मोदी सरकार के कार्यकाल में लगातार आर्थिक नीतियों की विफलताओं को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। विगत कुछ महीनों की बात करें तो आर्थिक जानकार स्थिति को भयावह करार दे रहे हैं। यहां तक नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार को कहना पड़ गया कि भारत की अर्थव्यवस्था 70 सालों के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। गौर करने वाली बात यह है कि इस तरह हालात और सवाल बिहारी सरकार के कार्यकाल में भी उठते रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के पास आर्थिक मामलों की देखरेख के लिए कोई अच्छा सेनापति नहीं है? अगर एक पत्रकार के दावे पर यकीन करें तो आर्थिक मोर्चे पर बीजेपी के साथ यह परेशानी काफी पुरानी है। पत्रकार का दावा है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी अच्छे वित्त मंत्री की कमी थी। ऐसे में पार्टी के नेता प्रमोद महाजन ने मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम को वित्त मंत्री बनाने का ऑफर दिया था। लेकिन, दोनों ने इसे ठुकरा दिया।
‘नेशनल हेराल्ड’ में छपे एक लेख में वरिष्ठ पत्रकार और ‘Hindu Hriday Samrat: How the Shiv Sena changed Mumbai forever’ की लेखिका सुजाता आनंदन का दावा है कि जब 90 के दशक के आखिर में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनने जा रही थी तो उस दौरान उनके पास ऐसे टैलेंट की कमी जो आर्थिक मामलों का अच्छा जानकार हो और देश की वित्तीय व्यवस्था को अच्छे से संभाल सके। नरसिम्हा राव के दौर में आर्थिक उदारीकरण से देश की अर्थव्यस्था को जो दिशा तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने दी थी, उसकी विरासत को आगे बढ़ाने की चुनौती अटल सरकार के सामने खड़ थी। लेकिन, अपने कुनबे में योग्य शख्स नहीं मिलने की सूरत में बीजेपी के नेता प्रमोद महाजन ने दूसरे दलों से टैलेंट हंट की कोशिशें तेज कर दी। पत्रकार सुजाता आनंद नेशनल हेराल्ड में लिखती हैं, ” उनकी (बीजेपी) नज़र पीवी नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह पर थी और वे सोचते थे कि वह उनकी पकड़ में आसानी से आ सकते हैं। उन्हें लगा कि वह एक नौकरशाह हैं और कट्टर कांग्रेसी भी नहीं हैं।” सुजाता आगे लिखती हैं, “महाजन को इस काम में तब निराशा हाथ लगी जब उन्होंने पाया कि मनमोहन सिंह बिकने के लिए तैयार नहीं थे।”
सुजाता का दावा है कि मसला सिर्फ मनमोहन सिंह तक ही नहीं रुका। बीजेपी के टारगेट पर अगला शख्स पी चिदंबरम थे। उस दौरान चिदंबरम कांग्रेस से अलग होकर तमिल मानिला कांग्रेस के साथ थे। प्रत्रकार ने दावा किया है, “बीजेपी की दूसरी चॉइस पी. चिदबंरम थे जो ‘तमिल मानिला कांग्रेस’ के साथ थे। लेकिन, उस दौरान प्रमोद महाजन बेहद निराश हुए जब उन्होंने देखा कि विश्वास मत के दौरान चिदंरबम ने वाजपेयी सरकार के खिलाफ भाषण दिया।” जब बीजेपी को मनमोहन और चिदंबरम से निराशा हाथ लगी, तब उन्होंने अपने ही बीच के आदमी यशवंत सिन्हा के हाथ में वित्त मंत्रालय की कमान सौंपी। हालांकि, आर्थिक जानकार सिन्हा को भी बतौर वित्त मंत्री बीजेपी का एक असफल सिपाही मानते हैं। मोदी सरकार के पिछले और वर्तमान कार्यकाल में भी आर्थिक मोर्चे पर चुनौती सबसे ज्यादा बनी हुई है।
सुजाता आनंदन की माने तो भारतीय जनता पार्टी के साथ यह चुनौती हमेशा से रही है। उन्होंने बताया है कि जब कांग्रेस महाराष्ट्र और केंद्र दोनों जगहों से सत्ता से बाहर हुई, तब महाराष्ट्र में भी आर्थिक विभाग को लेकर बीजेपी और शिवसेना के बीच खूब माथा-पच्ची हुई थी। उस दौर में दोनों ही पार्टियों के नेताओं ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि मंत्रालयों के लिए उनके पास सही और विशेष टैलेंट नहीं है। शिवसेना के नेता प्रमोद नावलकर ने ईमानदारी से कहा था कि हमारे पास मुख्यमंत्री पद को संभालने के लिए शरद पवार की क्षमता वाला कोई विकल्प नहीं है।