राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि महात्मा गांधी विभाजन के दिनों में दिल्ली में एक शाखा में आए थे। भागवत के अनुसार महात्मा गांधी ने स्वयंसेवकों का अनुशासन और उनमें जाति-पांति की भावना का अभाव देखकर प्रसन्नता व्यक्त की थी।

संघ प्रमुख ने यह बात महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर एक आलेख में लिखी। बुधवार (2 अक्टूबर) को यह आलेख आरएसएस की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ। उन्होंने कहा कि संघ के स्वयंसेवक प्रतिदिन प्रात:काल एकात्मता स्त्रोत्र में महात्मा गांधी के नाम का उच्चारण करते हुए उनके जीवन का स्मरण करते हैं।

इस लेख में भागवत ने कहा कि विभाजन के रक्तरंजित दिनों में दिल्ली में अपने निवास के पास लगने वाली शाखा में गांधी जी का आना हुआ था। इसकी रिपोर्ट 27 सितंबर 1947 के हरिजन में छपी थी। संघ के स्वयंसेवकों का अनुशासन और उनमें जाति-पांति की विभेदकारी भावना का अभाव देख कर गांधी जी ने प्रसन्नता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी 1936 में वर्धा के पास लगे संघ शिविर में भी पधारे थे।

गांधी जी ने अगले दिन संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने उनसे उनके निवास स्थान पर मुलाकात की थी। महात्मा गांधी जी से हुयी उनकी बातचीत और प्रश्नोत्तर अब प्रकाशित हैं। भागवत ने देश के लिए महात्मा गांधी की स्वदेशी दृष्टि पर जोर दिया और गांधी जी का यह प्रयास स्वत्व के आधार पर जीवन के सभी पहलुओं में एक नया विचार देने का सफल प्रयोग था।

भागवत ने कहा कि गुलामी की मानसिकता वाले लोगों ने पश्चिम से आयी बातों को ही प्रमाण मान लिया। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वदेशी दर्शन की वकालत की क्योंकि पाश्चात्य जगत सत्ता के बल पर शिक्षा को विकृत करते हुए व आर्थिक दृष्टि से सबको अपना आश्रित बनाने की कोशिश कर रहा था।

भागवत ने कहा, ‘‘किन्तु गुलामी की मानसिकता वाले लोगों ने बिना इसे समझे पश्चिम से आयी बातों को ही स्वीकार कर लिया और अपने पूर्वज, गौरव व संस्कारों को हीन मानकर अंधानुकरण व चाटुकारिता में लग गये थे। उसका बहुत बड़ा प्रभाव आज भी भारत की दिशा और दशा पर दिखायी देता है। ’