अगले कुछ महीनों में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विधानसभा चुनाव में सभी दल सचेत होकर जनता के पास जाने की तैयारी में लगे हैं। जनता अब पहले से ज्यादा जागरूक हो गई है। नेताओं के बयान से वह प्रभावित नहीं होती है।

विचलित अजित

अजित पवार की राकांपा में खलबली तो लोकसभा चुनाव के नतीजों से ही मच गई थी। सुप्रीम कोर्ट के नोटिस ने पार्टी के विधायकों की चिंता अचानक और बढ़ा दी है। शरद पवार खेमे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इसी हफ्ते अजित पवार और उनके 40 विधायकों को नोटिस जारी कर दिया। याचिका शरद पवार ने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के आदेश के खिलाफ दायर कर रखी है। नार्वेकर ने अजित पवार और उनके समर्थक विधायकों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अयोग्य घोषित करने से इनकार कर दिया था। लोकसभा चुनाव में शरद पवार की पार्टी को महाविकास अघाड़ी ने दस सीटें दी थी। उनके आठ उम्मीदवार जीत गए। इसके उलट महायुति ने अजित पवार को चार सीटें दी पर वे एक ही जीत पाए। उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार उनकी चचेरी बहन सुप्रिया सुले से हार गई। विधानसभा चुनाव में अजित पवार के समर्थक विधायकों को पहला खतरा तो यही है कि महायुति के घटक दल भाजपा और शिंदे की शिवसेना उनके टिकट काट देंगे। ऊपर से हार का डर और सता रहा है कि चुनाव आयोग ने भले अजित की राकांपा को असली बताया हो पर जनता ने तो शरद पवार में ही जताया भरोसा। महाराष्ट्र में नवंबर तक चुनाव बाद नई सरकार का गठन होना है। शरद पवार के वकील अभिषेक सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से इसी दलील के आधार पर तो मामले के तत्काल निपटारे की मांग रखी।

महिमामंडली

हरियाणा में चुनाव का समय नजदीक आते देख टिकटार्थी इन दिनों नेताओं की गणेश परिक्रमा में लगे हैं। चाटुकारिता की सीमाएं टूट रही हैं। दीपेंद्र हुड्डा के समर्थकों ने उनकी तुलना भगवान शिव से कर डाली तो सुनीता केजरीवाल भी पीछे नहीं रहीं। फरमाया कि उनके पति अरविंद केजरीवाल का जन्म जन्माष्टमी को हुआ था। कोई बड़ा काम करने के लिए ही हुआ है उनका अवतार। इसके साथ ही भाजपा के मुनीष ग्रोवर भी शामिल हो गए इस दौड़ में। फरमाया कि मनोहर लाल जैसा दूरदृष्टा सूबे की सियासत में पहले कोई नहीं हुआ। चुनावी मौसम है तो दलबदल भी रफ्तार पकड़ रहा है। गिरगिट भी शरमा जाए हरियाणवी नेताओं के रंग बदलने की चाल देखकर। लोकसभा चुनाव आम आदमी पार्टी ने कांगे्रस से मिलकर लड़ा था पर विधानसभा में दोनों आमने-सामने होंगे। महीना भी नहीं बीता था कि बदल गए दोनों के रंग-ढंग।

कमान दिखाता ‘एक्स’ का खाता

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने देश के कई राज्यों में प्रदेशों के अध्यक्षों की तैनाती की है। इन नेताओं के आने से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी चौंक गए हैं। इसी क्रम में इस ताजा समीकरण पर भाजपा नेताओं में इस बात की भी चर्चा है कि इस बार पार्टी में नई कमान मिलने का आकलन सोशल मीडिया का खाता है। अब तक जिन प्रदेशों हरियाणा, राजस्थान, बिहार या अन्य राज्यों में भी नई तैनाती हुई है, उन राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों के सोशल मीडिया (एक्स) में दस हजार से कम फालोअर थे। इसके बाद ही इन नेताओं के फालोअर बढ़े हैं। हालांकि, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती है। खुद प्रधानमंत्री के ‘एक्स’ पर दस करोड़ से अधिक फालोअर हैं।

