Prevention of Money Laundering Act: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को Enforcement Directorate (ED) प्रवर्तन निदेशालय की जमकर खिंचाई की। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी अरुण कुमार त्रिपाठी को हिरासत में रखे जाने पर आपत्ति जताई। बावजूद इसके कि छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के तहत त्रिपाठी के खिलाफ शिकायत पर संज्ञान लेने के आदेश को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया था।

जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने त्रिपाठी को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा, ‘PMLA का मकसद यह नहीं हो सकता कि किसी व्यक्ति को जबरन जेल में रखा जाए।’

ईडी ने त्रिपाठी को 8 अगस्त, 2024 को गिरफ्तार किया था लेकिन छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने 7 फरवरी, 2025 को उनके खिलाफ दर्ज शिकायत का संज्ञान लेने वाले स्पेशल कोर्ट के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उन पर मुकदमा चलाने के लिए जरूरी मंजूरी नहीं ली गई थी।

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क्या कहा था हाई कोर्ट ने?

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 6 नवंबर, 2024 की दो जजों की पीठ के फैसले का हवाला दिया था। इस फैसले में जस्टिस ओका की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197(1), जिसके तहत किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले सरकार की मंजूरी जरूरी है, वह PMLA के मामलों पर भी लागू होगी।

ईडी से सवाल करते हुए जस्टिस ओका ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, ‘अगर संज्ञान (cognisance) रद्द कर दिया गया है, तो आरोपी को जेल में क्यों होना चाहिए?’ राजू ने जवाब में तर्क दिया कि संज्ञान लेने के आदेश को रद्द करने से गिरफ्तारी अवैध नहीं हो जाती। उन्होंने यह भी कहा कि अब मंजूरी (sanction) ले ली गई है और ईडी ने फिर से संज्ञान के लिए आवेदन किया है।

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498A के मामलों से की तुलना

जस्टिस ओका ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (जो पति या ससुराल पक्ष द्वारा विवाहित महिला पर क्रूरता को अपराध मानती है) के कथित दुरुपयोग से इसकी तुलना करते हुए कहा, ‘PMLA का मकसद किसी व्यक्ति को जबरन जेल में रखना नहीं हो सकता। मैं साफ-साफ कहूं, कई मामलों को देखकर, देखें कि 498A मामलों में क्या हुआ, अगर ED का यही तरीका है…अगर प्रवृत्ति यह है कि किसी व्यक्ति को किसी भी तरह जेल में ही रखा जाए, भले ही संज्ञान को रद्द कर दिया गया हो, तो इस पर क्या कहा जा सकता है?’

अदालत ने कहा, ‘अगर अधिकारी ईमानदारी से कार्रवाई नहीं करेंगे तो उन्हें इसकी सजा भुगतनी चाहिए। यह आवेदन ED द्वारा पेश किया जाना चाहिए था ना कि आरोपी द्वारा। ED को हर मामले में स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।’ 

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने क्या दलील दी?

राजू ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंजूरी अनिवार्य करने से पहले ED ने कई शिकायतें दर्ज कराई थीं। उन्होंने कहा, ‘संज्ञान रद्द होने से आरोपी को नियमित जमानत पाने का अधिकार नहीं मिल जाता’ लेकिन बेंच उनके इस तर्क से सहमत नहीं हुई। जस्टिस ओका ने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘हम किस तरह के संकेत दे रहे हैं? संज्ञान लेने का आदेश रद्द कर दिया गया और व्यक्ति, अगस्त 2024 से हिरासत में है।’

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एएसजी राजू ने यह भी कहा कि संज्ञान रद्द करने का कारण यह नहीं था कि कोई अपराध साबित नहीं हुआ बल्कि मंजूरी नहीं मिली थी, जो अब मिल गई है। एएसजी राजू ने कहा, ‘धोखेबाज तकनीकी आधार पर बच नहीं सकते। ये वे अधिकारी हैं जिन्होंने समानांतर शराब का कारोबार चलाया और पैसा दुबई भेजा।’ इसके बाद बेंच ने स्पष्ट किया कि त्रिपाठी को अब तक दोषी नहीं ठहराया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संज्ञान रद्द होने के बाद हिरासत को जारी नहीं रखा जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि अब विशेष अदालत इस बात की जांच करेगी कि दी गई मंजूरी वैध है या नहीं।

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