1 जुलाई 1933 को जन्मे कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार (CQMH) अब्दुल हमीद ने उत्तर की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना के पैटन टैंकों से लड़ते हुए अपनी जान गवां दी थी। यह लड़ाई 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लड़ी गई सबसे बड़ी टैंक लड़ाइयों में से एक मानी जाती है। अब्दुल हमीद को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

सोमवार को आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने हमीद के पैतृक गांव का दौरा किया। धामूपुर में उन्होंने अब्दुल हमीद पर आधारित बुक मेरे पापा परमवीर और भारत का मुस्लमान का विमोचन किया।

असल उत्तर की जंग क्या थी?

पंजाब में मौजूद असल उत्तर भारत-पाकिस्तान बार्डर के काफी नजदीक है। यह खेमकरण शहर से लगभग सात किलोमीटर दूर है। सितंबर 1965 में युद्ध शुरू होने के लगभग एक महीने के बाद पाकिस्तानी सेना की 1 बख्तरबंद डिवीजन ने बार्डर पार करके हमला करना शुरू कर दिया और खेमकरण के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया। उनका टारगेट व्यास नदी पर बने पुल तक पहुंचने का था और अमृतसर समेत पंजाब के बड़े इलाकों को भारत के बाकी भागों से काटना था।

इस अटैक से भारत के चार माउंटेन डिविजन चौंक गया था। यह खेमकरण के पास ही तैनात था और उसे अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर होना पड़ा। हालांकि, वेस्टर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल बख्सी ने 4 माउंटने डिवीजन के हेडक्वार्टर का दौरा किया। इसके बाद तुरंत ही स्थिति बदल गई। उन्होंने असल उत्तर रोड जंक्शन की मजबूत सुरक्षा करने की सलाह दी। इतना ही नहीं, किसी भी पाकिस्तानी बख्तरबंद हमले को चकमा देने के लिए 2 बख्तरबंद ब्रिगेड को इलाके में भेजा।

यह युद्ध 8 सितंबर से 10 सितंबर के बीच में हुआ था और इसके बाद पाकिस्तान की आक्रामकता का सफाया हो गया। इस युद्ध में पाकिस्तान की सेना ने 97 पैटन टैंक खो दिए। इसके अलावा पाकिस्तान की एक पूरी बख्तरबंद रेजिमेंट और उसके कमांडिंग ऑफिसर ने भारत की सेना के सामने घुटने टेक दिए और सरेंडर कर दिया। लेकिन युद्ध रुकने का ऐलान होने तक खेमकरम शहर पाकिस्तान के कब्जे में रहा। पाकिस्तान में भारतीय कब्जे वाले इलाकों के बदले में इसे भारत को लौटा दिया गया।

हमीद का क्या रोल रहा?

अब बात हमीद की भूमिका की करें तो उस समय हामिद भारतीय सेना की 4वीं ग्रेनेडियर्स बटालियन में सेवा देते थे और उन्हें अमृतसर-खेम करण रोड पर मौजूद चीमा गांव के बाहरी इलाके में तैनात किया गया था। वह रीकॉइललेस गन्स की एक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। यह असल उत्तर के आसपास के गांवों के खेतों में दुश्मन के टैंकों की तलाश में जुटी हुई थी।

10 सितंबर को हामिद को चार पाकिस्तानी पैटन टैंक मिले और उन्होंने उन पर बहुत करीब से गोली चलाई। इसमें तीन टैंक तबाह हो गए और एक टैंक ने काम करना बंद कर दिया। जब वह ऐसा कर रहे थे तो ऐसा करते समय हामिद दूसरे पाकिस्तानी टैंक की गोलीबारी की चपेट में आ गए और उनकी जान चली गई। अपनी बहादुरी के लिए हमीद को बाद में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी मरने वाली जगह अब युद्ध स्मारक का भाग है। एक पकड़ा हुआ पाकिस्तानी टैंक इमारत के एंट्री गेट पर पहरा दे रहा है।