धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी के खिलाफ ज्यादती करने वाले मजिस्ट्रेट को राजस्थान हाईकोर्ट ने फटकार लगाकर उससे सफाई मांगी है कि उसने कानून के मुताबिक काम क्यों नहीं किया। हाईकोर्ट इस बात पर खफा था कि मजिस्ट्रेट ने आरोपी के खिलाफ चल रहे मामले का संज्ञान लेकर अरेस्ट वारंट तो निकाल दिया। अलबत्ता उसे अपने आदेश की कॉपी मुहैया कराने से भी इनकार कर दिया।

जस्टिस मनोज कुमार गर्ग ने मजिस्ट्रेट को फटकार लगाते हुए कहा कि ये सब उन्होंने किस कानून के तहत किया। वो मामले का संज्ञान ले सकते हैं। आरोपी का अरेस्ट वारंट भी निकाल सकते हैं। लेकिन आरोपी को उसी के खिलाफ निकाले गए आर्डर की कॉपी देने से कैसे मना कर सकते हैं। उनका कहना था कि आरोपी को अधिकार है कि उसे अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई के बारे में पूरी जानकारी मिले। तभी तो वो अपना बचाव कर सकता है। हाईकोर्ट का कहना था कि भारत का संविधान भी कहता है कि आरोपी को अपना बचाव करने का पूरा मौका दिया जाए।

सारे दस्तावेज आरोपी को उपलब्ध कराकर तीन सप्ताह में एक्सप्लेनेशन हाईकोर्ट भेजें मजिस्ट्रेट

जस्टिस गर्ग ने कहा कि कानून का तकाजा था कि मजिस्ट्रेट आरोपी को अपनी अदालत के आदेश की कॉपी तत्काल प्रभाव से मुहैया कराते। उन्होंने नौहर के मजिस्ट्रेट के आदेश को खारिज करते हुए कहा वो तत्काल आरोपी को हर दस्तावेज मुहैया कराएं और तीन सप्ताह के भीतर उन्हें एक्सप्लेनेशन भेजें।

ये मामला जालसाजी का है। पुलिस ने आरोपी को क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन इसी बीच कोर्ट में दूसरे पक्ष की तरफ से प्रोटेस्ट एप्लीकेशन दायर की गई और आरोपी के खिलाफ चल रहे मामले का मजिस्ट्रेट ने आइपीसी की धारा 409, 467, 420 और 120 बी के तहत संज्ञान ले लिया। उसके बाद उसका अरेस्ट वारंट भी निकाल दिया।

मजिस्ट्रेट ने शर्त रखी थी कि आरोपी को आर्डर की कॉपी तभी मिल सकती है जब वो खुद को पुलिस के हवाले कर दे। आरोपी ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ हाईकोर्ट में जाकर गुहार लगाई। उसका कहना था कि उसके मामले में जिन लोगों की गवाही सीआरपीसी के सेक्शन 161 के तहत ली गई है, उन सभी की कॉपी भी उसे उपलब्ध कराई जाए। मजिस्ट्रेट ने ये आदेश 4 मई 2023 को दिया था। आरोपी का तर्क था कि उसे कॉपी मिलेंगी तभी वो अपना बचाव कर सकेगा। उसका कहना था कि कानून उसे इन दस्तावेजों को हासिल करने का पूरा हक है।