सरकार पर आर्थिक सहित सभी मोर्चों पर विफल होने का आरोप लगाते हुए विपक्ष ने सोमवार (6 फरवरी) को राज्यसभा में दावा किया कि नोटबंदी के कारण किसान, मजदूर, व्यापारी सहित समाज के सभी वर्गों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है तथा समाज में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई है। विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक जैसे देश की सुरक्षा से जुड़े गंभीर मामलों में ‘ओवर पब्लिसिटी’ से बचना चाहिए। हालांकि सत्ता पक्ष द्वारा इन आरोपों से इंकार करते हुए कहा गया कि नोटबंदी सहित विभिन्न मुद्दों पर देश की जनता सरकार के साथ थी तथा सरकार अपने घोषणापत्र में किए गए वादों पर अमल कर रही है।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उच्च सदन में कांग्रेस के राजीव शुक्ला ने कहा कि सरकार के पास अब काम करने के लिए प्रभावी रूप से मात्र डेढ़ वर्ष बचे हैं और उसमें सामाजिक, आर्थिक आदि क्षेत्रों में जो भी वादे किए गए हैं उन्हें पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज यह स्थिति बन गई है कि किसान, गरीब मजदूर, पर्यटक सहित सभी वर्ग सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों से निराश हैं। उन्होंने कहा कि पता नहीं क्यों, भाजपा के लोग प्रधानमंत्री को जमीनी हकीकत से अवगत नहीं कराते।

सर्जिकल स्ट्राइक की चर्चा करते हुए शुक्ला ने कहा कि देश की सुरक्षा के मामले से जुड़े इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार को गंभीरता बरतनी चाहिए। इस मामले में सरकार ने ‘ओवर पब्लिसिटी’ और ‘ओवर मार्केटिंग’ की। उन्होंने कहा कि ऐसे दावे करने की कोशिश की गई कि मानो हमने इस्लामाबाद जीत लिया है। उन्होंने कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक कोई पहली बार नहीं हुई। पिछली सरकार में तीन बार सर्जिकल स्ट्राइक हो चुकी थी। पूर्व सेना प्रमुख ने भी इस बात को स्वीकार किया था।

शुक्ला ने कृषि क्षेत्र के बदहाल होने का दावा करते हुए कहा कि आज किसानों को बीज नहीं मिल रहा है। अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण किसान अपनी फसल फेंकने को मजबूर है क्योंकि धन की कमी के कारण वह उन्हें कोल्ड स्टोरेज में भी नहीं रख पा रहा है। कांग्रेस सदस्य शुक्ला ने कहा कि देश के करोड़ों दुकानदार एवं व्यापारी नोटबंदी के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। काम नहीं होने के कारण कारखाने बंद हो रहे हैं और उनमें काम कर रहे कर्मचारियों की नौकरियां चली गई हैं। आज यह स्थिति बन गई है कि खेतों और कारखानों में काम करने के लिए बाहर जाने वाले मजदूर ट्रेनों में बड़ी संख्या में अपने घर लौट रहे हैं।

शुक्ला ने सरकार से सवाल किया कि उसने दस करोड़ रोजगार देने का जो वादा किया था उसे वह कैसे पूरे करेगी। सरकार की ‘कैशलेस इकॉनोमी’ की पहल पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि ‘डंडा मार कर कैशलेस नहीं हुआ जा सकता।’ उन्होंने कहा कि नोटबंदी का क्या फायदा हुआ क्योंकि काले धन का एक भी रूपया सामने नहीं आया। भाजपा ने चुनाव में वादा किया था कि वह रुपये का भाव एक डॉलर पर 50 रुपये तक लाएगी जबकि आज डॉलर 70 रुपये पर पहुंचने वाला है। कांग्रेस सदस्य ने कहा कि नोटबंदी करते समय तर्क दिया गया था कि इससे आतंकवादियों के पास जाने वाला काला धन रूकेगा। लेकिन पकड़े जाने वाले आतंकवादियों के पास से लबालब धन निकल रहा है।

उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार पर देश की संवैधानिक संस्थाओं और परंपराओं को खत्म करने का भी आरोप लगाते हुए कहा कि योजना आयोग को बंद कर दिया गया, विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (एफआईपीबी) को बंद कर दिया गया, रेल बजट बंद कर दिया गया, आरबीआई की स्वायत्तता का उल्लंघन करने का भी आरोप है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद गंगा की स्वच्छता के लिए काफी दावे किए थे लेकिन राष्ट्रपति अभिभाषण में गंगा के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। विदेश नीति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि विदेश नीति के मोर्चे पर सरकार बुरी तरह विफल साबित हुई है। सारे पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते बिगड़ गए हैं। पाकिस्तान के साथ तो संबंध बहुत ही खराब हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अमेरिका के साथ संबंध सुधारने के प्रयास किए किंतु नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वीजा के बारे में जो घोषणाएं की हैं उससे भारतीय आईटी पेशेवरों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सरकार को इस मामले में अमेरिका के साथ बात करनी चाहिए। शुक्ला ने कहा कि यह अच्छी बात है कि मोदी सरकार आधार, कंप्यूटरीकरण, डिजिटलीकरण जैसी हमारी पहल और योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। किंतु सरकार को इन योजनाओं के लिए सारा श्रेय खुद नहीं लेना चाहिए। उन्होंने राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद पेश करने वाले कानून मंत्री से सवाल किया कि जब न्यायिक सुधार के मामले में पूरी संसद सरकार के साथ है तो वह न्यायिक सुधारों को आगे क्यों नहीं बढ़ा रही है। इसके लिए न्यायिक जवाबदेही विधेयक को नए सिरे से क्यों नहीं लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि देश की न्यायपालिका में करोड़ों मामलों का अंबार लगा हुआ है और न्यायिक सुधारों की फौरी जरूरत है

भाजपा के एल गणेशन ने वर्तमान सत्र में उच्च सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलने की सराहना करते हुए कहा कि इससे सभी सदस्यों को अपनी बात रखने का मौका मिल रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा अपने घोषणापत्र में जो वादे करती है, सत्ता में आने के बाद वह उन पर अमल करती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति अभिभाषण में इन्हीं घोषणाओं और वादों की प्रगति रिपोर्ट पेश की जाती है। गणेशन ने कहा कि जिस प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री ने देश में खाद्यान्न की कमी होने पर लोगों से प्रत्येक सोमवार की रात खाना नहीं खाने की अपील की थी और लोगों ने उसे माना था, उसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ने की जो अपील की, उसे करोड़ों लोगों ने स्वीकार किया है। उन्होंने विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद के कश्मीर की स्थिति के बारे में लगाए गए आरोपों का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस 60 साल सत्ता में रही और उसे यह सोचना चाहिए कि कश्मीर सहित पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों को आज तक इतना कष्ट क्यों है। आजाद को यह भी बताना चाहिए था कि यदि कश्मीर में कर्फ्यू लगाया जाता है तो उसके पीछे क्या कारण है।

गणेशन ने कहा कि तमिलनाडु में आरएसएस और हिंदू संगठनों के जो कार्यकर्ता मारे गए हैं उनके बारे में चर्चा क्यों नहीं की जाती। उन्होंने दावा किया कि नोटबंदी सहित सरकार की विभिन्न पहल और योजनाओं पर जनता पूरी तरह उसके साथ खड़ी रही और खड़ी हुई है। सपा के संजय सेठ ने दावा किया कि राष्ट्रपति अभिभाषण में कोई भी जमीनी हकीकत नजर नहीं आती। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह सहयोग देने के मामले में भाजपा एवं गैर भाजपा शासित राज्यों के बीच भेदभाव करती है। उसने उत्तर प्रदेश की सपा सरकार के साथ कभी पूरा न्याय नहीं किया। इससे पता चलता है कि ‘सबका साथ सबका विकास’ वाला उसका नारा सही नहीं है। उन्होंने दावा किया कि नोटबंदी का सबसे बुरा असर किसानों और मजदूरों पर पड़ा है। किसानों को बीज नहीं मिल रहे हैं, खाद नहीं होने के कारण उनकी फसल खराब हो रही है, श्रमिकों की हालत खराब है जिसके कारण देश मे बेरोजगारी का आलम कायम हो गया है।

