इससे मुख्य नीतिगत दर बढ़कर 6.50 फीसद हो गई है। रेपो दर वह ब्याज दर है, जिसपर वाणिज्यिक बैंक अपनी फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। इस दर में वृद्धि का मतलब है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला आवास और वाहन ऋण तथा कंपनियों के लिए कर्ज महंगा होगा और मौजूदा ऋण की मासिक किस्त (ईएमआइ) बढ़ेगी।
यह लगातार दूसरी बार है, जब मुख्य ब्याज दर में धीमी दर से वृद्धि की गई है। हालांकि, आरबीआइ ने मुख्य मुद्रास्फीति (मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र की महंगाई) ऊंची रहने की भी बात कही है। इसके साथ आने वाले समय में नीतिगत दर रेपो में और वृद्धि का संकेत दिया है। केंद्रीय बैंक ने अगले वित्त वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 6.4 फीसद रहने का अनुमान रखा है। यह चालू वित्त वर्ष के सात फीसद के वृद्धि दर के अनुमान से कम है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सोमवार से शुरू हुई तीन दिन की बैठक में लिए गए निर्णय की जानकारी देते हुए आरबीआइ गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘एमपीसी ने नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6.50 प्रतिशत करने का निर्णय किया है। मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो दर बढ़ाने और उदार रुख को वापस लेने पर ध्यान देने के पक्ष में मतदान किया।’
आरबीआइ मुख्य रूप से मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए इस साल मई से लेकर अबतक कुल छह बार में रेपो दर में 2.50 फीसद की वृद्धि कर चुका है। इससे पहले, मई में रेपो दर 0.40 फीसद तथा जून, अगस्त व सितंबर में 0.50-0.50 फीसद तथा दिसंबर में 0.35 फीसद बढ़ाई गई थी। हालांकि, कुल (हेडलाइन) मुद्रास्फीति में नरमी आई है और यह नवंबर और दिसंबर, 2022 में छह फीसद की उच्च सीमा से नीचे रही है। मौद्रिक नीति समिति मुख्य मुद्रास्फीति को लेकर चिंतित है जो पिछले 15 माह से छह फीसद से ऊपर बनी हुई थी।
मुद्रास्फीति के बारे में आरबीआइ गवर्नर ने कहा, ‘महंगाई में कमी के संकेत हैं लेकिन मुख्य मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है और यह चिंता की बात है। हमें खुदरा मुख्य मुद्रास्फीति को नीचे लाने के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा।’ उन्होंने कहा कि ‘आयातित’ मुद्रास्फीति में कमी की उम्मीद के साथ अगले वित्त वर्ष 2023-24 में खुदरा महंगाई दर नरम पड़कर 5.3 फीसद पर आने का अनुमान है।’
दास ने कहा कि भारत की कच्चे तेल की खरीद औसतन 95 डालर प्रति बैरल रहने के अनुमान के आधार पर 2022-23 में मुद्रास्फीति के 6.5 फीसद रहने की संभावना है। पहले इसके 6.7 फीसद रहने की संभावना जताई गई थी। उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2023-24 में महंगाई नीचे आएगी। हालांकि, यह चार फीसद से ऊपर रहेगी। मुद्रास्फीति का परिदृश्य भू-राजनीतिक तनाव की वजह से पैदा हुई अनिश्चितताओं, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव, गैर-तेल जिंसों की कीमतों में तेजी और कच्चे तेल की कीमतों के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होगा।’
खुदरा महंगाई दिसंबर में 5.72 फीसद रही जो पिछले महीने 5.88 फीसद थी। वहीं मुख्य मुद्रास्फीति 6.1 फीसद पर बनी हुई है। आरबीआइ को खुदरा मुद्रास्फीति दो फीसद घट-बढ़ के साथ चार फीसद पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। दास ने कहा, ‘आने वाले समय में खाद्य महंगाई परिदृश्य पर गेहूं और तिलहन समेत अच्छी रबी फसल का सकारात्मक असर पड़ेगा।’
आर्थिक वृद्धि के बारे में दास ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर उतार-चढ़ाव के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। चालू वित्त वर्ष में तीसरी और चौथी तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि भारत की स्थिति मजबूत बनी हुई है। सोच-समझकर किए जाने वाले खर्च में सुधार के साथ शहरों में खपत मांग मजबूत हुई है। गांवों में मांग में सुधार के संकेत बने हुए हैं। इन सब चीजों को देखते हुए 2023-24 में स्थिर मूल्य पर जीडीपी वृद्धि दर 6.4 फीसद रहने का अनुमान है।’
एमपीसी की बैठक में किए गए अन्य निर्णय में सरकारी प्रतिभूतियों उधार देने और उधार देने की अनुमति, हरित जमा और जलवायु वित्तपोषण जोखिम पर दिशानिर्देश जारी करना तथा विदेशी यात्रियों को भारत आने पर यूपीआइ (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस) के जरिए भुगतान की अनुमति देना शामिल हैं।
चालू खाते के घाटे (कैड) के बारे में आरबीआइ गवर्नर ने कहा कि कैड में 2022-23 की दूसरी छमाही में कमी आने का अनुमान है। कैड 2022-23 की पहली छमाही में जीडीपी का 3.3 फीसद रहा, जो 2021-22 की इसी अवधि में 0.2 फीसद था। उन्होंने कहा, ‘वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में स्थिति में सुधार हुआ है। जिंसों के दाम में कमी के साथ आयात कुछ कम हुआ है। इससे व्यापार घाटा कम हो रहा है।’