संकरी गलियां में बिजली के तारों के मकड़जाल होने के कारण अनाज मंडी की इस कारखाने को मौत के चैंबर के रुप में तब्दील कर दिया। तंग इमारत होने की वजह से वेंटिलेशन के पर्याप्त और पुख्ता इंतजाम नहीं होने से हालत यह हुई कि आग में फंसे लोगों को बचाने दमकलकर्मी पहुंचे तो जरूर लेकिन उन्हें रास्ता नहीं मिल पाया। नतीजा यह हुआ कि काफी मशक्कत से पहुंचे दमकलकमिर्यों को ग्रिल काटकर अंदर घुसना पड़ा और तब तक कई लोगों का दम बिल्कुल ही घुट चुका था।

बिना अग्निशमन विभाग की अनापत्ति प्रमाण पत्र के सैकड़ों की संख्या में भीड़भाड़ वाली दिल्ली की अनाज मंडी में चल रहे कारखाने में आग लगने के समय ज्यादातर लोग सो रहे थे। चारों तरफ मची अफरा-तफरी में फंसे लोग चार मंजिला इमारत की उन सीढ़ियों की तरफ भागे जहां आने और जाने का सिर्फ एक ही रास्ता था। रास्ते पर भीड़ बढ़ती गई और लोग वहीं फंस कर रह गए। देखते देखते जहरीले धुएं ने लोगों का दम घोंट दिया और जो इमारत में फंसे जो कुछ लोग बच गए वे अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं।

मौका ए वारदात स्थल पर बचाव कार्य में जुटे एनडीआरएफ और दिल्ली अग्निशमन विभाग के कर्मचारियों के साथ स्थानीय लोगों गुलशन खान और गगन सिंह का कहना था कि पुरानी दिल्ली के इस सघन इलाके की सबसे बड़ी खामी यहां के खंभों पर लटकते हुए तार हैं। लगातार खतरनाक बने इन तारों से आने वाले समय में भी शार्ट सर्किट की वजह से आग लगने से इंकार नहीं किया जा सकता।

राजधानी दिल्ली की खूबसूरती में बदरंग बने इस दिशा में अब तक कोई मुकम्मल कारर्वाई नहीं होना भी हादसे का कारण है। इलाके के इन दोनों व्यक्तियों का यह भी तर्क था कि जब रिहाईसी इलाके में छोटी फैक्टरियां पर पाबंद है और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी समिति इसकी देखरेख कर सीलिंग और तोड़फोड़ कर रही है तब ऐसे सख्ती के बाबजूद मौत की यह फैक्टरी बिना सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से कैसे चल सकती है। जांच के बाद दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

जबकि दिल्ली अग्निशमन विभाग के प्रमुख अतुल गर्ग ने बताया कि बिल्डिंग में आग से निपटने के सुरक्षा इंतजाम नहीं थे और न ही आग बुझाने के उपकरण लगाए गए थे। बिना विभाग के एनओसी के इतनी बड़ी फैक्टरी कैसे चलाई जा रही थी यह जांच का विषय है। देश की राजधानी दिल्ली में रविवार का दिन बड़ा मनहूस साबित हुआ। सूर्य की किरणें भी नहीं निकली थीं कि भीषण आग की लपटों में 43 जिंदगियां खाक हो गईं। रानी झांसी रोड के बांके विहारी खाटू श्याम मित्र मंडल के गुंबद नुमा इस प्रवेश द्वार पर दमकल की गाड़ियां आग बुझाने तो पहुंचीं लेकिन रास्ता काफी संकरा होने से गाड़ियां अंदर नहीं जा सकी। एक छोटी गाड़ी को अंदर भेजा गया और अन्य बड़ी गाड़ियों को 500 मीटर पहले ही खड़ी कर बचाव अभियान शुरु किया गया तो देखा गया कि दरवाजा बाहर से बंद था और अंदर से लोग बचाओ-बचाओ की गुहार लगा रहे थे। बचाव दल दरवाजा तोड़कर लोगों को बाहर निकालना शुरू किया तो कई लोग बेहोशी की हालत में इधर उधर पड़े मिले। दरवाजे में बाहर से ताला लगे होने को भी इतनी अधिक संख्या में मौत की वजह माना जा रहा है।

देश की राजधानी की खूबसूरती पर बदनुमा दाग लगाने वाले रिहायशी इलाके में चलाए जा रहे अवैध फैक्टरी का दंश रविवार सुबह लोगों को फिर देखने को मिला। पूरा इलाका ऐसे अवैध और छोटी यूनिट से भरा हुआ है। केंद्र सरकार के अनधिकृत कालोनियों के नियमितीकरण की अधिसूचना के बाद शनिवार को ही उत्तरी दिल्ली नगर निगम की विशेष बैठक बुलाकर 121 घरेलू उद्योगों को दी जाने वाली लाइसेंस के लिए आनलाइन सेवा के शुरुआत की घोषणा के दूसरे दिन छोटी फैक्टरी से ही इतना बड़ा हादसा सामने आया। शहरी क्षेत्रों में 112 और ग्रामीण आबादी में नौ घरेलू उद्योग चलाने की अनुमति के बाबत निगम का तर्क था कि इससे बेरोजगारी की समस्या पर काबू पाया जा सकेगा।

इस सघन इलाके की सबसे बड़ी खामी संकरी गलियों का होना है जहां गाड़ियां ही नहीं पहुंच पातीं। मेरा सुझाव है कि इन इलाकों में व्यापार की अनुमति न मिले।
-अतुल गर्ग, मुख्य अग्निशमन अधिकारी