सरकार की राज्यसभा में उस समय किरकिरी हुई जब भ्रष्टाचार व कालेधन के मुद्दे पर राष्ट्रपति के अभिभाषण पर विपक्ष के एक संशोधन को सदन में मंजूर कर लिया गया। माकपा सदस्यों सीताराम येचुरी और पी राजीव ने यह संशोधन पेश किया था। सदन ने मत विभाजन के बाद इसे मंजूर कर लिया। इसके पहले सरकार ने विपक्ष से अपील की थी कि वह अपना संशोधन वापस ले ले और मत विभाजन पर जोर नहीं दे। संशोधन में कहा गया है कि अभिभाषण में उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार पर काबू पाने और कालाधन वापस लाए जाने के मामले में सरकार की नाकामी का कोई जिक्र नहीं किया गया है।
संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने येचुरी को संशोधन पर जोर नहीं देने का अनुरोध किया और कहा कि कालेधन का जिक्र किया गया है। उन्होंने कहा कि उनकी चिंताओं को नोट किया गया है और इसलिए इसे वापस ले लेना चाहिए। येचुरी ने कहा कि सामान्य स्थिति में वे ऐसे अनुरोध को स्वीकार कर लेते। लेकिन वे संशोधन पर जोर दे रहे हैं क्योंकि सरकार ने कोई चारा नहीं छोड़ा है और विपक्ष को प्रधानमंत्री के जवाब पर स्पष्टीकरण मांगने का मौका नहीं दिया गया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के अपना जवाब देने के तुरंत बाद सदन से बाहर जाने पर आपत्ति जताई।
राज्यसभा में यह चौथा मौका है जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर विपक्ष के लाए गए संशोधन को सदन ने मंजूरी प्रदान की है। पहली बार जनता पार्टी के शासन काल में 30 जनवरी 1980 को ऐसा हुआ था। उसके बाद 1989 में ऐसा हुआ जब वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार थी। तीसरी बार 12 मार्च 2001 को ऐसा हुआ था जब अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार सत्ता में थी।
इससे पहले कालेधन पर धमकी नहीं देने की कांग्रेस की टिप्पणी पर प्रधानमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा कि लोकतंत्र में न कभी धमकियां चली हैं और न कभी चल सकती हैं। मुझे गुजरात में 14 सालों तक पत्र मिलते रहे, जेल में भेजने की धमकियां मिलती रहीं। क्या खेल खेला जा रहा था, मुझे पता है।
राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौरान क्या कुछ जुल्म नहीं हुए थे, लेकिन देश झुका नहीं। इससे बड़ी धमकी क्या हो सकती है। धमकियों का चरित्र क्या होता है, यह किसकी भाषा है, यह सबको पता है, इसलिए कृपा करके उस बात को किसी के मुंह में डालने का प्रयास नहीं करें जो बात नहीं कही गई है।
इससे पहले प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा था कि आपने दूसरे सदन में कहा कि आप कालेधन मामले में किसी को छोड़ेंगे नहीं, वह चाहे जो हो। क्या आपको किसी ने ऐसा आवेदन दिया है। हमें ऐसी धमकी नहीं दें। ऐसी धमकियों से कोई डरने वाला नहीं है। आप अपना वादा पूरा करें।
संशोधन को 57 के मुकाबले 118 मतों से मंजूर कर लिया गया। ताजा घटनाक्रम ने इस बात को रेखांकित किया कि सरकार को अपने प्रमुख आर्थिक सुधार विधेयकों को उच्च सदन से पारित कराने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसके पहले संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने येचुरी को संशोधन पर जोर देने से रोकने की कोशिश की और कहा कि सरकार कालाधन लाने का प्रयास कर रही है और इस मुद्दे पर कोई दो राय नहीं है।
नायडू ने येचुरी से अनुरोध किया-आपको अधिकार है। आपकी चिंताओं को समझा जा सकता है। लेकिन आप मत विभाजन पर जोर नहीं दीजिए। लेकिन येचुरी ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि सामान्य स्थिति में वे सहमत हो जाते। उन्होंने कहा कि वे संशोधन पर जोर दे रहे हैं क्योंकि सरकार ने कोई चारा नहीं छोड़ा है और विपक्ष को प्रधानमंत्री के जवाब पर स्पष्टीकरण मांगने का मौका नहीं दिया गया। यहां तक कि विपक्ष के नेता को भी मौका नहीं दिया गया।
हंगामे के बीच कांग्रेस के रामचंद्र राव ने अपने स्थान पर खड़े होकर एक बैनर दिखाया। इस पर सभापति हामिद अंसारी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि उन्हें सदस्य को बाहर जाने को कहने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। बाद में राव मान गए और अपनी सीट पर बैठ गए। केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि जहां तक स्पष्टीकरण का सवाल है, इसके लिए कभी अनुमति नहीं दी गई। इस पर येचुरी ने जवाब दिया कि एक सदस्य के नाते उन्हें अपने अधिकार के बारे में जानकारी है। अंसारी ने कहा कि अगर सदस्य मत विभाजन पर जोर देते हैं तो आसन इनकार नहीं कर सकता।