भारत और चीन के बीच इन दिनों लद्दाख सीमा पर तनाव है। दोनों ही देशों की सेनाओं ने तंबू गाड़ लिए हैं। पैंगोंग झील के पास चीन ने सौ से ज्यादा टेंट लगा लिए। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी टेंट लगा लिए। सिर्फ पैंगोंग झील ही नहीं, लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक विभिन्न इलाकों में सीमा पर धक्का-मुक्का, वायुसीमा के उल्लंघन या घुसपैठ की खबरें आने लगी हैं। कोरोना काल में इसकी वजह क्या सिर्फ सीमा विवाद है। चीन के वुहान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अनौचारिक वार्ताओं से नरमी का माहौल तैयार हुआ था। विवादों से सुलझाने को लेकर दोनों देशों में समझ विकसित हुई थी। अब तनाव के हालात क्यों बन रहे हैं?
अक्साई चीन से लेकर अरुणाचल
भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जो जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। यह तीन सेक्टरों में बंटी हुई है-पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मध्य सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड एवं पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश। अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है। कई इलाकों लेकर दोनों देशों के बीच सीमा विवाद है।
पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन अभी चीन के नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया था। भारत का दावा अक्साई चीन पर है। दूसरी ओर, पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है। चीन इसे दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को नहीं मान रहा।
एलएसी पर विवाद वाले इलाके
दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सका। यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी शब्दावली का इस्तेमाल किया जाने लगा। दोनों देश अपनी अलग-अलग एलएसी बताते हैं। एलएसी पर कई ग्लेशियर, बर्फ के रेगिस्तान, पहाड़ और नदियां हैं। भौगोलिक सीमांकन नहीं है। इनमें पैंगोंग त्सो झील 134 किलोमीटर लंबी झील है, जो हिमालय में 14,000 फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित है।
इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है। चीन की तरफ से अतिक्रमण के एक तिहाई मामले इसी झील के पास होते हैं। रणनीतिक रूप से यह झील चुशूल घाटी के रास्ते में आती है, चीन इस रास्ते का इस्तेमाल हमले के लिए कर सकता है। इसके अलावा गालवन घाटी विवादित क्षेत्र अक्साई चीन में है। यह घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली है। यह पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा के साथ लगा हुआ है।
वर्ष 2017 में डोकलाम को लेकर भारत-चीन के बीच काफी विवाद हुआ था, जो 70-80 दिन चला था। डोकलाम चीन और भूटान के बीच का विवाद है। यह सिक्किम सीमा के पास है और एक तिराहा है, जहां से चीन भी नजदीक है। डोकलाम से चीन भारत के सिलिगुड़ी तक पहुंच सकता है। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके पर चीन दावा करता है। नाथूला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के सिक्किम राज्य और दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है।
कोरोना काल की आर्थिक वजहें
कोरोना काल के दौरान हाल में चीन ने भारत में एक बड़ा निवेश किया था। भारत सरकार सजग हो गई और उसने चीन से होने वाले सभी निवेशों को पूरी जांच से गुजरने का नियम बना दिया। कोरोना की वजह से भारत को बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है, ऐसे में मौके का फायदा उठाकर चीन यहां निवेश कर भारतीय कंपनियों के अधिग्रहण की ताक में था, जिसे रोकने के लिए भारत सरकार ने चीन से आने वाले निवेश पर सख्ती करना शुरू कर दिया है।
चीन को भारत के इस कदम से बहुत दिक्कत हो रही है। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में चीन से आने वाले निवेश पर भारत की ओर से सख्ती किए जाने को भेदभाव पूर्ण रवैया बताया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत की ओर से ऐसी सख्ती की वजह से कोरोना महामारी के दौर में चीन की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच सकता है। अमेरिका में इस समय चीन के खिलाफ एक राजनीतिक विषाणु फैल रहा है और उम्मीद है कि वह भारत को संक्रमित नहीं करेगा।
चीन से निकलने की तैयारी
चीन से करीब 1000 कंपनियां बाहर निकलकर दूसरे देशों में नया ठिकाना तलाश रही हैं, जिनमें भारत एक प्रबल दावेदार है। भारत सरकार इसे एक बड़े मौके की तरह देख रही है। भारत के कई राज्यों में इन कंपनियों को आकर्षित करने के लिए नियम बदले गए हैं। अमेरिका ने अपनी इन कंपनियों को चीन से निकालने के लिए नीति तैयार की है। इसके जवाब में चीन ने नेपाल को साथ लिया है। सड़क और रेल संपर्क का सपना दिखा कर चीन पहले ही नेपाल को लुभा चुका है। साथ ही, उसे समझा चुका है कि पेट्रोल और अन्य जरूरी सामान के लिए उसे भारत पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। नेपाली राजनेता अपनी कुर्सी की खातिर चीन का साथ दे रहे हैं।
क्या कहते हैं जानकार
भारत-चीन के बीच एक समझौता हुआ है कि एलएसी को मानेंगे और उसमें नए निर्माण नहीं करेंगे। लेकिन, चीन ने कई सैन्य निर्माण किए हैं और अब वह मौजूदा स्थिति बनाए रखने की बात करता है। अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अब भारत भी एलएसी पर सामरिक निर्माण करना चाहता है। टकराव इसी कारण बढ़ रहे हैं।
– एसडी मुनि, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर
दोनों देशों ने सीमा प्रबंधन समितियां बनाई हुई हैं। इनका काम यह देखना है कि जब तक सीमा-निर्धारण का काम नहीं हो जाता, तब तक जो भी सीमा विवाद के मसले आएंगे, उन्हें बड़े तनाव में बदलने से रोकना है। ताकि युद्ध की स्थिति ना बने। अभी राजनीतिक कवायद यहीं तक सीमित है।
– विवेक काटजू, पूर्व राजनयिक