सेठ ने कहा कि सरकार कैशलेस अर्थव्यवस्था की बात करती है किंतु जिस देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोग हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते हैं, वे मोबाइल बैंकिंग कैसे कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि कैशलेस की बात करने से पहले सरकार को साक्षरता बढ़ानी चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्व में एक लाख की आबादी पर 100 एटीएम हैं जबकि हमारे यहां इनकी संख्या मात्र 20 है। ऐसे में कैशलेस अर्थव्यवस्था कैसे कायम हो पाएगी। उन्होंने सुझाव दिया कि गरीबों को दो कमरों के मकान के लिए ब्याजमुक्त रिण दिया जाना चाहिए। इसके अलावा कंपनियों पर यह शर्त लगाई जानी चाहिए कि कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) पर खर्च की जाने वाली राशि का कुछ हिस्सा संबंधित राज्य में व्यय किया जाए।

विदेश नीति पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने जिस वीजा नीति की घोषणा की है उससे आईटी क्षेत्र के कई लोग बेरोजगार होंगे जिनमें बड़ी संख्या में भारतीय भी शामिल हैं। सरकार को बताना चाहिए कि यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो उससे निपटने के लिए उसने क्या किया है। क्या वह ऐसे लोगों के लिए देश में आईटी रोजगार इकाइयां खोलेगी। उन्होंने कहा कि सरकार स्वच्छता की बात करती है लेकिन उसके लिए जरूरी है कि राज्यों में नदियों में मिलने वाले नालों के दूषित जल के लिए शोधन संयंत्र लगाए जाएं। इसके लिए प्रदेशों को स्वच्छता से मिलने वाले उपकर का कुछ हिस्सा दिया जाना चाहिए।

जदयू के शरद यादव ने कहा कि नोटबंदी के बाद कितना कालाधन सरकार के पास आया और कितने नकली नोटों का पता लगाया गया, इसका ब्यौरा सरकार को देना जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि पहले से ही परेशान किसानों की हालत इस नोटबंदी से और खराब हो गयी। उन्होंने कहा कि भाजपा से संबद्ध मजदूर संगठन ‘बीएमएस’ ने भी इसके कारण बेरोजगारी में वृद्धि होने की बात की है जिसके बारे में अभिभाषण में कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से गरीब लोग प्रभावित हुए हैं। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण कालाधन आने और आतंकियों का वित्तपोषण रुकने की बात तो दूर उल्टे तमाम किस्म के बिचौलिए पैदा हुए हैं।

उन्होंने कहा कि देश में आदिवासी जनसंख्या की बहुलता है और भारत सरकार को उनकी योजनाओं के लिए दिया जाने वाला पैसा उन तक नहीं पहुंच पाता और इस बड़ी आबादी के हितों के लिए कानून के बारे में अभिभाषण में कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार को सोचना चाहिये कि न्यायिक संस्थाओं में वंचित, दबे..कुचले समाज के लोगों का कितना प्रतिनिधित्व है और सरकार को न्यायिक संस्थाओं में आरक्षण की बात उठानी चाहिये। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति का अभिभाषण अधूरा है।

माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि सरकार ने नोटबंदी का जो मकसद घोषित किया था, वह पूरा होता नहीं दिख रहा बल्कि तमाम अर्थशास्त्रियों ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर इसके नकारात्मक प्रभाव होने की आशंका जताई है कि विकास दर में लगभग दो प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। उन्होंने कहा कि सरकार के आर्थिक सर्वे में इस बारे में आशंका व्यक्त की गई है। येचुरी कहा कि किसानों को नोटबंदी के कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से आधे कीमत पर अपने उत्पादों को बेचने को विवश होना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जो मजदूर रोजगार के लिए बाहर गये उन्हें नोटबंदी के कारण अपने घरों को वापस लौट जाना पड़ा और बेरोजगारी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि सरकार के कदम के कारण मांग बढ़ने के बजाय और कम हो रही है।

