पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 20 अगस्त को जयंती है। कांग्रेस के बड़े नेताओं के अलावा पीएम नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी। सत्ताधारी बीजेपी चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी को लेकर कांग्रेस पर बेहद हमलावर रही है। बोफोर्स घोटाले और सिख दंगों को लेकर बीजेपी उन पर कई बार हमला बोल चुकी है। कहना गलत नहीं होगा कि पूर्व पीएम से जुड़े कई विवाद सुर्खियों में रहे हैं।
राजीव गांधी की मौत के बाद भी गांधी परिवार और तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बीच काफी विवाद हो गया था। इस विवाद की वजह राजीव गांधी का समाधि स्थल था। प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इंदिरा गांधी की समाधि शक्तिस्थल के भीतर ही राजीव गांधी की समाधि का प्रस्ताव किया था।
हालांकि, सोनिया गांधी चाहती थीं कि राजीव गांधी मेमोरियल उनकी मां के समाधिस्थल से अलग हो। उनका मानना था कि एक नेता के रूप में राजीव गांधी की अपनी एक अलग पहचान थी। ऐसे में उन्हें सिर्फ इंदिरा गांधी के बेटे के रूप में नहीं याद किया जाना चाहिए।
दूसरी तरफ, चंद्रशेखर इस बात पर अड़े थे कि लाल बहादुर शास्त्री के समाधि स्थल में किसी भी तरह की कटौती नहीं की जाएगी। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया था कि वे पहले ही चरण सिंह स्मारक के लिए उनके बेटे अजीत सिंह की मांग को पहले ही ठुकरा चुके हैं।
इस घटना का जिक्र हाल ही में चंद्रशेखर की जीवनी में किया गया है। इस किताब को उनके शिष्य हरिवंश ने लिखा है। हरिवंश चंद्रशेखर की जीवनी के सहलेखक हैं। वह वर्तमान में राज्यसभा के उप सभापति भी हैं। चंद्रशेखर और राजीव गांधी के बीच राजनीति तल्खी उस समय बढ़ गई थी जब 1991 में कांग्रेस की तरफ से समर्थन वापस लेने का फैसला लिया था।
चंद्रशेखर ने कांग्रेस के ही समर्थन से नवंबर 1990 में प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने चार महीने तक सरकार चलाई लेकिन राजीव गांधी की जासूसी करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस ने उनकी सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला कर लिया। आखिरकार कांग्रेस के समर्थन वापिस लेने से पहले ही चंद्रशेखर ने 6 मार्च 1991 को अपना इस्तीफा देने की घोषणा कर दी।
हालांकि, इससे पहले चंद्रशेखर ने इस पूरे मामले की जांच कराने का प्रस्ताव कांग्रेस के सामने रखा था। मालूम हो कि राजीव गांधी की 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी सभा के दौरान आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की मौत हो गई थी। उस समय राज्य के तीन प्रमुख कांग्रेस नेता जीके मूपनार, जयंती नटराजन और राममूर्ति भी मौजूद थे।