देश में वंचित तबकों के बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैय्या कराने के लिए साल 2009 में संसद में शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया था। लेकिन हैरानी की बात ये है कि कानून बनने के इतने सालों बाद भी देश के 18 राज्यों में यह कानून लागू नहीं हो सका है। राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में इस बात का खुलासा हुआ है। बता दें कि शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 12(1) के तहत यह प्रावधान किया गया है, जिसमें राज्यों के निजी स्कूलों में 25% सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित की गई हैं। विभिन्न राज्यों में इस कानून को लागू करने की समय सीमा 31 मार्च, 2013 तय की गई थी। लेकिन इतने सालों बाद भी देश के आधे से ज्यादा राज्यों में यह कानून लागू नहीं हो चुका है।
दरअसल राज्यसभा में टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन के सवाल के जवाब में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ये आंकड़े सदन में पेश किए। लिखित जवाब देते हुए जावड़ेकर ने बताया कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत राज्य सरकारों को प्रति बच्चे के हिसाब से निजी स्कूलों को भुगतान करना होता है, या फिर सरकार विभिन्न कोटे के तहत खर्च होने वाली रकम को स्कूलों को देनी होती है। लेकिन 18 राज्यों ने अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। जिन 18 राज्यों में शिक्षा का अधिकार कानून लागू नहीं हुआ है, उनमें आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, दादर और नागर हवेली, दमन और दीव, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, पंजाब, सिक्किम, तेलंगाना, त्रिपुरा और बंगाल का नाम शामिल है। इनके अलावा जम्मू कश्मीर में यह कानून लागू ही नहीं होता है और लक्षद्वीप में एक भी निजी स्कूल ना होने के चलते यह कानून लागू नहीं हो पाया है।
राज्यसभा सांसद नरेंद्र जाधव ने जब इस कानून के इन राज्यों में लागू नहीं हो पाने के कारण पूछे तो जावड़ेकर ने बताया कि सरकार की तरफ से इस कानून को सभी राज्यों में लागू कराने की कोशिश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि देश के 33 लाख बच्चे देश के विभिन्न निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। जावड़ेकर के अनुसार, देश में 2.44 लाख निजी स्कूल हैं, जिनमें से 6000 स्कूल अल्पसंख्यक श्रेणी के हैं।