देश के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा का 86 साल की उम्र में निधन हो गया है। रतन टाटा को सदियों तक उनके नरम मिजाज और सादा जिंदगी के लिए याद किया जाता रहेगा। वह एक बेहतरीन इंसान होने के साथ-साथ मजबूत व्यक्तित्व भी रखते थे, मुंबई में हुए 26\11 हमले से जुड़ा एक किस्सा इस बात की पैरवी करता है। उस दिन आतंकियों ने मशहूर ताज होटल को निशाना बनाया था। वही ताज महल पैलेस जिसके स्थापना 1903 में रतन टाटा के दादा जमशेद जी टाटा ने अपने अपमान के बदले में की थी जब उन्हें सिर्फ नस्लभेद की वजह से मुंबई की ही एक होटल वाटसंस में जाने से रोक दिया गया था।
जब रतन टाटा मेहमानों की हिफाजत के लिए खुद ताज होटल पहुंचे
नेशनल ज्योग्राफी इंडिया से बात करते हुए रतन टाटा उस दिन का ज़िक्र करते हैं। वह बताते हैं कि उन्हे किसी का कॉल आया था जिसमें जानकारी दी गई थी कि होटल में गोलीबारी हो रही है। वह बताते हैं,
‘मैंने ताज के स्टाफ को कॉल किया, उधर से किसी ने मेरा फोन नहीं उठाया, यह एक अजीब बात थी क्योंकि अक्सर ऐसा नहीं होता था, मैंने अपनी कार निकाली और मैं ताज पहुंचा, लेकिन वॉचमैन ने मुझे रोक दिया, क्योंकि वहां गोलीबारी जारी थी।”
रतन टाटा इंटरव्यू में आगे बताते हैं कि जिस वक़्त यह हमला हुआ होटल में तकरीबन 300 गेस्ट माजूद थे। रेस्टोरेंट भरे हुए थे। वहां मौजूद स्टाफ ने सभी को बचाने की ओर सुरक्षित जगह पहुंचाने की पूरी कोशिश की और इस दौरान कई मारे भी गए। इंटरव्यू में बताया गया है कि उन तीन दिन और तीन रातों के लिए रतन टाटा ताज के प्रबंधन के साथ खड़े रहे।
वह हमेशा अपने मैनेजमेंट और सहयोगियों के लिए उदार रहे। हमेशा ताज होटल की इमारत को लेकर कहते रहे कि अपनी भव्यता के बावजूद, ताज कभी भी वह नहीं बन पाता जो आज है अगर इसके पीछे यहां काम करने वाले लोगों की मेहनत नहीं होती। वे खुद को जोखिम में डालकर और कुछ मामलों में अपनी जान की कीमत पर यहां मौजूद लोगों की रक्षा के लिए खड़े रहे।