देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के जीवन, कार्यों और आदर्शों को सामने रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सोमवार को कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए धर्मनिरपेक्षता एक अकाट्य जरूरत है। सोनिया ने यह भी कहा कि धर्मनिरपेक्षता के बिना भारत नहीं हो सकता और यह आदर्शों से कहीं बढ़ कर है और रहेगी।
कांग्रेस अध्यक्ष यहां नेहरू जी की 125 वीं जयंती पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित कर रही थीं। सोनिया ने कहा कि जवाहरलाल नेहरू के लिए धर्मनिरपेक्षता आस्था का सवाल था। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता के बिना कोई भारतीयता, कोई भारत नहीं हो सकता। धर्मनिरेपक्षता आदर्श से बढ़ कर है और रहेगी। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए यह एक अकाट्य जरूरत है।
सोनिया ने याद दिलाया कि नेहरू ने एक बार आगाह किया था कि अगर धर्मनिरपेक्षता पर कोई आंच आती है तो वे इसकी रक्षा के लिए अपने जीवन के अंतिम दम तक संघर्ष करेंगे। उन्होंने कहा कि नेहरू के जीवन और कार्यों के बारे में जानकारी हाल के दिनों में तथ्यों को गलत ढंग से रखने और तोड़-मरोड़ कर पेश करने से कमजोर हुई है।
एक आधुनिक भारत के निर्माण के प्रति देश के पहले प्रधानमंत्री के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि उन्होंने एक मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र को विकसित करने के लिए काम किया। उन्होंने कहा कि नेहरू की उपलब्धियों का लाभ मिलना जारी है। सोनिया ने कहा कि नेहरू ने एक नए बौद्धिक दृष्टिकोण, एक नई सामाजिक संवेदनशीलता और भारतीय की एक नई भावना को ढाला। कांग्रेस अध्यक्ष ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र पर जोर देने में नेहरू की भूमिका को भी याद किया।
सोनिया ने कहा कि नेहरू का यह मत बिल्कुल सही साबित हुआ है कि बहुजातीय, बहुधार्मिक, बहुभाषाई और बहुक्षेत्रीय समाज में सिर्फ संसदीय लोकतंत्र और एक धर्मनिरपेक्ष सरकार ही देश को एकजुट रख सकती है।
लंबे अरसे बाद कांग्रेस का यह ऐसा पहला आयोजन है जिसमें ममता बनर्जी और वाम दलों के नेता हिस्सा ले रहे हैं। परमाणु करार के मुद्दे को लेकर वाम दलों ने 2008 में यूपीए-एक सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, जबकि तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने 2012 में यूपीए-दो सरकार से नाता तोड़ा था। इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा के किसी अन्य नेता को आमंत्रित नहीं किया गया है।
कांग्रेस पार्टी के इस आयोजन को सभी गैर भाजपा और गैर राजग दलों को धर्मनिरपेक्षता की छतरी तले एकजुट करने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है। सम्मेलन में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, माकपा के प्रकाश करात और सीताराम येचुरी, पूर्व प्रधानमंत्री और जेडीएस प्रमुख एचडी देवगौड़ा, जद (एकी) अध्यक्ष शरद यादव, भाकपा के डी राजा, राकांपा महासचिव डीपी त्रिपाठी ने शिरकत की।
सोनिया ने कहा कि यह सम्मेलन सिर्फ पंडित नेहरू की 125वीं जयंती मनाने भर का नहीं, बल्कि नेहरू की विरासत की प्रासंगिकता, स्थायित्व और अपरिहार्यता की पुष्टि करने का एक अवसर है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन उस उद्देश्य की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान करेगा।
सोनिया गांधी ने नेहरू का हवाला देते हुए कहा कि लोकतंत्र में हम जीत और हार को गरिमा से स्वीकार करना जानते हैं। जो लोग जीते हैं, उन्हें जीत को सिर पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जो लोग हारे हैं, उन्हें निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। जीतने और हारने का तरीका चुनाव नतीजों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। गलत तरीके से जीतने से बेहतर सही तरीके से हारना है।
समारोह के दौरान देश के पहले प्रधानमंत्री की विरासत और दुनिया के बारे में उनके विचारों को रेखांकित किया गया, जिसमें अतंरराष्ट्रीय नेताओं और भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
समारोह में अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, घाना के जान कुफूर, नाइजीरिया के जनरल ओबासांजो, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल, भूटान की रानी मां दोरजी बांग्मो वांगचुक, पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मा जहांगीर, दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता सेनानी अहमद काथराडा और दुनिया भर से 11 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।