‘प्रारंभिक लौह युगीन’ स्थल पचखेड़ में चल रहे उत्खनन से लगभग 3,000 साल पुराने प्राचीन निवास, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक निरंतरता के प्रमाण मिले हैं। 2023-24 में हुए इस उत्खनन में चूना-प्रसंस्करण भट्टियां, लौह उपकरण, टेराकोटा के मोती, शंख की चूड़ियां, चित्रित मिट्टी के बर्तन और अन्य कलाकृतियां सामने आई हैं जो विदर्भ के प्रारंभिक लौह युग में कृषि और शिल्प-विशेषज्ञ समुदाय की ओर इशारा करती हैं। ये उत्खनन महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में हुई है।
यवतमाल जिले में स्थित चंद्रभागा नदी के बाएं तट पर बाबुलगांव तहसील में, वर्धा नदी के संगम से लगभग एक किलोमीटर दूर पचखेड़ स्थल स्थित है। यह स्थान यवतमाल शहर से 43 किलोमीटर और पुलगांव-बाबुलगांव मार्ग पर शिंधी गांव से 3 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। स्थानीय रूप से ‘सासु-सुनेचे उखाड़े’ और ‘बाराड’ कहे जाने वाला यह विशाल बस्ती का टीला, जो अब उत्खनन से आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुका है। ये इस बस्ती के लंबे इतिहास को दर्शाता है।
साक्ष्य को लेकर बोले- प्रोफेसर साहू
यहां हुए प्रमुख खोजों में एक चूना-प्रसंस्करण भट्ठी भी शामिल है, जो विदर्भ के प्रारंभिक लौह युग में इस तकनीक का सबसे पहला प्रत्यक्ष प्रमाण देती है। चारकोल और चावल के एक नमूने की एक्सेलरेटर मास स्पेक्ट्रोमेट्री (एएमएस) डेटिंग ने इस स्थल के प्रारंभिक सांस्कृतिक क्षितिज को 908 और 725 ईसा पूर्व के बीच रखा है।
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इस उत्खनन को लेकर राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास संस्कृति और पुरातत्व विभाग के हेड प्रोफेसर प्रभाष साहू ने हमारे सहयोगी संस्थान इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, ‘2009 में इस स्थल की रिपोर्ट विलास वहाणे (राज्य पुरातत्व विभाग के सहायक निदेशक) ने दी थी और उन्होंने इस पर एक शोधपत्र भी लिखा और प्रकाशित किया था। उनके द्वारा बताए गए साक्ष्यों और स्थापत्य अवशेषों को देखते हुए यह महत्वपूर्ण था, और हमें लौह युग में रुचि थी। विदर्भ में बहुत सारे स्थल हैं, लेकिन जहां तक लौह युग का संबंध है, अन्य स्थानों से प्राप्त साक्ष्यों का वैज्ञानिक रूप से ठीक से अध्ययन नहीं किया गया है। इसलिए, हमने लौह युग का समग्र अध्ययन करने का निर्णय लिया, और पचखेड़ उन स्थलों में से एक था जहां अधिकतम भंडार मौजूद हैं।’
लौह युग में लोग करते थे चावल की खेती
उन्होंने आगे कहा, ‘पचखेड़ में लगभग 10 मीटर सांस्कृतिक साक्ष्य मौजूद थे, क्योंकि टीला दो भागों में निक्षेपित था। ये खंड दिखाई दे रहे थे, और इसी ने हमें लौह युग के निक्षेपों का उचित अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। लौह युग से संबंधित संपूर्ण जानकारी के लिए हमारे पास IUAC (अंतर-विश्वविद्यालय त्वरक केंद्र, नई दिल्ली ) द्वारा प्रदान की गई 8 AMS तिथियां थीं, जिनमें सबसे प्राचीन तिथि 908 ईसा पूर्व और सबसे नवीनतम 752 ईसा पूर्व थी। पचखेड़ में प्रारंभिक लौह युग के 200 से अधिक वर्षों का प्रतिनिधित्व मिलता है।’
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खुदाई से मिली प्रमुख खोजों के बारे में साहू ने कहा, ‘हमारे पास चावल के प्रमाण हैं। आजकल यवतमाल में आपको चावल की खेती नहीं मिलती। जिसका मतलब है कि लौह युग में लोग चावल की खेती करते थे। हमारे पास घरेलू और जंगली, दोनों तरह के चावल के प्रमाण हैं, जो दर्शाते हैं कि उस समय जलवायु चावल की खेती के लिए उपयुक्त थी। हमारे पास चूना भट्टी के प्रमाण भी हैं।’