देश-विदेश में संता-बंता के लतीफे लोगों का जी बहलाते रहे हैं, लेकिन अब इन्हें लेकर संवेदनशील आपत्ति जाहिर की गई है, अब अदालत परखेगी कि क्या ये वाकई एतराज लायक हैं। ‘संता बंता’ के चुटकुले शुक्रवार को उस समय सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा के दायरे में आ गए, जब शीर्ष अदालत ने सरदारों के बारे में चुटकुले पेश करने और उन्हें कम बुद्धिमान व्यक्ति के रूप में पेश करने वाली वेबसाइटों पर प्रतिबंध के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिये सहमति दे दी।

न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा की पीठ ने कहा, यह (सिख) समुदाय अपने जबरदस्त हास्यबोध के लिये जाना जाता है और वे भी ऐसे चुटकुलों का आनंद लेते हैं। आपने खुशवंत सिंह के चुटकुले देखे होंगे। यह सिर्फ मनोरंजन है। आप इसे क्यों रोकना चाहते हैं। अपना मुकदमा अच्छी तरह तैयार कीजिए। हम आपको सुनेंगे।

यहां देखें वीडियो…

शीर्ष अदालत महिला वकील हरविंदर चौधरी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उनका कहना था कि 5000 से अधिक ऐसी वेबसाइट हैं जिनमें सरदारों पर चुटकुले हैं और जो इस समुदाय के सदस्यों को दयनीय स्थिति में पेश करते हैं। चौधरी चाहती हैं कि सिख समुदाय को लक्षित करने वाली वेबसाइटों को अवरुद्ध करने के लिए वेब फिल्टर लगाने का निर्देश दूरसंचार मंत्रालय को दिया जाए क्योंकि इन तरह के चुटकुलों से भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए और 153-बी का उल्लंघन होता है।

चौधरी का कहना है कि सिख समुदाय से संबंधित सभी चुटकुलों पर प्रतिबंध लगाया जाए। उनका यह भी कहना है कि उनके बच्चे अपमानित और शर्मिंदा महसूस करते हैं और वे अपने नाम के आगे सिंह और कौर नहीं जोड़ना चाहते।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान उनकी एक हालिया टिप्पणी का जिक्र किया जिसमे वे कहते हैं कि सारे बिहारी बुद्धिमान होते हैं। याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि इससे यह भी संकेत मिलता है कि मानो दूसरे समुदाय बुद्धिमान नहीं हैं। इस पर पीठ ने टिप्पणी की, चिंता मत कीजिए, जब वे पंजाब जाएंंगे तो कहेंगे कि सिख भी बुद्धिमान हैं।

गौरतलब है कि संता-बंता दो काल्पनिक हंसोड़ और मनमौजी पात्र हैं जो अपनी ‘कमअक्ली’ और निराली धुन के कारण विचित्र दृश्य और किस्सा रचते हैं। उनके चुटकले पहले भारतीय जनजीवन और लोकधारा से जुड़े थे। पर समय के साथ इनमें बदलाव आया और ये अश्लीलता बघारने लगे। संता-बंता को लेकर कई वेबसाइट हैं, जो नित नए लतीफे बनाकर प्रचारित करती हैं और वाट्स ऐप्स के दौर ने इन लतीफों का बाजार खड़ा कर दिया है। वक्त-वक्त पर एक समुदाय ने इन लतीफों पर आपत्ति जाहिर की है, पर पहली बार अदालत इसे परखने वाली है।

आपत्ति करने वालों का तर्क है कि संता-बंता के बहाने एक समुदाय विशेष की छवि धूमिल की जाती है, जबकि यह समुदाय अपनी सांस्कृतिक धरोहर, जीवटता और उद्यमशीलता के लिए जगत विख्यात है।

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