सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को लेकर सुनवाई पूरी कर ली है। कोर्ट ने गुरुवार को 10 दिनों तक चली सुनवाई के बाद समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत ने दोहराया कि वह संसद को कानून बनाने या नीति निर्माण के दायरे में आने के लिए नहीं कह सकती।
श्रीलंका ने समलैंगिक विवाह को नहीं माना अपराध
वहीं, भारत में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर हो रही सुनवाई के बीच पड़ोसी मुल्क श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की मांग करने वाले विधेयक को हरी झंडी दे दी है। श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में पुट्टास्वामी (2017) और नवतेज जौहर (2018) के भारतीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए ऐतिहासिक फैसलों का हवाला दिया है।
श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने भारत का दिया उदाहरण
चीफ जस्टिस ऑफ श्रीलंका जयंता जयसूर्या, और जस्टिस विजिथ मललगोडारे और जस्टिस अर्जुन ओबेयेसेकेरे की पीठ ने डिक्रिमिनलाइजेशन बिल के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। पीठ ने अपने फैसले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जौहर के फैसले सहित कई मामलों का हवाला दिया, जिसमें पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलग-अलग फैसलों पर खास जोर दिया गया था।
तीन-जजों की पीठ ने समलैंगिक और समलैंगिक समानता के लिए राष्ट्रीय गठबंधन बनाम न्याय मंत्री (1998) में पूर्व न्यायाधीश अल्बर्ट लुइस सैक्स के फैसले पर भी भरोसा किया था, जिसमें दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक अदालत ने सहमति से समलैंगिकता को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों को रद्द कर दिया था।
समलैंगिक जोड़ों द्वारा पालन-पोषण किए गए बच्चों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ मेनका गुरुस्वामी ने समलैंगिक जोड़ों द्वारा बच्चों के पालन-पोषण पर प्रतिक्रिया दी और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा समलैंगिक जोड़ों के गोद लेने के अधिकारों पर तर्क दिया गया। गुरुस्वामी ने कई अध्ययनों के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे अन्य संवैधानिक न्यायालयों के निर्णयों के साथ-साथ समलैंगिक जोड़ों द्वारा गोद लेने और पालन-पोषण के प्रभावों के बारे में खंडपीठ को तर्क दिया।
CJI चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पीठ ने की सुनवाई
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी कि समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का अधिकार है या नहीं। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की खंडपीठ ने इस मामले में 18 अप्रैल को मामले की सुनवाई शुरू की थी। मौजूदा मुद्दे पर पीठ के समक्ष बीस याचिकाएं हैं, जिसे विभिन्न समलैंगिक जोड़ों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों और LGBTQIA+ कार्यकर्ताओं ने दायर किया है।
केंद्र सरकार कर रही सेम सेक्स मैरिज का विरोध
मामले में सरकार की दलील थी कि यह न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 160 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी। केंद्र सरकार ने यह कहकर इसका विरोध किया कि विशेष विवाह अधिनियम को पूरी तरह से अलग उद्देश्य को ध्यान में रखकर बनाया गया था और जब 1954 में इसे पारित किया गया था, तो विधायिका ने कभी भी समलैंगिक जोड़ों को इसके दायरे में लाने पर विचार नहीं किया।