राजस्थान के उदयपुर शहर में मुस्लिम व्यक्ति के शव को दफनाने से मना कर दिया गया। बाद में उसके शव को कब्र से निकालकर वापस भेज दिया गया। 88 वर्षीय मोहम्मद युसुफ की मंगलवार को रात को एक बजे मौत हो गई थी। इसके बाद सुबह 11 बजे उन्हें दफना दिया गया। लेकिन स्थानीय बरेलवी समुदाय ने कथित तौर पर उनके शव को कब्र से निकाल दिया और एंबुलेंस से खांजीपीर स्थित घर भेज दिया। युसुफ और उनका परिवार सुन्नी है। उन्होंने खुद को बरेलवी, देवबंदी या वहाबी में से किसी पंथ से नहीं जोड़ा।
युसुफ के बेटे हामिद हुसैन ने बताया, ‘हमने उन्हें सुबह 11 बजे खाई कब्रिस्तान में दफनाया। पौने 12 बजे तक हम लोग घर चले गए। कुछ देर बाद मुझे फोन आया और शव को कब्र से बाहर निकालने को कहा गया। उन्होंने कहा कि हमें शव को बाहर निकालना होगा क्योंकि वह वहाबी थे और वहाबी इस कब्रिस्तान में नहीं दफन किए जाते।’ उन्होंने दावा किया कि कुछ लोग इस मांग को लेकर उनके घर भी पहुंच गए। हामिद ने कहा कि उन्हें फोन पर बताया कि कब्रिस्तान में लगभग 100-150 लोग जमा हो गए। उन्होंने कहा,’ मैं कब्रिस्तान नहीं गया। मैंने उन्हें बताया कि उन्हें दफनाया जा चुका है। जब वे बार बार मुझे कॉल करते रहे तो मैंने कुछ लोगों को पौने एक बजे कब्रिस्तान भेजा।’
हामिद के चचेरे भाई मोहम्मद हुसैन ने बताया, ‘हमारे दर्जनों परिजन वहां दफन किए गए। लेकिन गुंडों ने हम पर लिखित में युसुफ को हमारा परिजन बताने का दबाव डाला। ऐसा नहीं करने पर उन्होंने सड़क पर शव को डालने की धमकी दी। हमारे सहमत होने के बाद भी उन्होंने शव को कब्र से बाहर निकाल दिया।’ इसके बाद शव को एंबुलेंस में रखकर घर ले जाया गया। हामिद कहते हैं,’ अल्लाह फैसला करेगा। हमने एंबुलेंस ड्राइवर से बात की। वह मंदसौर स्थित पैतृक गांव शव ले जाने को राजी हो गया।’ रात को 9 बजे दुबारा से उन्हें दफनाया गया।
युसुफ 1954 में मंदसौर से उदयपुर चले गए थे। यहां पर उन्होंने मौली बेचने का काम शुरु किया। युसुफ की पत्नी खातून बाई ने कहा,’उनका आरोप है कि वह वहाबी मुस्लिम है। लेकिन युसुफ ने कभी इस बात की परवाह नहीं की। इसके बाद से उनके साथ वहाबी का टैग लग गया।’ उन्होंने बताया कि युसुफ आजाद ख्याल थे और वे किसी पंथ से नहीं जुड़ना चाहते थे। इस मामले पर राजस्थान के चीफ काजी खालिद उस्मानी ने कहा,’ जो भी हुआ गलत हुआ। भारत में मुसलमान पहले से ही बंटे हुए हैं। उन्हें तथाकथित पंथ के आधार पर नहीं बंटना चाहिए।’