वर्ष 2030 तक देश में 35-40 गीगावाट अतिरिक्त ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से मिलने की उम्मीद है। ‘इंस्टीट्यूट फार एनर्जी इकनामिक्स एंड फाइनेंशल ऐनालिसिस’ (आइईईएफए) की रिपोर्ट कहती है कि भारत में ऊर्जा का भविष्य हरा-भरा है। इस रिपोर्ट में अनुमान जाहिर किया गया है कि दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा बिजली उपभोग करने वाला यह देश वर्ष 2030 तक अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को 405 गीगावाट तक कर लेगा। भारत ने तब तक अपनी जरूरत की आधी से ज्यादा बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य तय किया है।

भारत सरकार का अनुमान 500 गीगावाट से ज्यादा बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने का है। देश में 59 फीसद ऊर्जा जीवाश्म ईंधन से बनाती है। अनुमान है कि 2030 तक जीवाश्म र्इंधन 31.6 फीसद पर सिमट जाएंगे। भारत की योजनाओं को लेकर आइईईएफए में वरिष्ठ ऊर्जा विशेषज्ञ विभूति गर्ग कहती हैं कि स्वच्छ ऊर्जा यात्रा में यूरोप में जारी युद्ध के कारण कुछ बाधाएं आई हैं। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा बाजार भी है।

भारत की तेज वृद्धि के पीछे अक्षय ऊर्जा की कम कीमत के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की जरूरत की भी भूमिका है। दुनिया में किसी अन्य देश की ऊर्जा जरूरतों में इतनी तेज वृद्धि होने की संभावना नहीं है, जितना कि भारत में हैं क्योंकि जल्द ही वह संसार का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा और देश की आबादी का जीनवस्तर भी बेहतर होता जा रहा है।

आइईईएफए की रिपोर्ट में विभिन्न अक्षय ऊर्जा कारपोरेशन और सरकारी कंपनियों के डेटा का विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ निजी क्षेत्र की कंपनियां 151 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का योगदान देने लगेंगी। विशेषज्ञों के मुताबिक, भले ही भारत ने अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हों, लेकिन कई जगह सुधारों की जरूरत है।

बर्लिन स्थित थिंक टैंक क्लाइमेट ऐनालिटिक्स में जलवायु और ऊर्जा अर्थशास्त्र की विशेषज्ञ नंदिनी दास कहती हैं कि भारत की महत्त्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा नीतियों ने अब तक कोयले के उपभोग को प्रभावित नहीं किया है। दास के मुताबिक, मौजूदा कोयला संयंत्रों को सेवानिवृत्त करने की योजना होनी चाहिए ताकि यह स्पष्ट संकेत दिया जा सके कि हम स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं। कोयले का प्रयोग बंद करने और अक्षय ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए धन की जरूरत है। भारत को वर्ष 2030 के अपने ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने के लिए 223 अरब डालर यानी लगभग 183 खरब रुपए के निवेश की जरूरत है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में छतों के ऊपर सौर ऊर्जा पैनल लगाने के क्षेत्र में विकास की गति धीमी रही है। भारत इस साल के आखिर तक सिर्फ छतों पर लगे सौर पैनलों से 40 गीगावाट बिजली हासिल करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है जबकि अब तक सिर्फ 7.5 गीगावाट बिजली हासिल होती है। जानकारों के मुताबिक, चुनौती यह है कि अलग-अलग राज्यों की इस बारे में अलग-अलग नीतियां हैं। अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निर्माण की दर बढ़ाने की सख्त जरूरत है। इस साल भारत हर महीने 1.7 गीगावाट इंस्टाल कर रहा है, जबकि यह दर 3.7 गीगावाट मासिक होनी चाहिए।

बढ़ जाएगी क्षमता

अक्षय ऊर्जा के मामले में दुनिया की क्षमता शीर्ष स्तर तक पहुंच जाएगी। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी ने अपनी नई रिपोर्ट में बताया है कि केवल वर्ष 2021 में ही दुनिया भर में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में 295 गीगावाट की क्षमता बढ़ाई गई। आइईए ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के समय में यह काफी मददगार हो सकती है। वर्ष 2022 और 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा के मामले में जो भी अतिरिक्त क्षमता हासिल होगी, उससे रूसी गैस और पावर सेक्टर पर यूरोपीय संघ की निर्भरता काफी हद तक घटाना संभव हो पाएगा।