हाल में भारतीय सेना ने उपग्रह संचार में परिचालन तत्परता सुनिश्चित करने के लिए अपनी सभी अंतरिक्ष-आधारित संपदाओं का परीक्षण किया। पांच दिवसीय इस अभ्यास में सेना ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रिपोर्ट किए गए संचार, साइबर और विद्युत चुंबकीय प्रभावों पर उपग्रह से जुटाए आंकड़ों का अध्ययन-विश्लेषण किया। ‘स्काईलाइट’ नाम का यह अभ्यास 25 से 29 जुलाई तक चला।

उच्च तकनीक वाली उपग्रह प्रणालियों का परिचालन तेजी से सुनिश्चित करने और कई अचानक होने वाली घटनाओं पर केंद्रित 100 फीसद उपग्रह संचार सिस्टम को सक्रिय किया गया। इस अभ्यास से स्पष्ट है कि भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान अंतरिक्ष सैन्य संचार और इलेक्ट्रानिक युद्ध प्रणाली में महारत हासिल करने की योजना पर काम कर रहा है। इस दिशा में वैश्विक स्तर पर सामरिक होड़ है। अमेरिका और चीन जैसे देश इस दिशा में बढ़त हासिल कर चुके हैं। अब अंतरिक्ष केंद्रित सामरिक होड़ को लेकर भारतीय सैन्य प्रतिष्ठान गंभीर हैं।

यूक्रेन युद्ध के उपग्रहीय आंकड़े

सेना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से संबंधित कई उपग्रहों की सेवाओं का उपयोग कर रही है। अभ्यास के दौरान स्थिर ‘टर्मिनल’, परिवहन योग्य वाहन वाले टर्मिनल, ‘मैन-पोर्टेबल’ और छोटे ‘फार्म फैक्टर मैन-पैक टर्मिनल’ आदि का परीक्षण किया गया। भारतीय सेना यूक्रेन में चल रहे युद्ध का बारीकी से अध्ययन कर रही है, ताकि इससे संचार तकनीक से संबंधित सबक लिए जा सकें।

इसमें सेना का पूरा ध्यान सैन्य संचार एवं इलेक्ट्रानिक युद्ध पर है। भारतीय सेना ने इस युद्ध से सीखा है कि शत्रु क्षेत्र में उपयुक्त ‘बैकहाल’ के साथ संचालित होने वाली सामरिक संचार प्रणाली अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभ्यास के दौरान विश्वसनीय उपग्रह संचार की प्रभावशीलता का भी खुलासा हुआ। अब सेना उद्योग व शिक्षा जगत के साथ ‘छोटे आकार के हाथ से पकड़े जाने वाले सुरक्षित उपग्रह फोन’ विकसित करने में लगी हुई है।

डेटा की गोपनीयता और सुरक्षा की कवायद

भारतीय सेना अपनी सूचनाओं की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ‘क्वांटम कंप्यूटर’ हमलों के खिलाफ ‘एन्क्रिप्शन’ प्रतिरोधी तरीके विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। पारंपरिक ‘क्रिप्टोग्राफिक’ प्रणाली को क्वांटम कंप्यूटर की मदद से मिनटों में पूरी तरह या आंशिक रूप से पढ़ा (क्रैक किया) जा सकता है। इस तरह की सैन्य क्षमता किसी भी देश की संवेदनशील प्रणालियों को खतरे में डालने के लिए एक बड़ा हथियार हो सकती है, जिससे राष्ट्रीय संप्रभुता को कई तरह से खतरा हो सकता है।

यही कारण है कि पारंपरिक क्रिप्टोग्राफी को क्वांटम प्रतिरोधी क्रिप्टोग्राफिक विधियों के साथ बदलने की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में भारतीय सेना सूचना गोपनीयता में सुधार के लिए क्वांटम कंप्यूटिंग का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। यह संचार और क्रिप्टोग्राफी के लिए ‘क्वांटम कंप्यूटिंग एप्लिकेशन’ को विकसित करने के लिए उद्योग और शिक्षाविदों के साथ सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा है।

उपग्रह संचार क्षमता पर जोर

सेना ने महू स्थित अपने ‘मिलिट्री कालेज आफ टेलीकम्युकेशन इंजीनियरिंग’ (एमसीटीई) में प्रशिक्षण के लिए एक संचार उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने की योजना बनाई है। इसके लिए सेना ने ‘रिक्वेस्ट फार इंफारमेशन’ (आरएफआइ) जारी किया है। अभी सेना के कुछ समर्पित उपग्रह हैं। जैसे, नौसेना के लिए जीसैट-7, वायुसेना के लिए जीसैट-7ए। इनके अलावा रक्षा मंत्रालय ने नवंबर में वायुसेना के लिए एक और जीसैट-7सी उपग्रह की मंजूरी दी है, जिसपर 2,236 करोड़ रुपए खर्च होंगे।

सेना के लिए मार्च में एक उपग्रह जीसैट-7बी की मंजूरी दी गई, जिसपर 4,600 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अप्रैल-मई 2020 में चीन के साथ सैन्य गतिरोध के बाद भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अपनी क्षमता बढ़ाने के साथ निगरानी व्यवस्था उन्नत करने की दिशा में काम कर रही है। हाल में अंतरराष्ट्रीय सलाहकार संस्था ‘कट्स इंटरनेशनल’ के एक संवाद कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने कहा कि रक्षा क्षेत्र में एक सुसंगत राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की जरूरत है, जिसके लिए संयुक्त संचालन कमांड के साथ ही संसाधनों की देखरेख के लिए संयुक्त कमान की जरूरत होगी।

क्या हैं वैश्विक चुनौतियां

चीन ने अंतरिक्ष में 1300 छोटे जासूसी उपग्रहों का समूह स्थापित करने की योजना पर काम शुरू किया है, जिसे नाम दिया है- गुओवांग। अमेरिका ने अंतरिक्ष में जासूसी उपग्रहों का जाल बिछा रखा है, जिसे उसने ‘ग्लोबल इंफार्मेशन ग्रिड’ (जीआइजी) नाम दिया है। यह पृथ्वी की उच्च कक्षा के साथ निचली कक्षा में स्थापित उपग्रहों के बीच संचार नेटवर्क कायम रखता है। यह प्रणाली एक से ज्यादा मिशन के लिए काम कर रही है। चीन को अभी अमेरिका के ‘इंटरनेशनल ट्रैफिक इन आर्म्स रेगुलेशंस’ (आइटीएआर) की बाध्यता का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, आइटीएआर से चीन के गुओवांग उपग्रह समूह के विकास में गतिरोध नहीं आया है।

क्या कहते हैं जानकार

भारत में रक्षा बजट को और परिणाम केंद्रित बनाने की जरूरत है। इसके लिए कई स्तर पर पुनर्गठन किया जाना चाहिए। रक्षा वित्त सुधार में नवाचार को गति देना होगा, तभी महत्त्वाकांक्षी योजनाओं पर काम किया जा सकेगा।

मनोज कौशिश, पूर्व वित्त सलाहकार (अधिग्रहण), रक्षा मंत्रालय

21वीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति अहम मसला है। इसके बगैर ढांचागत सुधार संभव नहीं। हमें दूसरों से सबक लेकर अपनी योजनाएं बनानी होगी। एक व्यापक कोशिश होनी चाहिए जिससे कि वैश्विक स्तर की क्षमता विकसित की जा सके, जो भारतीय सेना के तीनों अंगों के द्वारा नेटवर्क केंद्रित अभियानों के सामर्थ्य को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगी।

कमोडोर अनिल जयसिंह, रक्षा विशेषज्ञ