साल था 1982, जब सरस्वती वेदम अमेरिका की मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी में कम्युनिटी हेल्थ सिस्टम से मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रही थीं। उस समय उनको एक कॉल आई। फोन कॉल उनका छोटा भाई सुब्रमण्यम था, उसे पुलिस ने हिरासत में लिया था। उसने कहा कि वे बस कुछ समय के लिए उस पर दबाव बनाने की कोशिश क रहे है। जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा। आप अम्मा(मां) और अप्पा (पिता जी) को यूरोप यात्रा में खलल (मत रोकिए) ने डाले। जिसके बाद कुछ समय बाद सुब्रमण्यम पर उसके एक साथी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
फोन कॉल की जानकारी मिलते ही कुछ ही घंटों में सरस्वती सैकड़ों मील दक्षिण अमेरिका की ओर स्टेट कॉलेज पहुंच गईं। यहीं पेन स्टेट यूनिवर्सिटी का मुख्य परिसर स्थित है। यहीं वे पले-बढ़े थे, जहां उनके पिता के. वेदम, जो भौतिकी के प्रोफेसर और बाद में प्रोफेसर एमेरिटस बने, और उनकी मां नलिनी जो एक पुस्तकालय चलाती थीं। आदर्श तरीके से प्रवासी जीवन बीता रहे थे। सरस्वती का जन्म स्टेट कॉलेज में हुआ था, जबकि सुबू का जन्म 1961 में मुंबई में हुआ था। जब परिवार कुछ समय के लिए भारत आया था। नौ महीने बाद वे स्टेट कॉलेज लौट आए।
बिना पैरोल के सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा
सरस्वती ने हमारे सहयोगी संस्थान “द इंडियन एक्सप्रेस” को बताया, ” सुब्रमण्यम – जिसे परिवार में “सुबू” कहा जाता है, उसने मुझे चिंता न करने के लिए कहा। उसने कहा,’वे बस मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सब ठीक हो जाएगा। कृपया अम्मा और अप्पा की यूरोप यात्रा में खलल न डालें।’मुझे याद है कि घर लौटते समय मैं पूरे समय यही सोचती रही कि यह सच नहीं हो सकता। वह 20 साल का था। बस एक बच्चा, “उसने कनाडा के वैंकूवर से फोन पर बताया, जहां सरस्वती अभी ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और प्रमुख अन्वेषक हैं।
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इस घटना के कुछ महीने बाद 1983 में सुबू को हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया और बिना पैरोल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस मामले में उसको दोषमुक्त होने में 43 साल लग गए। इसी साल अगस्त में पेंसिल्वेनिया के एक जज ने आखिरकार उसकी सजा को पलट दिया और फैसला सुनाया कि अभियोजकों ने हजारों पन्नों के सबूत छिपाए थे जिससे सुबू की बेगुनाही साबित हो सकती थी। तब तक सुबू अपनी जिंदगी का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा जेल में बिता चुका था।
लेकिन जब सुबू के जीवन में आजादी आई तो वो असली नहीं थी। ये बात इसलिए क्योंकि बरी होने के महज चौबीस घंटे बाद उन्हें फिर से हिरासत में ले लिया गया। इस बार अमेरिकी आव्रजन और सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) ने उन्हें 1988 के निर्वासन के आरोपों को लेकर हिरासत में ले लिया। यह मामला हत्या के दोषसिद्धि और उससे जुड़े एक मादक पदार्थ अपराध से जुड़ा था।
बेटे के जमानत के लिए सुबू के पिता ने खूब की मेहनत
सरस्वती ने कहा, “मैं उन्हें गले भी नहीं लगा सकी। हमारे बीच प्लेक्सीग्लास था। फिर भी जब मैंने उन्हें देखा तो वे सीधे खड़े हो गए और बोले, ‘अक्का (दीदी) मेरा नाम साफ हो गया है। मैं अब कैदी नहीं, बल्कि एक हिरासत में लिया हुआ आदमी हूं।'”
जर्मनी में पढ़ाई करने के लिए गए सुबू के साथ रहने वाला 19 वर्षीय किन्सर दिसंबर 1980 में लापता हो गया था। इस मामले में जांच करने वालों ने पाया कि उसे आखिरी बार सुबू के साथ देखा गया था। उसने किन्सर से लुईसबर्ग जाने के लिए गाड़ी मांगी थी, जो विश्वविद्यालय शहर से एक घंटे की दूरी पर था। नौ महीने बाद किन्सर अवशेष जंगल में मिला। जब पुलिस मामले की जांच कर रही थी उसी दौरान सुबू को शुरू में मादक पदार्थ के आरोप में हिरासत में लिया गया था।
जब उसके माता-पिता जर्मनी से लौटे, तो उसके पिता ने अपने बेटे की जमानत का इंतजाम करने की जल्दी की। सरस्वती ने बताया, “अप्पा हमारा घर गिरवी रखने गए थे। उन्होंने सोचा, ठीक है, हम उसे छुड़ा लेंगे, कोई वकील ढूंढ लेंगे।” लेकिन जब वे दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने अदालत पहुंचे, तो पुलिस ने हत्या का आरोप जोड़ दिया और इसके साथ ही जमानत का विकल्प भी खत्म हो गया। उन्होंने कहा, “वे स्तब्ध रह गए। उन्होंने उनके बेटे को घर लाने का मौका भी छीन लिया। न कोई हथियार था, न कोई गवाह, न कोई मकसद, न ही मौत की तारीख।” जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तो लोकल मीडिया ने उन्हें “भागने वाला विदेशी” कहा। हमारे पिता, वेदम, का नाम हर सुर्खियों में था।
बेटे के इंतजार में माता-पिता की हो गई मौत
सरस्वती ने कहा, “अप्पा टूट गए। वे सबसे सज्जन व्यक्ति थे जिन्हें मैंने कभी जाना है। उन्होंने अमेरिका में रहने के लिए खुद को दोषी ठहराया।” सुबू को 1983 में दोषी ठहराया गया और बिना पैरोल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। परिवार ने दशकों तक उसकी बेगुनाही साबित करने की कोशिश की।
अपने माता-पिता की उम्र बढ़ने, बहन की शादी और भतीजियों के बड़े होने तक सुबू जेल में ही रहे। उन्होंने कहा, “जब मेरी चार बेटियां पैदा हुईं, तो मैं उन्हें उनसे मिलने जेल ले जाती थी। वह उन्हें गोद में लिए रहते थे और हमेशा मुस्कुराते रहते थे।” उनके पिता की मृत्यु 2009 में और उनकी मां की 2016 में हो गई। उन्होंने कहा, “दोनों में से कोई भी अपना नाम साफ होते देखने के लिए जीवित नहीं रहा।” लेकिन अब ‘मेरा नाम साफ हो गया है।’
