जातिगत जनगणना को लेकर आरएसएस का ताजा बयान सामने आया है। RSS की ओर से कहा गया है कि जातिगत जनगणना एक संवेदनशील मुद्दा है और इसपर राजनीति नहीं होनी चाहिए। संघ का यह बयान ऐसे वक़्त में आया है जब विपक्ष और खासतौर पर कांग्रेस इस मुद्दे पर लगातार अपना पक्ष रख रही है। RSS की ओर से कहा गया है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की दिशा में कोई भी कदम संबंधित समुदायों की आम सहमति के बिना नहीं उठाया जाना चाहिए।
RSS की और से क्या बयान आया है?
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए आरएसएस के प्रचार प्रभारी सुनील आंबेकर ने कहा कि आरएसएस का मानना है कि पिछड़े समुदायों के कल्याण के लिए अगर कभी सरकार को आंकड़ों की आवश्यकता होती है तो यह एक अच्छी प्रैक्टिस है । ऐसे पहले भी हुआ है जब सरकर ने ऐसे डेटा लिए हैं, और इसलिए वह इसे फिर से कर सकती है। लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। इसे चुनावों के लिए राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा जाति और जाति से जुड़े हुए मुद्दे काफी संवेनदशील है, इससे सावधानी से निपटा जाना चाहिए, यह सब राजनीति और चुनाव के लिए नहीं है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही नहीं बल्कि BJP के सहयोगी दल जेडी(यू) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी जाति जनगणना की मांग कर रहे है। बिहार में जेडी(यू) के नेतृत्व वाली सरकार ने पिछले साल राज्य में जाति सर्वेक्षण कराया था। हालांकि भाजपा ने जाति जनगणना की मांग का खुलकर विरोध नहीं किया है, लेकिन ऐसा करने के संकेत भी नहीं दिए है। RSS अगर जातिगत जनगणना को समर्थन कर रहा है तो यह बड़ी बात मानी जाएगी। क्योंकि भाजपा ने पहले इसे कांग्रेस द्वारा “हिंदू समाज को विभाजित करने” का प्रयास बताया था।
आंबेकर ने जोर देकर कहा कि संघ हिंदू एकता के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भी लगातार काम करता है। उन्होंने कहा, “हम अपने संविधान की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। हमारा संविधान न्याय, समानता और बंधुत्व के बारे में अच्छी बातें कहता है। लेकिन इस बात पर जोर दिया गया है कि बंधुत्व होना चाहिए, जिससे राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित हो सके।”