कोरोना संकट के चलते भर्ती और परीक्षाएं प्रभावित हुई हैं। इसको लेकर कई लोगों ने वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को संदेश भेजे हैं। रवीश ने एक फेसबुक पोस्ट शेयर करते हुए इन सभी लोगों के लिए सहानुभूति दिखाई और एक लेख शेयर कर उसे पढ़ने के लिए कहा है।
रवीश ने लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए लिखा “भर्ती और परीक्षा के मसले का कुछ नहीं हो सकता है। न ट्रेंड कराने से कुछ होगा न ख़बर छपवाने से कुछ होगा। आप लोगों के साथ जो अन्याय हुआ है वो किसी के साथ न हो। मुझे मैसेज भेजने से पहले यही चाहूँगा कि आप ये दोनों लेख पढ़ लें। पुराने हैं।” रवीश ने कहा कि पहले भी वे इस तरह के कई लेख लिख चुके हैं। लेकिन सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
आईपी सेल पर निशाना साधते हुए उन्होंने लिखा “आई टी सेल जो प्रोपेगैंडा फैलाता है उसी पर विश्वास कीजिए इससे आप सुखी रहेंगे। नौकरी सैलरी पर ध्यान भी नहीं जाएगा। परीक्षा की तारीख़ बढ़वाने के लिए मैसेज करने वालों से भी आग्रह है कि इसे पढ़ें और मैसेज न करें।”
रवीश कुमार ने सरकार और उन्हें वोट देने वालों पर तंज़ कसते हुए लिखा “एक बात दीवार पर लिख कर रख लें। आप भी वोट बेरोज़गारी के सवाल पर नहीं करने वाले हैं। प्रोपेगैंडा से बच कर निकलना इतना आसान नहीं होता है। आप भी फँस चुके हैं और नहीं निकलने वाले हैं। दीवार पर लिखा जब इसे रोज़ पढ़ेंगे तो फिर मुझे व्हाट्स एप फार्वर्ड करने की तकलीफ़ से बच जाएँगे। आनंद से रहें। मुझसे नाराज़ होना चाहें तो स्वागत है।
रवीश के इस पोस्ट पर यूजर्स ने भी अपनी प्रतिकृया दी है। ललित नाम के एक यूजर ने लिखा “धीरे धीरे वैसे भी सारी सरकारी कंपनी प्राइवेट हो जायेगी और बाकी सरकारी विभाग भी ठेके पर चले जायेंगे। वैसे ये परिपाठी हॉस्पिटल, कॉलेज और अन्य सरकारी जगह पर शुरु हो गई है अब चाहे आप उसे संविदा बोले या किसी और नाम से। रोजगार के बारे मे सभी को फिर से सोचना ही होगा नही तो आने वाले समय मे कैसे कला, कॉमर्स या अन्य विषयो के स्नातक किस दिशा मे जायेंगे ये यक्ष प्रश्न है।”
पुनीत ने लिखा “बिलकुल सही निर्णय लिया है आपने इन लोगों ने खुद आपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारी है। और इसमें दूसरा कोई और नहीं धर्म और संस्कृति के समर्थक ही है, समर्थक होना अच्छी बात है पर अंध समर्थक होना कतई अच्छी बात नहीं है। क्योंकि आज आप जिन मुद्दों का आंख बंद कर के समर्थन कर रहे हैं वो मुद्दे ही कल आपके आने वाली पीढ़ी के गले में फांसी बन कर उनकी सांसे रोकने का काम करेंगे जैसे अभी कोविड की दूसरी लहर में हर आदमी बेसहारा था और आपके लोकप्रिय विश्व प्रसिद्ध नेता कही नजर नही आए पर जेसे ही लहर कम हुई उसका श्रेय लेने तुरंत अपने बिल से बाहर आ गए। खैर अच्छा है इन लोगो का साथ न देने का आपने सही निर्णय लिया है।”
कमाल अरोरा ने लिखा “एक करोड़ से अधिक पद तो खाली है और नई भर्ती होगी इसकी उम्मीद लगाना भी सरकार के पेट पर लात मारने जैसा है अच्छे भले शौक पूरे कर रहे हैं वैज्ञानिक साहब असली मास्टर स्ट्रोक तो 2 करोड़ रोजगार वाला था।”