वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने युवाओं से कहा है कि उन्हें जिसने तकलीफ दी है, उसी से जाकर गुहार लगाएं। मुझसे अपनी समस्याएं नहीं बताएं। उनका इशारा भाजपा की आईटी सेल की तरफ था। उन्होंने साफ किया कि वे अब भावनाओं में नहीं बहने वाले हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे अब अपने कार्यक्रम में नौकरी सीरीज नहीं करेंगे। रवीश कुमार ने अपने फेसबुक ब्लाग में युवाओं के भारी संख्या में आए संदेशों पर यह बात कही। उन्होंने कहा कि “आईटी सेल की चपेट में आए युवा आईटी सेल से गुजारिश करें कि उनकी बातों को सरकार तक पहुंचा दें।” हालांकि रवीश कुमार के इस पोस्ट पर कई लोगों ने कमेंट किए हैं।
उन्होंने कहा कि अब वे नौकरी सीरीज नहीं करेंगे। इसकी वजह अगर किसी को जाननी हो तो उनके पुराने लेखों को पढ़ ले। उसमें उन्होंने इसका जवाब कई बार लिखा है। आगे उन्होंने लिखा, “इसके बाद भी युवाओं के मैसेज देख मन पिघलता है। उनकी क्या हालत कर दी गई है। सरकार जानती है कि युवाओं से उसे कोई ख़तरा नहीं है। आरक्षण को लेकर कुछ भी मैसेज फैला देगी, भीड़ बंट जाएगी। धारा 370 को लेकर कुछ भी फैला देगी भीड़ छंट जाएगी। कुछ नहीं होगा तो इलाक़ा, इतिहास और जाति तो है ही। हमारे युवा सांप्रदायिकता और जातिवाद से दूर नहीं रह सकते। तो अपन उनसे दूर रहते हैं। यही दुआ करते हैं कि भारत के नौजवानों को ईमानदार परीक्षा व्यवस्था मिले। उनके जीवन में सरकारों ने जो कष्ट बोया है वो कभी न बोया जाए और मुझे मैसेज न करें। मुझे सांप्रदायिक नौजवानों का हीरो बनना ही नहीं है। पूरे भारत में ऐसा बोलने वाला अकेला बंदा हूं।”
रवीश कुमार ने अपने पोस्ट में लिखा, “मैं तो युवाओं से अपील करता हूँ कि कमेंट बॉक्स में आईटी सेल के लोग जो गाली देने आते हैं आप उन्हें और उनके नेता को ही फॉलो करें। मुझे रोज सुबह शाम गाली दिया करें। आपकी जवानी बर्बाद कर दी गई है यह सच है। उसी ने की है जिसकी बात ऊपर के पोस्ट में की है। मुझे भर्ती वाले मैसेज न करें।”
उनकी पोस्ट पर देवेश गोयल टीटू नाम के एक यूजर ने लिखा, “मनुष्य होना निरीह जीव जंतुओं पर हथियार औजार चलाना नहीं सिखाता… मनुष्य होना यह सिखाता है… कि हमें किसी चिड़िया का घोंसला भी ठीक उसी प्रकार बचाना है…. जैसे हम अपना घर बचाते हैं…..”
विद्या अरविंद नाम के एक अन्य यूजर ने लिखा, “रवीश जी, आपने युवाओं पर अपनी तीखी टिप्पणी में बहुत सही कहा है। युवा एक अभिनेता की मृत्यु पर आज भी रो रहे हैं पर अपनों की मृत्यु अपने सामने किन कारणों से हुई देखकर भी whatsapp यूनिवर्सिटी द्वारा फैलाए कुतर्की लंबे फॉरवर्ड पढ़कर सरकार की तरफ़ हो जाते हैं, सरकार और प्रधानमंत्री की आलोचना को देश की आलोचना समझ लेते हैं। सरकार सूचना के हर स्रोत पर नियंत्रण कायम करना चाहती है, इसे लेकर भी युवाओं में उतना गुस्सा नहीं है जितना सुशांत की मृत्यु पर है। देश और देशवासियों के विवेक की गंभीर हालत देखकर मुझे आपकी किताब बोलना ही है का हर अध्याय याद आता है। स्कूल कॉलेज में उस किताब को अतिरिक्त पाठन के किताबों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए।”
रक्षा यथार्थ नाम के एक यूजर ने लिखा, “मै आपके निर्णय का समर्थन करती हूँ… आपको नौकरी सीरिज़ नही करनी चाहिए.. युवाओं का क्या है ..बिकाऊ लोगों मे अच्छे मर रहे हैं… जैसे अमीरों मे गरीब भूख से, आवश्यकता से मर रहा है. कौन जानना चाहता है उनके विषय में.. न प्रधानमंत्री और न ही मिडिया..।”