसले के आखिरी पन्ने में लिखा गया है कि छापे के दौरान कंपनी से 137.58 करोड़ रुपये बरामद हुए थे जिस पर अब टैक्स आरोपित किया जाता है। आयोग ने इस टैक्स की राशि अदायगी को भी 12 किश्तों में कर दिया है। फैसले में कहा गया है कि सहारा इंडिया ने आयोग से गुहार लगाई है कि इस वक्त कंपनी कछिन दौर से गुजर रही है इसलिए कर अदायगी को किश्तों में कर दिया जाय। इसके अलावा फैसले के पहले पेज में आयोग ने लिखा है, आवेदक की दलील है कि कुछ असंतुष्ट कर्मचारियों ने जानबूझकर इस तरह के बेमतलब के कागजात बनाए हैं।

गौरतलब है कि बिड़ला और सहारा ग्रुप पर 2013 और 2014 में इनकम टैक्स ने छापे मारे गए थे। छापों में इनकम टैक्स को महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद हुए थे। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इन फाइलों की जांच की मांग की थी। 25 अक्टूबर 2016 में प्रशांत भूषण ने अपनी शिकायत सभी जांच एजेंसियों और कालेधन की विशेष जांच टीम को लीड कर रहे दो पूर्व जजों की स्पेशल को भेजी थी।