भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड (सेबी) ने उच्चतम न्यायालय में संकेत दिया है कि वह उधार लिए गए शेयरों की ‘शार्ट सेलिंग’ या बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में नहीं है। नियामक ने कहा कि वह एक छोटी ‘शार्ट सेलर’ हिंडनबर्ग रिसर्च के एक समूह पर लगाए गए आरोपों के साथ-साथ उसके शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव की जांच कर रहा है।
खास बात यह है कि सेबी ने शीर्ष अदालत को भेजे 20 पृष्ठ के दस्तावेज में एक बार भी अडाणी समूह का नाम नहीं लिया है। सेबी ने अडाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट के बाद दर्ज दो जनहित याचिकाओं (पीआइएल) पर सोमवार को सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को लिखित दस्तावेज में बताया कि ‘शार्ट सेलिंग’ क्या है और हिंडनबर्ग रिसर्च क्या है। दस्तावेज के अनुसार, सेबी नियमों, ‘शार्ट सेलिंग’ के नियमों के उल्लंघन की जांच के लिए ‘‘हिंडनबर्ग के आरोपों और रिपोर्ट जारी होने से ठीक पहले और ठीक बाद की बाजार की गतिविधियों दोनों की जांच कर रहा है।’
नियामक ने बताया कि वह नियमों के किसी भी उल्लंघन की पहचान के लिए समूह के खिलाफ अमेरिकी ‘शार्ट सेलर’ हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के साथ-साथ रिपोर्ट जारी होने के तुरंत पहले और बाद की बाजार गतिविधियों की जांच कर रहा है । सेबी ने न्यायालय से यह भी कहा कि उसके पास अनवरत कारोबार सुनिश्चित करने और शेयर बाजार में अस्थिरता से निपटने के लिए मजबूत ढांचा है।
सेबी ने दावा किया कि विकसित प्रतिभूति बाजार दुनियाभर में ‘शार्ट सेलिंग’ को ‘वैध निवेश गतिविधि’ के रूप में मानते हैं। हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों को अडाणी समूह ने खारिज कर दिया था। हालांकि, हिंडनबर्ग की इस रिपोर्ट के बाद समूह की कंपनियों का बाजार पूंजीकरण सामूहिक रूप से 120 अरब डालर से ज्यादा गिर गया है।
सेबी ने कहा कि हाल ही में अडाणी समूह के शेयरों में भारी गिरावट से शेयर बाजार पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा है। सेबी ने कहा, ‘भारतीय बाजार इससे पहले और भी बुरी अस्थिरता देख चुका है, विशेषकर कोरोना महामारी के समय, जब दो मार्च, 2020 से 19 मार्च, 2020 (13 कारोबारी दिवस) के बीच निफ्टी लगभग 26 फीसद गिर गया था।बाजार अस्थिरता को देखते हुए सेबी ने 20 मार्च, 2020 को अपने मौजूदा बाजार तंत्र की समीक्षा की थी और कुछ बदलाव किए थे।’