केरल के सबरीमाला मंदिर में शुक्रवार (19 अक्टूबर) को भी महिलाओं को प्रवेश नहीं मिल पाया। बुधवार-गुरुवार को भारी विरोध प्रदर्शन का सामना करने के बाद दशहरे पर महिलाएं कड़ी सुरक्षा के बीच मंदिर पहुंचीं। मगर वहां के कपाट पर ताले लगा दिए। ऐसे में पुजारियों के सामने पुलिस भी मजबूर नजर आई। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि वे महिलाओं को हर संभव मदद और सुरक्षा मुहैया कराएंगे। पर मंदिर में दर्शन कराना तो पुजारी का काम है।
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिन पहले इस मसले पर फैसला सुनाया था। पांच जजों वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से कहा था कि मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं को प्रवेश से कोई नहीं रोक सकता है। फिर भी सबरीमाला संरक्षण समिति व अंतर्राष्ट्रीय हिंदू मंच मंदिर में इस आयुवर्ग की महिलाएं की एंट्री रोकने पर अड़ा है। गुरुवार को इन संगठनों ने केरल में एक दिवसीय बंद का आह्वान किया था।
शुक्रवार को हैदराबाद मूल की पत्रकार कविता जक्कल और महिला कार्यकर्ता रेहाना फातिमा कुछ अन्य महिलाओं के साथ पुलिस सुरक्षा में सबरीमाला मंदिर की ओर बढ़ रही थीं। पर उनके हाथ निराशा लगी। केरल के आईजी एस.श्रीजीत ने एएनआई से कहा, “हमने महिला श्रद्धालुओं को हालात के बारे में बताया। वे अब यहां से लौटेंगी। यह उनका खुद का फैसला है। हम उन्हें (जक्कल व फातिमा) मंदिर परिसर तक ले गए थे। पर तंत्री-पुजारी ने कपाट खोलने से मना कर दिया। हम इंतजार कर रहे थे, तभी तंत्री बोला कि अगर महिलाओं को आगे लेकर जाएंगे, तो वे मंदिर बंद कर देंगे।”
बकौल आईजी, “यह परंपरा से जुड़ी हुई आपदा है। हम महिलाओं को मंदिर तक लेकर गए। उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई। लेकिन दर्शन तो पुजारी ही कराएंगे। उन्हें जिस प्रकार की सुरक्षा चाहिए, हम उन्हें मुहैया कराएंगे।” वहीं, सबरीमाला मंदिर के मुख्य पुजारी खंडरारू राजीवरू ने कहा था, “हमने मंदिर में ताला लगाने का फैसला किया है। हम चाभी देकर निकल रहे हैं। मैं श्रद्धालुओं के पक्ष में हूं। मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है।”
उधर, राज्य देवसम (धार्मिक ट्रस्ट) के मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन ने बताया, “कई लोग मंदिर में प्रवेश करना चाह रहे थे, जिनमें कुछ कार्यकर्ता भी थे। भीड़ में कौन क्या है, सरकार के लिए यह पता लगाना नामुमकिन है। लेकिन हमें पता है कि उस वक्त दो कार्यकर्ता मौजूद थीं, जिनमें से एक पत्रकार बताई जा रही हैं।”