केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ किया है कि सरकारी कर्मचारी की नौकरी के दौरान मृत्यु होने पर उसका परिवार बार-बार अनुकंपा नियुक्ति की मांग नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति केवल मृतक परिवार की परेशानी से उबारने के लिए है। इसको लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस ईश्वरन एस ने कहा, “ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना परिवार के सदस्यों को नियुक्ति के लिए बार-बार दावा करने की अनुमति देती है। यह याद रखा जाना चाहिए कि अनुकंपा नियुक्ति का तरीका नहीं, इसका उद्देश्य मृतक परिवार को परेशानियों से उबारना है।”
बेटे के बालिग होने का इंतजार किए बिना बेटी को नामिनेट किया था
यह मामला एक आरपीएफ परिवार का था। आरपीएफ कांस्टेबल रहे आर बालचंद्र पिल्लई का 2006 में निधन हो गया था। इसके बाद पहले उनकी पत्नी ने आवेदन कर अनुकंपा के लिए बेटी का नाम बढ़ाया। हालांकि बेटी ने न तो ज्वाइन की और न ही दावा छोड़ा। इसके बाद पत्नी ने अपने बेटे की नियुक्ति के लिए आवेदन किया, लेकिन अफसरों ने उनकी मांग अस्वीकार कर दी। 2016 में दोनों पक्षों की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। कोर्ट ने कहा कि पत्नी ने बेटे के बालिग होने का इंतजार किए बिना बेटी का नाम दे दिया था। लेकिन बेटी ने न तो दावा छोड़ा और न ही ज्वाइन किया। ऐसे में बार-बार अनुकंपा पर विचार नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि अनुकंपा नियुक्तियां अधिकार के तौर पर नहीं की जा सकतीं, क्योंकि ऐसा तभी किया जाना चाहिए जब कमाने वाले की मौत के बाद परिवार को वित्तीय सुरक्षा की जरूरत हो, अन्यथा यह असंवैधानिक होगा।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस निर्देश को रद्द कर दिया था जिसमें एम सेल्वनायगम को उनके पिता मीनाक्षीसुंदरम, जो एक चौकीदार थे, की मृत्यु के पांच साल बाद कराईकल नगर पालिका में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।
पीठ ने कहा, “कर्मचारी की मृत्यु के कई साल बाद या उसके आश्रितों के लिए उपलब्ध वित्तीय संसाधनों और उसकी मृत्यु के परिणामस्वरूप आश्रितों को होने वाली वित्तीय कमी पर उचित विचार किए बिना नियुक्ति की गई थी। सिर्फ इसलिए कि दावेदार मृत कर्मचारी के आश्रितों में से एक है, यह सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 (समानता) के विपरीत होगा और इसलिए, यह खराब और अवैध है। अनुकंपा नियुक्ति के मामलों से निपटने में इस महत्वपूर्ण पहलू को ध्यान में रखना जरूरी है।”