भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने लगातार दूसरी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। ब्याज दरों को यथावत रखने का फैसला सावधि जमा (एफडी) के निवेशकों के लिए अच्छी खबर मानी जा रही है। इससे बैंक एफडी की दरों को घटाने से बचेंगे। बैंक कर्ज पर ब्याज दरों में बदलाव नहीं होने से कर्ज लेने वालों की मासिक किस्त पर फर्क नहीं पड़ेगा।
हालांकि, रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति को लेकर बैठक के नतीजों से कारोबारी खुश नहीं है। व्यापारियों का कहना है कि बाजार में नकदी की कमी बनी रहेगी। अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं मिलेगी। अगर कर्ज सस्ता होता है तो अर्थव्यवस्था भी रफ्तार पकड़ती है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज से भी कारोबारी सहमत नहीं। उन्हें और रियायतों की उम्मीद थी।
यूं तय होती हैं नीतिगत दरें
आरबीआइ ने लगातार दूसरी बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। अगस्त में भी केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। इससे पहले मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। रिजर्व बैंक के ताजा फैसले के बाद रेपो दर चार फीसद और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसद पर बनी हुई है। रेपो रेट से ईएमआइ पर फर्क पड़ता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) से कर्ज लेते हैं।
इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होता है, यानी रेपो रेट कम होता है तो बैंक भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे। इसी तरह रिवर्स रेपो रेट इसके उलट होता है। बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख देते हैं।
इस रकम पर आरबीआइ उन्हें ब्याज देता है। रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। जब भी बाजारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआइ रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें।
उपयोक्ताओं पर क्या असर
रिजर्व बैंक की हालिया बैठक में जो फैसले लिए गए, उनका नए मौजूदा उपयोक्ताओं एवं सावधि जमा के निवेशकों पर असर पड़ेगा। कहीं सकारात्मक तो कहीं नकारात्मक। ब्याज दरों को यथावत रखने का फैसला सावधि (एफडी) के निवेशकों के लिए अच्छी खबर है। बैंक एफडी की दरों को घटाने से बचेंगे। बैंकों से कर्ज लेने वालों के लिए आरबीआइ के इस कदम का मतलब यह है कि बैंक कर्ज पर ब्याज दरों में कटौती को भी फिलहाल रोकेंगे।
इससे एफडी में निवेश करने वालों खासतौर से वरिष्ठ नागरिकों को राहत मिल सकती है। छोटी बचत योजनाओं के अलावा वरिष्ठ नागरिक और भी विकल्पों को चुन सकते हैं। प्रधानमंत्री वय वंदना योजना और सीनियर सिटीजंस सेविंग्स स्कीम अभी सात फीसद ब्याज दे रही हैं। रिजर्व बैंक ने हाल में फ्लोटिंग रेट बॉन्ड लॉन्च किए हैं। इन पर 7.15 फीसद ब्याज मिल रहा है।
बैंकों और कारोबारियों पर क्या असर
आरबीआइ ने कहा है कि उसका नीतिगत रुख उदार है। ब्याज दरों का असर बैंकों की बैलेंस शीट पर पड़ेगा। रिजर्व बैंक कई बार बैंकों को कह चुका है कि वे नीतिगत दरों में कटौती का फायदा जल्द से जल्द ग्राहकों तक पहुंचाएं। इसके लिए आरबीआइ बेस रेट या कर्ज के ब्याज की न्यूनतम मानक दर तय करने पर काम कर रहा है।
रिजर्व बैंक धन की सीमांत लागत पर आधार दर तय करने के लिए पद्धति तैयार करने पर काम कर रहा है, जिससे बैंकों को परिसंपत्ति देनदारी प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान देना होगा, बाजार और जीवंत होगा। दूसरी ओर, काफी संख्या में व्यापारी बैंकों से कर्ज लेकर धंधा करते हैं। क्रेडिट कार्ड कर चलन भी बढ़ता जा रहा है। जब बाजार में नकदी बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने का खतरा भी बना रहता है। महंगाई पर काबू के लिए आरबीआइ रिवर्स रेपो रेट को बढ़ा देता है। इस बार आरबीआइ ने दोनों में ही किसी तरह का बदलाव नहीं किया है। ऐसे में बैंकों के पास लोन लेने के लिए आने वालों की संख्या पर भी असर होगा।
क्या कहते हैं जानकार
सरकार को बैंकों में अतिरिक्त पूंजी डालनी होगी, ताकि कर्ज देना बढ़े। सरकार को रोजगार बचाने और कर्ज डूबने से रोकने के लिए संकटग्रस्त उत्पादन इकाइयों की मदद करनी होगी। साथ ही, सरकार को बुनियादी ढांचे के निर्माण पर खर्च करना होगा, जो संपत्ति के साथ-साथ नौकरियों का भी सृजन करेगा।
– डी. सुब्बाराव, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर (एक आलेख में)
रिजर्व बैंक समय-समय पर रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट तय करता है। काफी समय से इनमें बदलाव नहीं किया गया है। इसका एक कारण कोरोना काल में छाई आर्थिक मंदी भी है। अगर रिवर्स रेपो रेट को बढ़ाया गया होता तो जमा योजनाओं पर ब्याज ज्यादा हो सकता था।
– सीएच व्यंकटचलम, महासचिव, ऑल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन
कर्ज पर क्या असर
चूंकि रेपो रेट में कटौती नहीं हुई है, इसलिए जिन ग्राहकों का कर्ज ‘एक्सटर्नल बेंचमार्क’ (रेपो रेट, ट्रेजरी बिल) से लिंक है, उनकी मासिक किस्त पहले की तरह जारी रहेगी। मासिक किस्त पर मार्जिन और रिस्क प्रीमियम का असर पड़ता है। इन पर बैंक बेंचमार्क रेट से इतर शुल्क लगाते हैं। जिन ग्राहकों का लोन ‘मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट’ यानी एमसीएलआर से जुड़ा है, उनकी भी इएमआइ पहले ही तरह बनी रह सकती है।
हालांकि, बैंक इसके बावजूद एमसीएलआर को कम कर सकते हैं। ऐसा अंदरूनी बातों को देखते हुए किया जा सकता है। कारण है कि एमसीएलआर केवल रेट कट जैसे बाहरी कारक पर निर्भर नहीं करता है। बैंक के अंदरूनी कारकों पर भी इसका असर पड़ता है। जिन ग्राहकों के कर्ज अब भी बेस रेट या बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (बीपीएलआर) से जुड़े हैं, उन्हें अपने होम लोन को नई व्यवस्था में स्विच कराने पर विचार करना चाहिए। नीतिगत दलों में बदलाव नहीं होने को नए ग्राहकों के लिए सही समय माना जा रहा है। जो लोग प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए पात्र हैं, वे भी कर्ज लेने के बारे में विचार कर सकते हैं।