तरक्की की खोज

हरियाणा में दो महीने बाद विधानसभा चुनाव होंगे। दस साल से सत्ता भाजपा के पास है। हालांकि लोकप्रियता में गिरावट आई है। पार्टी ने 2014 में 90 में से 47 सीटें जीतकर पहली बार अपने बूते सरकार बनाई थी। लेकिन, 2019 में सीटें घटकर 40 रह गईं। नतीजतन दुष्यंत चौटाला के साथ साझा सरकार बनानी पड़ी। हालांकि 2019 में ही लोकसभा में पार्टी ने सभी दस सीटें जीती थी। इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी पांच सीटों पर सिमट गई। इसी से कांगे्रस को सूबे में अपनी जीत पक्की नजर आ रही है। भाजपा में असंतोष भी विपक्ष की मदद कर सकता है। पूर्व गृहमंत्री अनिल विज वरिष्ठतम विधायक होकर भी उपेक्षित हैं। तभी तो सोशल मीडिया पर लिखा-जो तुम्हारे न हुए, वो किसी के न होंगे। बिन वजह गलतफहमियां थी और आखिर में शिकार हुए। अपने इस दर्द को बाद में उन्होंने हटा भी लिया। दुखी केंद्रीय मंत्री और गुड़गांव के सांसद राव इंद्रजीत पवार भी कम नहीं हैं। पिछले दिनों अहीरवाल के दौरे पर थे। तभी एक जलूस में शामिल लोगों से पूछा कि ऐसे नेता का नाम बताओ जो 2004 में भी केंद्रीय राज्यमंत्री रहा हो और 2024 में भी राज्यमंत्री ही हो। खुद ही जवाब भी दे दिया कि वे ऐसे अकेले नेता हैं जिनकी बीस साल में एक भी तरक्की नहीं हुई। राव इंद्रजीत सिंह ठहरे पूर्व मुख्यमंत्री राव वीरेंद्र सिंह के बेटे छह बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। चार बार मंत्री रह चुके हैं पर ओहदा राज्यमंत्री का ही रहा।

‘संतोष’ का फल मीठा

संतोष गंगवार का बरेली से लोकसभा टिकट भाजपा ने काट दिया तो हर किसी को हैरानी हुई। अपने मतदाताओं से सतत संपर्क और सादगी के कारण उनकी जीत में किसी को संदेह नहीं था। पर उम्र आड़े आ गई। पिछले साल ही 75 के हो गए थे। भाजपा की अघोषित नीति 75 पार के नेताओं को सक्रिय राजनीति से संन्यास देने की रही है। पिछड़ी कुर्मी जाति के गंगवार के समर्थकों को उनका टिकट कटने पर अखरा था। गंगवार ने सबको संतोष रखने और पार्टी के फैसले का सम्मान करने की ही सलाह दी। उम्मीदवार के लिए उसी भावना से काम किया जैसे खुद लड़ते हुए करते थे। उत्तर प्रदेश में माहौल भाजपा विरोधी था। तब भी संतोष गंगवार ने पार्टी के उस उम्मीदवार की जीत के लिए ताकत झोंक दी जो दो साल पहले ही विधानसभा चुनाव हार गया था। गंगवार 2009 को छोड़कर 1989 से बरेली से लोकसभा का हर चुनाव जीते। कुल मिलाकर आठ बार लोकसभा सदस्य रहे। वाजपेयी सरकार में मंत्री थे। मोदी सरकार में भी 2014 से 2021 तक मंत्री रहे। बीच में मंत्रिपद से हटाने पर भी बागी तेवर नहीं दिखाए। वफादारी का ईनाम देते हुए उन्हें झारखंड का राज्यपाल बना दिया गया है।

प्रस्तुति: मृणाल वल्लरी