New Chief Justice Sanjiv Khanna: जस्टिस संजीव खन्ना ने आज सुबह देश के 51वें सीजेआई के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में खन्ना को पद की शपथ दिलाई। जस्टिस संजीव खन्ना भी खुद से पहले सीजेआई रहे डीवाई चंद्रचूड़ की तरह ही जजों के परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे चुके हैं। वहीं, उनके चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के काफी चर्चित जज थे।
देश के 51वें सीजेआई संजीव खन्ना को खुद भी कानूनी क्षेत्र में करीब 40 बरस का अनुभव है। अब बात की जाए उनके चाचा हंसराज खन्ना की तो उनका नंबर भी सीजेआई बनने का था पर पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने उनकी अनदेखी करते हुए एमएच बेग को सीजेआई बना दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया। ऐसा कहा जाता है कि इमरजेंसी के दौरान हंसराज खन्ना ने एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला वाले मामले में जो फैसला सुनाया था वहीं इंदिरा गांधी की सरकार को पसंद नहीं आया और इसी वजह से उन्हें चीफ जस्टिस बनने का अवसर नहीं दिया।
क्या था वह पूरा मामला
48 साल पुराने इस मामले में वकील शिवकांत शुक्ला को जेल में डाल दिया गया और उन्हें बिना किसी मुकदमे के ही अरेस्ट कर लिया गया था। इसके खिलाफ उन्होंने जबलपुर हाई कोर्ट का रुख किया और कोर्ट ने उनके हक में फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि जीवन के अधिकार से किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता है।
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इतना ही नहीं फिर यह मामले सुप्रीम कोर्ट में भी जा पहुंचा। इस मामले पर पांच जजों की बेंच बैठी। इनमें से चार जजों ने तो हाई कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। इनमें से अकेले जज हंसराज खन्ना ऐसे थे जिन्होंने अलग फैसला दिया। हंसराज खन्ना ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत दिए गए जीवन के अधिकार से किसी को भी वंचित नहीं किया जा सकता है।
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क्या है सीजेआई की नियुक्ति की प्रक्रिया
इस सब में सबसे खास बात तो यह है कि मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कोई प्रक्रिया तय नहीं है। संविधान के आर्टिकल 124(1) में इतना कहा गया है कि भारत में एक सुप्रीम कोर्ट होगा और इसके मुख्य न्यायाधीश होंगे। कोई प्रक्रिया तय नहीं है, इसलिए सीजेआई की नियुक्ति एक परंपरा के तहत होती है। इस परंपरा के मुताबिक, सीजेआई के रिटायर हो जाने के बाद में उनकी जगह पर सबसे वरिष्ठ जज को कुर्सी दी जाती है। वरिष्ठता का पैमाना उम्र के बजाय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कितने साल काम किया है, इस पर तय होता है।