दोनेत्स्क, लुहांस्क, खेरसन और जापोरिज्जिया को रूस में शामिल करने की घोषणा की गई है। पुतिन ने कहा, हम कीव के सत्ताधारियों से शत्रुता को तुरंत समाप्त करने, उस युद्ध को समाप्त करने का आह्वान करते हैं, जिसे उन्होंने 2014 में वापस शुरू किया। हम उनसे बातचीत दोबारा शुरू करने की अपील करते हैं। हम इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा, लेकिन हम डोनेत्स्क, लुहांस्क, खेरसन और जापोरिज्जिया में लोगों की पसंद पर चर्चा नहीं करेंगे। रूस उनके साथ विश्वासघात नहीं करेगा।

रूसी राष्ट्रपति ने जो स्पष्ट नहीं किया, वह यह है कि ये नवनिर्मित तथाकथित रूसी क्षेत्र वास्तव में किसका प्रतिनिधित्व करते हैं। यूक्रेन पर फरवरी में हमला शुरू करने से एक दिन पहले पुतिन ने डोनबास क्षेत्र के डोनेत्स्क और लुहांस्क को गणराज्य घोषित किया था। मौजूदा समय में यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र के स्थल जापोरिज्जिया के आसपास समेत सभी चार क्षेत्रों में भयंकर लड़ाई जारी है।

एक अनुमान के मुताबिक, 40 हजार वर्ग मील में फैले यह चारों प्रांत यूक्रेन के कुल क्षेत्रफल का करीब 15 फीसद हैं। पुतिन ने कहा कि चारों प्रांतों के नागरिक हमेशा के लिए रूस का हिस्सा रहेंगे। उनके मुताबिक, पश्चिमी देशों की रूस को उपनिवेश और गुलामों की भीड़ में बदलने की योजना है। पुतिन ने कहा कि रूस हर संभव तरीकों का इस्तेमाल कर इन प्रांतों की रक्षा करेगा।

पुतिन के इस बयान को परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी के रूप में देखा जा रहा है। रूस ने 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप के विलय की प्रक्रिया को दोहराते हुए ही इन चारों प्रांतों का विलय किया है। अपने सशस्त्र समर्थकों को जनमत संग्रह की प्रक्रिया की निगरानी में लगाया। रूस की इस कवायद का विरोध करने वाले देशों का कहना है कि परिस्थितियों को देखते हुए, इस तरह के आयोजन को स्वतंत्र या निष्पक्ष नहीं माना जा सकता है। रूस अपने पूर्व सोवियत संघ के स्वरूप को वापस पाने की वृहद योजना पर काम कर रहा है।

इसके तहत ही अपने सशस्त्र समर्थकों को क्षेत्रों में भेजने के साथ ही अपने अयोग्य और पक्षपातपूर्ण सहयोगियों को इस प्रक्रिया को स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया के रूप में मान्यता देने, क्षेत्रों को शामिल करने के लिए अपने संदेहास्पद रूप से बड़े लोकतांत्रिक जनादेश को प्रचारित करने और अवैधता की अंतरराष्ट्रीय आपत्तियों को खारिज कर विलय के साथ आगे बढ़ने के मसविदे पर काम कर रहा है।

पुतिन शासन का अपने कार्यों को सही ठहराने के लिए कानून का उपयोग करने का एक लंबा इतिहास रहा है। जैसा कि रूस और उसकी राजनीति के बारे में 24 किताबें लिखने वाले मार्क गेलोटी ने हाल ही में स्पेक्टेटर में लिखा है, पुतिन एक ऐसे व्यक्ति हैं जो आपके घर को जला देंगे, लेकिन पहले ऐसा करने के लिए खुद को इसकी स्वीकृति जारी करेंगे। पश्चिमी देश संयुक्त राष्ट्र के मुख्य मानवाधिकार निकाय में दो बड़ी विश्व शक्तियों-चीन और रूस के मानवाधिकार से जुड़े आरोपों की पड़ताल को लेकर दोहरी चुनौतियों से गुजर रहे हैं।

चीन पर जहां चरमपंथ विरोधी अभियान के दौरान पश्चिमी झिंजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन करने के आरोप हैं, वहीं यूक्रेन में युद्ध का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर रूस सरकार की कार्रवाई भी पड़ताल के दायरे में है। राजनयिकों और मानवाधिकारों के पैरोकारों का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के ऐसे दो प्रभावशाली सदस्यों के खिलाफ जाना कोई छोटा राजनीतिक लक्ष्य नहीं होगा, जो सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में शामिल हैं।

यह लोकतांत्रिक और अधिक निरंकुश देशों के बीच बढ़ती खाई की गवाही देता है और भू-राजनीतिक दबदबे के एक दांव के रूप में आकार ले रहा है, जिसका परिणाम जिनेवा सम्मेलन कक्ष से परे प्रतिध्वनित होगा। जिनेवा में मानवाधिकार परिषद की बैठक होनी है। ब्रिटेन, कनाडा, अमेरिका और पांच नार्डिक देश झिंजियांग में उइगर और अन्य मुस्लिम जातीय समूहों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर मार्च में अपने अगले सत्र में चर्चा पर सहमत होने के लिए परिषद के सदस्यों का आ’’ान कर रहे हैं। उनका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख की 31 अगस्त की उस रिपोर्ट को गति देना है, जिसमें इस क्षेत्र में चरमपंथ विरोधी अभियान के दौरान मानवता के खिलाफ चीन के कथित अपराधों को लेकर चिंता जताई गई थी।

उत्पीड़न पर चिंता

हाल में हंगरी को छोड़कर यूरोपीय संघ के ज्यादातर देशों ने यूक्रेन में युद्ध के रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों की व्यापक गिरफ्तारी और नजरबंदी, पत्रकारों, विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकारों के रक्षकों के उत्पीड़न को लेकर विशेष दूत नियुक्त करने का प्रस्ताव तैयार किया। दोनों मुद्दे सात अक्तूबर को परिषद के मौजूदा सत्र के अंत में मतदान के लिए रखे जाएंगे।यूरोपीय राजनयिकों ने चिंता व्यक्त की है कि रूस और चीन दोनों के साथ कई विकासशील देशों के सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक संबंध है, साथ ही उनकी चीन पर निर्भरता पश्चिमी देशों के प्रयासों पर पानी फेर सकती है।