देश के खनन उद्योग को झटका देते हुए सरकार ने उन कंपनियों की नॉन-कैप्टिव माइनिंग लीज को आगे बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है जिनकी लीज की अवधि को मार्च 2020 में 50 साल पूरे हो रहे हैं। सरकार के इस कदम से इस कदम से 10 राज्यों में टाटा स्टील, वेदांता लिमिटेड, एस्सेल माइनिंग, वी. एम. सलगांवकर और रूंगटा माइंस जैसी कंपनियों की करीब 334 खदानों पर असर पड़ेगा।

खबर के अनुसार, इन खदानों का पट्टा (लीज) अगले साल मार्च में समाप्त हो रहा है और मौजूदा कानून के तहत इनके बंद होने की नौबत आ गई है। गौरतलब है कि इनमें से 46 खनन पट्टे काफी अहम हैं जिनका देश में लौह-अयस्क, मैगनीज अयस्क और क्रोमाइट अयस्क के उत्पादन में अहम योगदान है।

सूत्रों के अनुसार, नीति आयोग द्वारा इस संबंध में एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया गया है। यह उच्च स्तरीय कमेटी खनन के क्षेत्र की चुनौतियों और उनके प्रभाव को चिन्हित करेगी। कंपनियों की लीज की अवधि मार्च, 2020 में खत्म हो जाएगी। सूत्रों के अनुसार, जनवरी-मार्च में सरकार इन खनन के पट्टों की फिर से नीलामी करेगी।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ” समिति ने पाया कि इन कंपनियों को मालूम है कि एमएमडीआर (संशोधन) अधिनियम 2015 के अनुसार, उनके पट्टे की अवधि 31 मार्च 2020 को समाप्त हो जाएगी। स्थानीय उद्योग को आपूर्ति में होने वाली किसी भी प्रकार की रुकावट को दूर करने के लिए कानून के तहत पहले पांच साल का समय दिया गया है। इसलिए इन खदानों को परिचालन में रखने के लिए पट्टे की अवधि बढ़ाना वांछित नहीं है।”

बता दें कि खनन उद्योग ने सभी चालू नॉन-कैप्टिव माइंस के पट्टे को 2020 के बाद और 10 साल के लिए और उसके बाद फिर 20 साल के लिए बढ़ाने की मांग की थी। उनका मानना है कि इससे उत्पादन पर असर नहीं पड़ेगा और खदान का पूरा शोषण भी किया जा सकेगा।

निजी खनन कंपनी के एक एग्जीक्यूटिव का कहना है कि खनन कंपनियों के पट्टे को आगे नहीं बढ़ाना खनन उद्योग के लिए बड़ा झटका है। अधिकारी ने बताया कि खनन उद्योग पहले ही मांग के मामले में मंदी झेल रहा है। अब खनन पट्टों की फिर से नीलामी से इस सेक्टर में लाखों नौकरियों पर संकट के बादल मंडरा जाएंगे।