राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर सारी तैयारी कर ली गई है। 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। कई सालों के संघर्ष, आंदोलन के बाद ये वक्त आया है जब रामलला को टेंट से मुक्ति और गर्भगृह में स्थापित किया गया है। वैसे राम मंदिर के इस आंदोलन में कारसेवकों की भूमिका रही, कई नेताओं की भूमिका रही, लेकिन इसके साथ-साथ बंदरों ने भी अपनी भूमिका अदा की।

ये बात कम ही लोगों को पता है कि राम मंदिर के आंदोलन में बंदरों ने भी अपनी भूमिका निभाई थी। कभी भगवा झंडे को बचाने से लेकर कभी कोर्ट सुनवाई के दौरान छत पर बैठने तक, कई ऐसे किस्से मौजदू हैं जो बताते हैं कि बंदर भी इस आंदोलन में सक्रिय रहे। ऐसा ही एक किस्सा 1990 का है जब विश्व हिंदू परिषद ने सबसे पहले बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने का प्रण लिया था।

30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या को सुरक्षाबलों ने चारों तरफ से घेर रखा था। 28 हजार के करीब सुरक्षाबल मुस्दैती के साथ जमीन पर खड़े थे। कारण ये था कि विश्व हिंदी परिषद के कार्यकर्ता वहां आने वाले थे, विवादित स्थल वाली जगह पर उन्हें जाना था। अब वीएचपी के कार्यकर्ता वहां पहुंच गए, कुछ ने विरोध प्रदर्शन भी शुरू किया, लेकिन सुरक्षाबल भी मुंहतोड़ जवाब देते रहे। तब एक साधु ने हिम्मत दिखाते हुए उस गाड़ी की ओर छलांग लगा दी जिसमें सभी को हिरासत में लेकर ले जाया जा रहा था।

राम मंदिर की फुल कवरेज यहां देखें

बताया जाता है कि उस साधु की वजह से ही पुलिस का बैरिकेड टूट गया था और जितने भी कारसेवक थे, उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला। बैरिकेड टूटते ही कारसेवक तो आक्रमक हुए ही, पुलिस ने भी लाठीचार्ज शुरू कर दिया। फायरिंग तक की गई, कई मर गए, लेकिन कुछ बाबरी मस्जिद के गुंबद की छत पर चढ़ने में सफल हो गए। उनकी तरफ से वहां पर भगवा झंडा भी लहरा दिया गया।

अब एक तरफ पुलिस फायरिंग में 20 लोगों की मौत हुई, दूसरी तरफ बाबरी मस्जिद के गुंबद पर भगवा झंडा लहरा दिया गया। अब पुलिस चाहती तो उस झंडे को वहां से तुरंत हटा सकती थी, लेकिन एक बड़ा धर्मसंकट आ गया। वो धर्मसंकट एक बंदर लेकर आया। उस बंदर ने बाबरी मस्जिद की गुंबद पर चढ़कर उस भगवा झंडे की हिफासत की। वहां खड़े सुरक्षाबलों को लगा कि वो बंदर असल में भगवान हनुमान का रूप है जो भगवा झंडे को बचाने आए हैं।

इसी वजह से पुलिसवालों ने उस बंदर को वहां से नहीं हटाया और जब तक वो बंदर वहां खड़ा रहा, भगवा झंडा भी बाबरी मस्जिद के ऊपर लहराता रहा। इस किस्से की एक तस्वीर भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है और आज भी उसका जिक्र होता रहता है।

इन्हीं बंदरों को लेकर एक किस्सा 1986 का भी है। केएम पांडे की आत्मकथा “वॉयस ऑफ कॉन्शियस” में जिक्र है कि जब वे बाबरी मस्जिद का दरवाजा खोलने का आदेश सुना रहे थे, तब एक बंदर सुनवाई के वक्त कोर्ट परिसर की छत पर मौजूद रहा। उसके पास एक भगवा झंडा भी मौजूद था, कई कोशिशों के बाद भी वो बंदर वहां से नहीं हटा। जब फैसला हिंदू पक्ष के समर्थन में दिया गया, वो बंदर वहां से चला गया।