देश में असहिष्‍णुता के मुद्दे पर चल रही बहस में एक्‍टर आमिर खान ने भी अपनी राय दी है। आमिर ने कहा, ‘पिछले 6-8 महीने से ‘असुरक्षा’ और डर की भावना समाज में बढ़ी है। यहां तक कि मेरा परिवार भी ऐसा ही महसूस कर रहा है। मैं और पत्‍नी किरण ने पूरी जिंदगी भारत में जी है, लेकिन पहली बार उन्‍होंने मुझसे देश छोड़ने की बात कही। यह बहुत ही खौफनाक और बड़ी बात थी, जो उन्‍होंने मुझसे कही। उन्‍हें अपने बच्‍चे के लिए डर लगता है। उन्‍हें इस बात का भी डर है कि आने वाले समय में हमारे आसपास का माहौल कैसा होगा? वह जब अखबार खोलती हैं तो उन्‍हें डर लगता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अशांति बढ़ रही है।’ आमिर ने आठवें रामनाथ गोयनका अवॉर्ड्स फंक्‍शन में न्‍यू मीडिया (इंडियन एक्‍सप्रेस) के पूर्णकालिक निदेशक और प्रमुख अनंत गोयनका के साथ बातचीत में यह बात कही।

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साहित्‍यकारों, कलाकारों, इतिहासकारों और वैज्ञानिकों द्वारा पुरस्‍कार लौटाए जाने के मुद्दे पर पूछे जाने पर आमिर ने कहा- रचनात्‍मक लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे जो सोचते हैं उसे अभिव्‍यक्‍त करें। अनेक ऐसे लोगों – इतिहासकारों, वैज्ञानिकों – के मन में एक खास विचार मजबूत हो रहा होगा। उन्‍हें लगा होगा कि उस विचार को व्‍यक्‍त करना जरूरी है। रचनात्‍मक लोगों के लिए अपना असंतोष, अपनी निराशा जाहिर करने का एक तरीका अवॉर्ड लौटाने का भी है। मेरी राय में अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का यह एक जरिया है। जब उनसे पूछा गया कि क्‍या आप विरोध का समर्थन करेंगे, तो उनका कहना था- जब तक इसमें हिंसा नहीं हो, तक तक उन्‍हें इससे कोई विरोध नहीं होगा। उन्‍होंने कहा, ‘हर किसी को विरोध का हक है। वह कानून हाथ में लिए बिना जो भी तरीका उचित समझता है, उससे विरोध कर सकता है।’

उन्‍होंने कहा कि विरोध बढ़ती असहिष्‍णुता और असुरक्षा की भावना के चलते हुआ। वह बोले- एक नागरिक के तौर पर मैं भी सतर्क हूं। मैं इससे इनकार नहीं कर सकता। एक भारतीय के रूप में सुरक्षित महसूस करने के लिए दो-तीन बातें जरूरी हैं। न्‍याय की आस आम लोगों में सुरक्षा की भावना जगाती है। दूसरा अहम पहलू है हमारे निर्वाचित प्रति‍िनिधि। चाहे वे राज्‍य स्‍तर पर हों या केंद्र के स्‍तर पर। जब लोग कानून अपने हाथ में लेते हैं तो इस पर सख्‍त कार्रवाई के लिए हम इन्‍हीं जनप्रतिनिधियों की ओर देखते हैं। उन्‍हें सख्‍त बयान देने और तेजी से कानूनी कार्रवाई करते देखना चाहते हैं। इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि सत्‍ता में कौन पार्टी है।

आमिर ने कहा, ‘टेलीविजन पर होने वाली चर्चाओं में मैं देखता हूं कि एक राजनीतिक दल (अभी भाजपा, जो सत्‍ता में है) को बहुत सारी चीजों के लिए दोषी ठहराया जाता है। वे जवाब देते हैं कि 1984 में क्‍या हुआ? पर इससे जो अभी हो रहा है, वह सही नहीं हो जाता। 1984 में जो हुआ वह खौफनाक था। बाद में भी, जब भी हिंसा की घटनाएं होती हैं, कोई निर्दोष मारा जाता है, एक मारा जाए या अनेक, बेहद दुर्भाग्‍यपूर्ण होता है। ये क्षण ऐसे होते हैं जब हम अपने नेताओं की ओर देखते हैं। उनसे मजबूत कदम उठाने की अपेक्षा रखते हैं। उनसे एेसे बयानों की उम्‍मीद करते हैं जो जनता को भरोसा दिला सकें।’

आतंकवाद से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए आमिर ने कहा- आतंकी घटनाओं का किसी मजहब से वास्‍ता नहीं होता। अगर कोई मुसलमान आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है तो मैं नहीं मानता कि वह इस्‍लाम का पालन कर रहा है। अगर कोई हिंदू ऐसा कर रहा है तो वह भी अपने धर्म का पालन नहीं कर रहा होता है। कोई भी धर्म निर्दोषों का कत्‍ल करने की इजाजत नहीं देता। जब आतंक की कोई घटना होती है तो उसे अंजाम देने वालों को ईसाई, हिंदू या मुस्लिम आतंकी कहने के बजाय सिर्फ आतंकी कहना चाहिए। धर्म का ठप्‍पा नहीं लगाना चाहिए। यह ठप्‍पा लगा कर हम पहली गलती कर देते हैं। वह सिर्फ एक आतंकी है। जिसका कोई मजहब नहीं होता। आमिर खान ने ऐसी घटनाओं के प्रति उदारवादी मुस्लिमों द्वारा विरोध जताए जाने की भी चर्चा की। उन्‍होंने कहा- अगर मैं गलत नहीं हूं तो कई मुस्लिम संगठनों ने आईएसआईएस और दूसरे आतंकी संगठनों का विरोध करना शुरू कर दिया है। कम से कम भारत मं तो ऐसा हो रहा है।

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