गजेंद्र सिंह

अगर राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) की मानें तो शहर से ज्यादा गांव की महिलाएं अपने हक को लेकर सशक्त हैं। घरों और जमीन पर मालिकाना हक रखने वाली महिलाओं की संख्या गांवों में ज्यादा है। एनएफएचएस-5 (2019-2021) से पता चलता है कि देश भर में कुल मालिकाना हक रखने वाली महिलाएं जहां 43.3 फीसद हैं। ग्रामीण क्षेत्र में यह फीसद 45.7 है। एनएफएचएस-4 (2015-2016) के मुकाबले इस बार मालिकाना हक पाने वाली महिलाओं की संख्या में पांच फीसद की वृद्धि हुई है।

एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण पिछले दिनों जारी हुआ। इसी में महिला सशक्तीकरण को लेकर पांच बिंदु शामिल हैं। इसमें घर और जमीन में अकेले व संयुक्त रूप से रहने वाली महिलाओं को शामिल किया गया है। पिछले एनएफएचएस-4 (2015-16) सर्वेक्षण में देश भर में जहां 38.4 फीसद महिलाओं के पास घर और जमीन का मालिकाना हक था, वहीं एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण में यह बढ़कर 43.3 फीसद हो गया है। शहरों में अभी मालिकाना हक रखने वाली महिलाओं का फीसद 38.3 फीसद ही है, जबकि गांवों में ज्यादा है।

अभी महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चल रही हैं। इसमें राशन कार्ड धारक में महिलाओं को मुखिया बनाने के साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना में महिलाओं को मालिक बनाया जा रहा है। इसके अलावा मकान व जमीन की रजिस्ट्री में भी सरकार महिलाओं को मालिक बनाने पर कुछ रियायत देती है। बावजूद इसके शहरों में यह उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा है।

लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति और साझी दुनिया की प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा बताती हैं कि मालिकाना हक के मामले जो आंकड़े आएं हैं, उन पर पूरी तरह यकीन नहीं किया जा सकता। लोग अब भी संपत्तियां महिलाओं के नाम करने से हिचक रहे हैं या फिर किसी मजबूरी में कर रहे हैं। जिन योजनाओं से इसमें बढ़ावा मिल रहा है वह काबिले तारीफ है लेकिन अभी जागरूकता की कमी है।

प्रोफेसर कहती हैं कि शहर में महिलाओं की संख्या गांवों के मुकाबले कम होने का बड़ा कारण यह भी है कि हम समझते हैं कि खुला जीवन जीने वाली महिलाएं सब जानती हैं जबकि ऐसा नहीं है। वहीं महिला मुद्दों पर काम करने वालीं एक्शन एड से जुड़ी लखनऊ की कहकशा कहती हैं कि शहरों में महिलाएं अभी भी संघर्ष कर रही हैं। पितृसत्ता अभी भी हावी है जिसका बड़ा कारण है कि सरकारों के बढ़ावा देने के बावजूद महिलाओं को मालिकाना हक मिलने की संख्या अभी मामूली ही बढ़ी है।

एमपी और बिहार में महिलाओं का मालिकाना हक घटा

राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले अच्छी बढ़ोतरी दिखी है। जबकि मध्य प्रदेश में महिलाओं के हाथ से मालिकाना हक फिसला है। मध्य प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं का आंकड़ा 41.3 फीसद और शहर में यह 35.8 फीसद है। मध्य प्रदेश में कुल फीसद पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले घटा है। पिछली बार यानी सर्वेक्षण-4 में मालिकाना हक प्रदेश में कल 43.5 फीसद महिलाओं के पास था तो इस बार यह घटकर 39.9 फीसद महिलाओं के पास ही रह गया है।

वहीं, बिहार में भी पिछले सर्वेक्षण में प्रदेश की कुल 58.8 फीसद महिलाओं के पास मालिकाना हक था जो इस बार घटकर 55.3 फीसद ही रह गया। हालांकि यहां ग्रामीण महिलाओं के पास अब भी मालिकाना हक शहरी महिलाओं से अधिक है। यह क्रमश: 55.7 और 53.4 फीसद है। बिहार में महिला मुद्दों पर काम करने वाले संगठन से जुड़ीं निवेदिता शकील कहती हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को मालिकाना हक मिलने का फीसद भले ही बढ़ा हो लेकिन इसे पूरी तरह से सशक्तीकरण से नहीं जोड़ सकते। बिहार में तो आज भी महिलाएं अपने हक के लिए संघर्ष कर रही हैं।

उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में महिलाएं हुईं ज्यादा सशक्त

राजस्थान में शहर और ग्रामीण की महिलाएं मालिकाना हक के मामले में कोई अंतर नहीं है। यहां ग्रामीण में 26.6, जबकि शहर में 26.5 फीसद महिलाएं मालिकाना हक रखती हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां शहरों में गांवों की महिलाओं की अपेक्षा मालिकाना हक एक फीसद अधिक लोगों के पास है। शहर में जहां यह संख्या 46.1 फीसद है वहीं गांवों में यह 45.5 फीसद है। इसके अलावा उत्तराखंड में गांवों में 25.1 और शहरों में 23.3 फीसद महिलाओं के पास जमीन व घर का मालिकाना हक है। उत्तर प्रदेश में यह संख्या गांवों में 53.5 और शहरों में 46.8 फीसद है।

यहां पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले काफी अच्छी संख्या में बढ़ोतरी हुई है। 2015-16 के सर्वेक्षण-4 में यह 34.2 फीसद था जो अब 51.9 फीसद है। हरियाणा में गांवों में 41.0 फीसद और शहरों में 35.7 फीसद संख्या है। छत्तीसगढ़ में पिछले सर्वेक्षण के मुकालबे कुल फीसद में अच्छी वृद्धि दिखी। यहां 26.4 फीसद से आंकड़ा 45.6 फीसद पर पहुंचा है। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की मधु गर्ग बताती हैं कि गांवों में जो भी सरकारी योजनाएं होती हैं, वह आबादी कम होने की वजह से अधिक लाभकारी होती हैं और दिखती हैं, जबकि शहरों में गांवों से आकर बसने वालीं महिलाएं आज भी गरीब हैं और उनको वाजिब हक नहीं मिल पा रहा है।