25 साल बाद पालघर के एक युवक को धोखाधड़ी के एक मामले में राहत देते हुए बरी कर दिया गया। युवक पर एक महिला ने आरोप लगाया था कि उसने शादी करने का झांसा देकर उसके साथ यौन संबंध बनाए। इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि लंबे समय तक शारीरिक संबंध बनाने के बाद अगर कोई शादी करने से इनकार कर देता है तो उसे धोखाधड़ी नहीं माना जाता सकता है।
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई ने आरोपी द्वारा दायर अपील की सुनवाई करते हुए कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत बताते हैं कि दोनों के बीच यौन संबंध सहमति से थे। जस्टिस प्रभुदेसाई ने कहा, “आरोपी को आईपीसी की धारा 417 के तहत अपराध का दोषी ठहराया गया है, क्योंकि उसने महिला से शादी करने से इनकार कर दिया था। सवाल यह है कि क्या ऐसी परिस्थितियों में शादी से इनकार करना धोखाधड़ी का अपराध है।”
हाई कोर्ट की जज जस्टिस प्रभुदेसाई ने कहा कि इस बात के पर्याप्त तथ्य नहीं हैं कि महिला को गलत जानकारी देकर आरोपी ने यौन संबंधों के लिए राजी किया था। ऐसे में उसे लंबे रिलेशनशिप के बाद शादी से इनकार करने के लिए धोखाधड़ी का दोषी नहीं माना जा सकता।
महिला ने युवक के खिलाफ साल 1996 में एफआईआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि युवक ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में उसने शादी करने से इनकार कर दिया। महिला द्वारा दी गई शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (बलात्कार) और 417 (धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इस मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया था। तीन साल तक चली सुनवाई के बाद इस मामले में निचली अदालत ने पालघर के काशीनाथ घरात को आईपीसी की धारा 417 (धोखाधड़ी) के तहत अपराधी मानते हुए एक साल की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के इस फैसले को काशीनाथ ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।