अपने ट्वीट्स को लेकर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई अक्सर ट्रोल्स के निशाने पर रहते हैं। ऐसा ही कुछ बुधवार को भी हुआ जब सरदेसाई ने चुनाव आयुक्त अशोक लवासा को लेकर एक ट्वीट किया और उन्हें एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) का उपाध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर सवाल खड़े किए।
लवासा को एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। चुनाव आयोग में लवासा का कार्यकाल अक्टूबर 2022 तक था। ऐसे में अगर लवासा चुनाव आयुक्त के रूप में बने रहते तो मुख्य चुनाव आयुक्त के पद तक पहुंच सकते थे। इसपर सरदेसाई ने ट्वीट कर लिखा ” चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा नेतृत्व के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन पर असहमति जताई थी, वे अब मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं होंगे। उन्हें एडीबी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। क्या किसी को पता है ऐसा क्यों किया गया।”
राजदीप के इस ट्वीट पर यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रियाएं देते हुए उन्हें जमकर ट्रोल किया। एक यूजर ने लिखा “क्या आपकी पत्रकारिता सिर्फ आरोप प्रत्यारोप की ही है? खबर जैसी है आप वैसी ही नहीं दिखा सकते बिना अपने व्यक्तिगत हितों को शामिल किए। देश के ऊपर कर्ज़ था जिसपर आप ने कुछ नहीं बोला। न्यूज़ रिपोर्ट करिए व्युज नहीं।” एक ने लिखा “इस्स बार अप 400 पार करा कर हो मानोगे।” एक ने लिखा “क्या आप जासूस बनने की कोशिश कर रहे हैं। पत्रकार हो पत्रकार ही रहो।”
So election commissioner Ashok Lavasa who put up dissenting notes on code of conduct violations against the BJP leadership in 2019 general elections will not be chief election commissioner after all. Being sent to the ADB as vice president.. any guesses why?
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) July 15, 2020
बता दें एडीबी ने एक बयान जारी कर कहा है, ‘एडीबी ने अशोक लवासा को निजी क्षेत्र और सार्वजनिक- निजी भागीदारी के कारोबार के लिये उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। वह दिवाकर गुप्ता का स्थान लेंगे जो कि 31 अगस्त को सेवानिवृत हो रहे हैं।’ सूत्रों ने कहा कि उनकी एडीबी के उपाध्यक्ष के तौर पर नियुक्त भारत सरकार की सिफारिश पर हुई है।
2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी के भाषण को लेकर आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। चुनाव आयोग की एक बैठक में बाकी दोनों आयुक्त पीएम को क्लीन चिट दे रहे थे, लेकिन अशोक लवासा नहीं माने और अड़े रहे। तब फैसला सर्वसम्मति से नहीं, बल्कि बहुमत से हुआ और पीएम मोदी को क्लीन चिट दे दी गई। ऐसे कई मौके आए जिन पर अशोक लवासा का रुख सरकार को चुभता रहा।
अशोक की कई बातें लोगों को अच्छी लगी, लेकिन सरकार को पंसद नहीं आई। अशोक लवासा के मुताबिक में कानून सबके लिए समान है। कानून के मुताबिक सबके साथ एक जैसा बर्ताव करना चाहिए चाहे आरोपी सत्ता में हो या विपक्ष में।