सूचना का अधिकार (आरटीआई) संशोधन बिल 2019 का विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है। इसी कड़ी में शुक्रवार को विपक्षी दलों के 17 सासंदों ने उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर बिल को पास कराने के तरीकों पर विरोध दर्ज किया है। सांसदों ने इस पत्र के जरिए कहा है कि सरकार ने इस बिल को जल्दबाजी में पास करवाया है। सांसदों ने कहा है कि बिल को पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी या सिलेक्ट कमेटी के पास नहीं भेजा गया।

बता दें कि राज्यसभा में आरटीआई संशोधन बिल चर्चा के बाद पारित हो गया। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल RTI बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग पर अड़े लेकिन वोटिंग के बाद यह प्रस्ताव सदन में गिर गया। प्रस्ताव के खिलाफ 117 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में 75 वोट पड़े थे। बिल के विरोध में विपक्षी दलों ने सदन से वॉकआउट किया। विपक्ष का कहना है कि इस संशोधित बिल की वजह से स्वतंत्र संस्था सूचना आयोग/राज्य सूचना आयोग की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचेगा।

दरअसल इस बिल में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे। विपक्ष का कहना है कि अगर केंद्र सरकार ही इस संस्था के शीर्ष पर बैठे अधिकारियों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते तय करेगी तो इससे आरटीआई एक्ट कमजोर होगा। विपक्ष का कहना है कि सूचना आयुक्त सरकार सरकार के खिलाफ ऐसी को सूचना को रोक लेंगे जो उनके खिलाफ होगी।

मालूम हो कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य हैं। वहीं, केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, आरटीआई एक्ट 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है । ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है। सरकार का कहना है कि चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट एक संवैधानिक संस्था है ऐसे में इसकी तुलना में सूचना आयोग में भी वेतन, भत्ते और सेवा के नियम एक जैसे नहीं हो सकते।