जीशान शेख, नई दिल्ली

भारतीय संसद में आम तौर पर हास्य और व्यंग्य को विपक्ष का हथियार समझा जाता है। सरकार पर धारदार हमला करने और संसदीय बहसों को तीखा बनाने में इनका अहम योगदान माना जाता है। लेकिन मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार में ये मंजर बदलता नजर आ रहा है। संसद के अभी तक के सत्रों में सत्ताधारी बीजेपी के सांसद हास्य-व्यंग्य, कविता, शेरो-शायरी इत्यादि के प्रयोग के मामले में विपक्षी दलों से आगे नजर आ रहे हैं। बीजेपी के इस मामले में आगे नजर आने की एक वजह ये भी हो सकती है कि उसके सांसद मौजूदा संसद में विपक्ष की तुलना में काफी अधिक हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने संसद में मीडिया की नजर में लगातार बने रहने के कारण संसदीय कार्यवाही में हास्य और व्यंग्य में कमी आने पर चिंता जता चुके हैं। पीएम मोदी को शायद इस बात से राहत मिले कि मौजूदा सरकार के पहले आठ संसद सत्रों में हंसी-व्यंग्य का प्रतिशत बढ़ा है।

मौजूदा सरकार के कार्यकाल में संसद के पहले आठ सत्रों में संसदीय बहसों के दौरान 88 बार व्यंग्य और कविता का प्रयोग किया गया। कांग्रेस नीत यूपीए-1 और यूपीए-2 में ये आंकड़ा क्रमशः 51 और 18 था। मौजूदा सरकार के पहले आठ लोक सभा सत्रों में 38 बार हिन्दी कविता का और 36 बार उर्दू शेरों का प्रयोग किया गया। बीजेपी सांसदों ने सर्वाधिक 19 बार हिन्दी या उर्दू कविता-शायरी का प्रयोग किया। संसद में बंगाली, पंजाबी और संस्कृत की भी कविताएं इत्यादि उद्धृत की गईं। संसद में सबसे ज्यादा बार मिर्जा ग़ालिब के शेर पढ़े गए।

डॉक्टर मुक्ता करमाकर 2014 में राजनीतिज्ञों द्वारा हास्य और व्यंग्य के प्रयोग पर थीसिस लिख चुकी हैं। करमाकर ने अपने थीसिस में लिखा है, “नेता जनता के दिमाग में खास छवि बनाने के लिए हास्य का प्रयोग करते हैं। कुछ मामलों में सदन की कार्रवाई में तरलता आती है और इससे बाकी सांसदों और जनता का ध्यान अपनी बात की तरफ खींचने में मदद मिलती है। इससे विपक्षी सांसदों के साथ संबंध भी बेहतर बनाने में मदद मिलती है।…” एक वरिष्ठ बीजेपी नेता कहते हैं कि “पार्टी के नेताओं के भाषणों में लोक सभा चुनाव में मिली बड़ी जीत से मिला आत्मविस्वास झलकता है।” बीजेपी नेता मानते हैं कि उनकी पार्टी में अच्छे वक्ताओं की संख्या भी ज्यादा है और उन्होंने “विपक्ष में रहने के दौरान अपनी भाषण कला को काफी परिष्कृत किया है।”

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