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अल्पसंख्यकों के लिए बजटीय आवंटन लक्ष्य के मुकाबले काफी कम है। महिलाओं के लिए आवंटन भी कम हुआ है। उन्होंने कहा कि कालाधन का एक बड़ा स्रोत राजनीतिक दलों का खर्च भी है जिसके खर्च की सीमा तय की जानी चाहिये। उन्होंने कहा कि अमेरिका सहित विभिन्न देशों के आईटी क्षेत्र में पांच लाख से अधिक युवा कामगार हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद वहां माहौल इन नौजवानों के रोजगार के संदर्भ में सोचनीय हुई है और सरकार को उनके हितों की सुरक्षा के संदर्भ में स्पष्ट उल्लेख करना चाहिये और राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस बारे में जिक्र नहीं किया गया है।

संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि भाजपा सरकार को विगत सरकार से जो राजनीतिक विरासत मिली थी, वहां भारी भ्रष्टाचार, घोटाले थे और मौजूदा सरकार के सामने चुनौती थी कि बगैर सियायत किये कैसे भ्रष्टाचार मुक्त विकास और विश्वास के माहौल को पैदा किया जाये। उन्होंने कहा कि विगत सालों के दौरान राजग सरकार द्वारा किये गये तमाम प्रयास इसी परिप्रेक्ष्य में किये गये जिससे आज काफी सकारात्मक माहौल बना है। नकवी ने कहा कि केंद्र सरकार के प्रयासों के कारण वर्ष 2014 के मुकाबले आज केन्द्र सरकार की नौकरियों में अल्पसंख्यकों की संख्या में वृद्धि हुई है और देश में साम्प्रदायिक तनाव की स्थितियों में भी काफी कमी आई है।

कांग्रेस के अहमद पटेल ने कहा कि विगत ढाई सालों में मौजूदा सरकार ने प्रतिशोध की भावना से काम किया है जहां राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों के खिलाफ तमाम एजेंसियों का दुरुपयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी से कालाधन पर अंकुश लगाने या आतंकियों के वित्तपोषण में कमी लाने जैसे घोषित मंतव्य तो पूरे नहीं हुए उल्टे पूरे देश को कतारबद्ध कर दिया गया। उन्होंने कहा कि इससे एक अलग तरह का भ्रष्टाचार जन्म लिया जहां भारी राशि के एवज में धन बदलने की घटनायें सुनने में आई हैं जिसकी जांच होनी चाहिये। उन्होंने कहा कि नोटबंदी की सबसे अधिक मार किसानों को झेलनी पड़ी है जिन्हें रबी फसल की बुवाई के लिए धन की समस्या का सामना करना पड़ा और अपने बाकी फसलों के लिए लागत मूल्य से कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर होना पड़ा।

उन्होंने कहा कि किसानों के साथ साथ महिलाओं, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए बजटीय आवंटन काफी कम है और आर्थिक सर्वेक्षण में दलित का जिक्र तक नहीं है। उन्होंने जिज्ञासा प्रकट की कि महिलाओं के आरक्षण की आज चर्चा नहीं है और रक्षा के मद में खर्च में कटौती हुई है। उन्होंने कहा कि ब्राडबैंड सेवाओं से केवल 26 प्रतिशत ग्राम पंचायतों को जोड़ा जा सका है तथा प्रत्यक्ष अंतरण योजना और स्मार्ट सिटी परियोजना विफल साबित हुई है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने देश में चुनाव कराने के संदर्भ में जो मंतव्य व्यक्त किया है उसके संदर्भ में पहले आम सहमति कायम की जानी चाहिये। चर्चा में भाजपा के सत्य नारायण जटिया, कांग्रेस की रजनी पाटिल और टीआरएस के श्रीनिवास ने भी भाग लिया। चर्चा अधूरी रही