अंग्रेजी, उर्दू और अरबी के शब्द, पंजाबी के मशहूर क्रांतिकारी कवि पाश और उर्दू के मशहूर कवि मिर्जा गालिब की कविताएँ, बांग्ला लेखक रविंद्रनाथ टैगोर का वैचारिक लेख, चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा के अंश, मुगल बादशाहरों की रहमदिल का जिक्र, भारतीय जनता पार्टी को एक हिन्दू पार्टी बताना, नेशनल कांफ्रेंस को “सेकुलर”, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सिख दंगे पर माँगी गई माफी और “गुजरात दंगे में करीब दो हजार लोग मारे गए थे” जैसे वाक्य हटाने का सुझाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने  राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) को भेजे हैं। एनसीईआरटी ने हाल ही में आम जनता से पाठ्य पुस्तकों में बदलाव से जुड़े सुझाव मांगे थे। इस न्यास के प्रमुख दीनानाथ बत्रा हैं दो आरएसएस के शैक्षणिक शाखा विद्या भारती के प्रमुख रह चुके हैं। न्यास ने एनसीईआरटी को पांच पन्ने में अपने सुझाव भेजे हैं।

न्यास के सचिव और आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक अतुल कोठारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “इन किताबों में कई बातें आधारहीन और पक्षपातपूर्ण हैं। इसमें समुदाय को लोगों को अपमानित करने का प्रयास है। इसमें तुष्टिकरण भी है…आप बच्चों को दंगों के बारे में पढ़ाकर उन्हें कैसे प्रेरित करना चाहते हैं? शिवाजी, महाराणा प्रताप, विवेकानंद और सुभाष चंद्र बोस जैसे वीरों के लिए कोई जगह नहीं है।” कोठारी ने आगे बताया, “हमें ये चीजें आपत्तिजनक लगीं और हमने अपना सुझाव एनसीईआरटी को भेजा है। हमें आशा है कि ये सुझाव लागू होंगे।”

न्यास इससे पहले एके रामानुजन के लेख “तीन सौ रामायण: पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार” को दिल्ली विश्वविद्यालय  के स्नातक पाठ्यक्रम से हटाने के लिए कैंपेन चला चुका है। दीनानाथ बत्रा के नेतृत्व में न्यास इतिहासकार वेंडी डोनिगर की किताब “द हिन्दू: एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री” को वापस लेने के लिए भी अभियान चला चुका है। न्यास के अभियान के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय ने रामानुजन का लेख पाठ्यक्रम से हटा दिया था और डोनिगर की किताब के प्रकाशन पेंगुइन ने किताब को वापस ले लिया था।

न्यास के पांच पन्ने के सुझाव में एनसीईआरटी की कक्षा 11 की किताब में “1984 में कांग्रेस को मिले भारी बहुमत” का जिक्र होने लेकिन “1977  के चुनाव का ब्योरा” न होने पर भी आपत्ति जताई गई है। कक्षा 12 की किताब में जम्मू-कश्मीर की नेशनल कान्फ्रेंस को “सेकुलर संगठन” बताने पर एतराज जताया गया है। न्यास चाहता है कि एनसीईआरटी की हिन्दी भाषा की पाठ्यपुस्तक में पढ़ाया जाए कि मध्यकालीन कवि अमीर खुसरो ने “हिन्दू और मुसलमान के बीच विभेद को बढ़ावा दिया था।” (न्यास ने एनसीईआरटी को और कौन से सुझाव भेजे हैं ये आप यहाँ पढ़ सकते हैं।)