देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के लिए 20 अगस्त की तारीख बेहद अहम है। 1944 में यही वह तारीख है, जब वह दुनिया में आए थे। 25 फरवरी (1968) की तारीख भी उनके लिए बेहद खास है। यह वह दिन है जब उन्होंने सोनिया माइनो को गांधी परिवार की बहू बनाया था। तब तक किसी को मालूम नहीं था कि एक दिन राजीव देश के युवा प्रधानमंत्री बनेंगे और सोनिया देश की सबसे ताकतवर महिला होंगी। राजीव तो पायलट बनना चाहते थे। यूके से इंजीनियरिंग करने के बाद 1967 में वह देश लौटे तो पायलट बनने का फैसला ले चुके थे। जब शुभचिंतको कों और परिवार ने उनके इस फैसले को खतरनाक बताते हुए शंका जताई तो उनका मुस्कुराते हुए जवाब होता था- वैसे तो सड़क पार करते समय भी कुछ भी हो सकता है।
सोनिया से राजीव की मुलाकात कैम्ब्रिज में हुई थी। मुलाकात प्यार के रिश्ते में बदल गई थी। 1965 में जब इंदिरा गांधी नेहरू एग्जिबिशन के लिए लंदन गई थीं, तभी राजीव ने उनसे सोनिया को मिलवा भी दिया था। इंदिरा चाहती थीं कि सोनिया शादी पर अंतिम फैसला लेने से पहले कुछ दिन भारत में रह कर देख लें। सोनिया के पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी सात समंदर पार जाकर घर बसाए। इन सब परिस्थितियों के बीच दिसंबर 1967 में 21 साल की होने के बाद अगले ही महीने सोनिया भारत आ गईं। वह 1, सफदरजंग रोड और बच्चन परिवार के विलिगंटन क्रेसेंट हाउस में रहा करती थीं। इंदिरा को लग इसके कुछ ही दिन बाद राजीव से उनकी सगाई हो गई और 25 फरवरी शादी की तारीख तय हो गई।
बच्चन के घर पर मेहंदी हुई और प्रधानमंत्री निवास के गार्डन में शादी। समारोह सादा ही था। पर, कुछ पत्रकार भी वहां मौजूद थे। कहा जाता है कि राजीव इस पर गुस्सा भी हो गए थे और उनके सामने आने से इनकार कर दिया था, पर मां नेे उन्हें आसानी से मना लिया था। शादी के बाद हैदराबाद हाउस में रिसेप्शन रखा गया था।
31 साल तक इंदिरा गांधी की करीबी सहयोगी रहीं उषा भगत ने अपनी एक किताब (Indiraji: Through My Eyes) में लिखा है कि शादी के बाद जब पायलट राजीव अपने काम पर चले गए तो सोनिया अकेली हो गईं। वह वक्त बिताने के लिए अक्सर उनके दफ्तर में आ जाया करती थीं। एक दिन जब इंदिरा गांधी ने सोनिया के नाम एक खत छोड़ा तो उसे पढ़ने के बाद वह रोती हुईं उषा के पास आईं। उनकी चिंंता यह थी कि इंदिरा ने उनसे बात करने के बजाय खत क्यों लिख छोड़ा। तब उषा ने उन्हें समझाया था कि वक्त की कमी के चलते इंदिरा अक्सर संवाद के लिए यह तरीका अपनाती हैं और यह एकदम सामान्य बात है। सोनिया ने बहुत जल्दी ही इंदिरा का विश्वास जीतना शुरू कर दिया था।