बिहार चुनाव में स्पेशल इंटेसिव रिवीजन (SIR) को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है। तमाम विपक्षी पार्टियां चुनाव आयोग की इस मुहिम के खिलाफ मजबूती से खड़ी हैं। इस बीच अब तीन लाख वोटरों को चुनाव आयोग का नोटिस गया है। उस नोटिस में बताया गया है कि उनके कुछ डॉक्यूमेंट्स में या तो गड़बड़ी या फिर उन्होंने कुछ दस्तावेज दिए ही नहीं हैं। इन वोटरों को सात दिनों का वक्त दिया गया है, तय समय में उन्हें जवाब देना होगा।

चुनाव आयोग का किन वोटरों को नोटिस?

रविवार को चुनाव आयोग ने एक जारी बयान में बताया था कि अब तक 98.2 फीसदी वोटरों ने अपने दस्तावेज सौंपे हैं। लेकिन इस बीच ERO ने जानकारी दी है कि कुछ ऐसे वोटर भी सामने आए हैं जिन्होंने या तो कोई डॉक्यूमेंट नहीं दिए हैं या फिर उनकी तरफ से गलत दस्तावेज दिए गए हैं। उन लोगों को भी नोटिस गया है जिनकी नागरिकता सवालों में है।

जिन वोटरों को नोटिस, उनका क्या होगा?

नोटिस में लिखा हुआ है कि आपके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के सत्यापन के दौरान ऐसा प्रतीत होता है कि आपके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों में विसंगतियां हैं जिससे इस विधानसभा क्षेत्र में मतदाता के रूप में पंजिकृत होने के आपके अधिकार पर यथोचित संदेह उत्पन होता है। वैसे अभी के लिए चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना सवाल-जवाब या फिर स्पष्टीकरण के किसी भी वोटर का नाम लिस्ट से नहीं हटाया जाएगा, सभी को पूरा मौका मिलेगा।

65 लाख वोटरों के नाम क्यों हटे?

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक SIR प्रक्रिया के तहत जून 24 को 7.89 करोड़ रेजिस्टर्ड वोटर थे, जुलाई 25 तक उन्हें जरूरी दस्तावेज जमा करने थे। अब चुनाव आगोग के अनुसार उन्हें 7.24 करोड़ फॉर्म मिले थे, वहीं 65 लाख उन वोटरों के नाम हटाए गए जो या तो मृत पाए गए या फिर जो वो जगह छोड़ जा चुके थे।

चुनाव आयोग बिहार में SIR क्यों करवा रहा?

बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने SIR प्रक्रिया को काफी जरूरी माना है। लगातार कहा जा रहा है कि आखिरी बार राज्य में इतनी व्यापक प्रक्रिया 2003 में हुई थी। इस बार चुनाव आयोग ने एक फॉर्म तैयार किया है, जो भी मतदाता एक जनवरी, 2003 की वोटर लिस्ट में शामिल थे, उन्हें बस Enumeration Form यानी गणना पत्र भरना होगा, उनसे कोई सबूत नहीं मांगा जाएगा। लेकिन जो लोग एक जुलाई 1987 से लेकर दो दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए, उन्हें जरूर अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान और अपने माता-पिता में से किसी एक की जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना अनिवार्य रहने वाला है। चुनाव आयोग की सबसे बड़ी दलील है कि इस एक प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची से अवैध प्रवासियों को अलग कर दिया जाएगा।

ये भी पढ़ें- क्या तेजस्वी के खिलाफ राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे प्रशांत किशोर?