उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (11 अप्रैल) को कहा कि वह वर्तमान प्रचलित परंपराओं से नहीं बल्कि संवैधानिक सिद्धातों के आधार पर ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के महिलाओं के अधिकार पर फैसला करेगा। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘लैंगिक न्याय खतरे में है।’’न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, ‘‘हम अब संविधान के तहत तर्काधारों के अनुसार ही चलेंगे। इस याचिका की गंभीरता यह है कि लैंगिक न्याय खतरे में है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘क्या आप किसी महिला को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के उसके अधिकार से इंकार कर सकते हैं? किसी पर प्रतिबंध लगाने के कारण सभी के लिए समान और संविधान के मूल सिद्धातों के अनुरूप होने चाहिए।’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति वी गोपाल गौडा और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ भी शामिल थे।

अदालत ‘इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन’ द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति की मांग की गई थी। दो घंटे चली सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने प्रतिबंध का समर्थन कर रहे वकील से मंदिर बोर्ड के रोक के आदेश का समर्थन करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों के बारे में पूछा। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रचलित परंपराएं संवैधानिक मूल्यों के ऊपर नहीं हो सकतीं।