सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोुकर ने कोलेजियम सिस्टम में बदलाव की मांग उठाई है। उन्होंने फैसले को ऑनलाइन न करने पर निराशा जताई है। साथ ही जजों द्वारा किए गए प्रेस कांफ्रेंस को जायज ठहराया। जस्टिस लोकुर ने कहा,” मुझे निराशा है कि सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के 12 दिसंबर के फैसले को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया। जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और राजेंद्र मेनन को पदोन्नत नहीं किए जाने पर उन्होंने कहा कि कोलेजियम में जो होता है वह गोपनीय है और भरोसा महत्वपूर्व है।”

पीटीआई के अनुसार, 30 दिसंबर 2018 को रिटायर हुए जस्टिस लोकुर ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि उनके रिटायरमेंट के बाद कौन से अतिरिक्त दस्तावेज सामने आए। इसके साथ ही उन्होंने न्यायपालिका में भाई भतीजावाद के दावों को खारिज किया और कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कॉलेजियम व्यवस्था नाकाम हो गई है। कॉलेजियम की बैठकों में स्वस्थ्य चर्चाएं होती हैं और सहमति-असहमति इसका हिस्सा है। हालांकि, कॉलेजियम व्यवस्था में कुछ बदलाव लाने की जरूरत है। रिटायर्ड जस्टिस ने कहा, “न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक तंत्र होना चाहिए। सरकार महीनों तक जस्टिस के एम जोसेफ की फाइलों को दबाए रखी। यदि सरकार की तरफ से किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आती है तब कोलेजियम के फैसले को स्वीकार किया जाना चाहिए।

जजों के प्रेस कांफ्रेंस को ठहराया जायज: लोकुर ने कहा कि 12 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा किया गया प्रेस कांफ्रेंस सही था और इससे कुछ हासिल भी हुआ। इससे सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही में कुछ खुलापन आया।” उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों की पदोन्नति से पहले भ्रष्टाचार के साक्ष्यों पर भी गौर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि न तो न्यायपालिका और ना ही सरकार न्यायाधीशों की नियुक्तियों से जुड़ी फाइलों को लटका सकती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उच्चतम न्यायालय जाने और एक हालिया समारोह के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगाई से मिलने पर पैदा विवाद पर, न्यायमूर्ति लोकूर ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लोकुर ने कहा कि न्यायपालिका के बेहतर कामकाज के लिए कई मुद्दों पर चर्चा की जरूरत है। उन्होंने न्यायमूर्ति गोगोई के सीजेआई के रूप में कामकाज पर टिप्पणी से इंकार कर दिया।