उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन किया है। पार्टी ने 80 में से 37 सीटों पर अपना कब्जा जमाया है। हालांकि, पार्टी अब विधानसभा में विपक्ष का नेता चुनने की समस्या से जूझ रही है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा रहे थे। अब उन्होंने कन्नौज लोकसभा सीट को बरकरार रखने के लिए करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया और यह सीट खाली हो गई है।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा का इससे बेहतर प्रदर्शन 2004 में रहा था। उस समय पार्टी के संस्थापक और पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में 36 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के बावजूद अखिलेश इस बात पर ज्यादा ध्यान देंगे कि लोकसभा में जनादेश को आगे ले जाया जाए और 2027 के विधानसभा में भी जनता का आशीर्वाद बना रहे। उन्होंने आगे कहा कि एक ऐसे नेता की जरूरत है जो अखिलेश यादव की जगह ले सके।
अखिलेश ने आजमगढ़ से सांसद पद छोड़ने के बाद 2022 में करहल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था और भाजपा से यह सीट उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने छीन ली थी, लेकिन हाल के चुनावों में हार गई थी। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में सपा ने 111 सीटें जीती थीं और राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसी के बाद अखिलेश यादव ने एलओपी का पद संभाला था।
तीखे वक्ताओं की कमी
पर्यवेक्षकों की तरफ से कहा गया है कि इस समय विधानसभा में तीखी प्रतिक्रिया देने वालों की काफी कमी है, जो जरूरत पड़ने पर सामाजिक मुद्दों को उठा सके। साथ ही, पार्टी में अखिलेश जैसे कद्दावर नेता की भी काफी कमी है। इनके पीछे हमेशा विधायक खड़े रहते हैं। सपा के सबसे वरिष्ठ नेता आजम खान को एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया। वहीं, पूर्व विधायक राम गोविंद चौधरी 2022 का चुनाव हार गए। चौधरी जरूरी मुद्दों पर मुखर होने के लिए जाने जाते थे और सदन के नियमों से भी अच्छी तरह वाकिफ थे।
मौजूदा विधानसभा में सबसे ज्यादा अनुभव वाले सपा विधायक लालजी वर्मा हैं। यह छह बार के विधायक रह चुके हैं। वह साल 2022 के चुनावों से पहले सपा में शामिल होने से पहले सदन में बसपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक थे। इसमें उन्होंने कटेहरी से जीत दर्ज की थी। हालांकि, वह अब जल्द ही विधायक पद को छोड़ देंगे। उन्होंने भी अंबेडकर नगर लोकसभा सीट जीत ली है।
इन नेताओं में से एक चुन सकती है पार्टी
लोकसभा चुनाव के दौरान एक मनोज पांडे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। अब सपा सबसे वरिष्ठ विधायकों शिवपाल यादव, माता प्रसाद पांडे, इंद्रजीत सरोज, राम अचल राजभर, राम मूर्ति वर्मा और रविदास मेहरोत्रा में से किसी एक को अपना नया नेता प्रतिपक्ष चुन सकती है। अखिलेश के चाचा शिवपाल 6 बार विधायक रह चुके हैं। वह साल 2009 से 2012 के बीच में नेता विपक्ष की भूमिका भी निभा चुके हैं।
हालांकि, उनको अच्छे वक्ता के रूप में नहीं जाना जाता है। राजभर और सरोज की विधानसभा में मौजूदगी दर्ज नहीं हो पाई है। माता प्रसाद 2012 से लेकर 2017 तक अखिलेश के सीएम के कार्यकाल के दौरान विधानसभा के अध्यक्ष थे। उनको एक अच्छा वक्ता तो माना जाता है लेकिन वह अपनी उम्र की वजह से सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं होते हैं।
दूसरी तरफ लखनऊ सेंट्रल से विधायक मेहरोत्रा को एक अच्छे वक्ता के रूप में देखा जाता है। वह विधानसभा में काफी मुद्दों को उठाते रहे हैं। विपक्ष के नेता के तौर पर अखिलेश ने योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार पर विपक्ष के हमलों का करारा पलटवार किया है। वह सीएम आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के साथ कई बार बहस में शामिल रहे हैं। बात कभी-कभी व्यक्तिगत हमलों तक भी पहुंच चुकी है। यूपी विधानसभा में अखिलेश और आदित्यनाथ के बीच कई बार लंबी बहसें भी चली हैं।
उमेश पाल हत्याकांड को लेकर योगी और अखिलेश के बीच हुई थी तीखी नोंकझोंक
पिछले साल फरवरी में अखिलेश और आदित्यनाथ के बीच वकील उमेश पाल मर्डर केस को लेकर भी तीखी बहस हुई थी। वह 2005 के बीएसपी विधायक राजू पाल हत्याकांड के गवाह थे। जेल में बंद माफिया अतीक अहमद पर उमेश की हत्या की साचिश रचने का आरोप था। इन दोनों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
विधानसभा सत्र के दौरान अखिलेश ने सदन में यह मुद्दा उठाया, जबकि सीएम ने सपा पर अतीक को पनाह देने और उसे सांसद बनाने का आरोप लगाया। जब अखिलेश ने इस बात पर आपत्ति जताई तो योगी ने कहा था कि माफियाओं को मिट्टी में मिला देंगे। एक वरिष्ठ सपा नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जब भी पार्टी नए नेता का चुनाव करेगी तो इस बार जातीय समीकरण भी अहम भूमिका निभाएगा।